Tue, 25 Nov 2025 11:45:02 - By : Palak Yadav
वाराणसी में आयोजित काशी तमिल संगमम के तहत सोमवार को दृश्य कला संकाय, काशी हिंदू विश्वविद्यालय में एक भव्य पोस्टर निर्माण प्रतियोगिता का आयोजन किया गया। इस प्रतियोगिता ने काशी और तमिलनाडु की समृद्ध सांस्कृतिक परंपराओं को एक साथ प्रस्तुत करने का अद्भुत अवसर दिया। यूनिटी विथ डायवर्सिटी अर्थात अनेकता में एकता विषय पर आयोजित इस कार्यक्रम में 150 से अधिक छात्रों ने भाग लिया और अपनी कला के माध्यम से यह दिखाया कि भारत की विविध सांस्कृतिक विरासत किस प्रकार एक सूत्र में बंधी हुई है। पूरे आयोजन के दौरान छात्र अपने विचारों और कल्पनाओं को रंगों में ढालते हुए दिखाई दिए और परिसर कला, संस्कृति और रचनात्मकता के उत्सव में बदल गया।
प्रतियोगिता में काशी विद्यापीठ, जीवन दीप पब्लिश, सब वीम और बीएचयू के विभिन्न संस्थानों के बच्चे शामिल हुए। छात्रों ने काशी और दक्षिण भारत की परंपराओं, वेशभूषा, रीति रिवाजों, स्थापत्य, नृत्य शैलियों और धार्मिक मान्यताओं को केंद्र में रखकर अपने पोस्टर तैयार किए। कुछ बच्चों ने काशी की घाट संस्कृति और मंदिरों का भव्य स्वरूप दर्शाया, तो कुछ ने तमिलनाडु की नृत्य परंपराओं और लोककला को कैनवास पर उकेरा। पोस्टरों में भरतनाट्यम की गतिमय छवियां, कांचीपुरम की परंपरागत कला शैली, गंगा आरती का दृश्य, काशी के प्राचीन मंदिरों की संरचना और दक्षिण भारत की आध्यात्मिक परंपराओं की झलक साफ दिखाई दी। इन रचनाओं में यह संदेश बार बार उभर कर आया कि सांस्कृतिक विविधता चाहे जितनी भी हो, भारत की आत्मा एक ही है और यही एकता देश की सबसे बड़ी शक्ति है।
कार्यक्रम को सुव्यवस्थित और रचनात्मक वातावरण में सफल बनाने में नोडल अधिकारी प्रोफेसर आंचल श्रीवास्तव, संयोजक प्रोफेसर मनीष अरोडा, प्रोफेसर ज्ञानेंद्र कुमार कनौजिया और सहायक प्रोफेसर कृष्णा सिंह का विशेष योगदान रहा। व्यवहारिक कला विभाग और दृश्य कला संकाय के मार्गदर्शन में प्रतियोगिता का आयोजन ऐसे तरीके से किया गया कि बच्चों को न केवल अपनी कला प्रदर्शित करने का अवसर मिला बल्कि सांस्कृतिक विविधताओं के प्रति सम्मान और समझ भी विकसित हुई। आयोजकों ने बच्चों को प्रोत्साहित करते हुए कहा कि कला केवल अभिव्यक्ति का माध्यम नहीं है, बल्कि यह उन धागों में से एक है जो विविध संस्कृतियों को जोड़कर समाज को मजबूत बनाते हैं। पूरी प्रतियोगिता ने यह सिद्ध किया कि छोटे प्रतिभागी भी अपनी कल्पनाओं और रचनात्मकता के माध्यम से सांस्कृतिक संवाद को कितना सशक्त बना सकते हैं।