कैंसर मरीजों में मनोयौन विकृति की पहचान को BHU ने विकसित किया नया उपकरण

BHU के अध्ययन में खुलासा, कैंसर से जूझ रहे कई मरीज मनोयौन विकृति से ग्रस्त, पहचान हेतु नया उपकरण बना।

Sat, 25 Oct 2025 12:30:49 - By : Shubheksha vatsh

कैंसर केवल शरीर को ही नहीं, बल्कि मानसिक और भावनात्मक स्वास्थ्य को भी गहराई से प्रभावित करता है। इस दिशा में एक महत्वपूर्ण अध्ययन बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के संस्थान चिकित्सा विज्ञान के सर्जिकल ऑन्कोलॉजी विभाग ने किया है। इस शोध के दौरान यह पता चला कि कैंसर से जूझ रहे कई मरीजों को मनोयौन विकृति की समस्या का सामना करना पड़ रहा है, जिसे अब तक व्यापक रूप से पहचान नहीं दी गई थी।

प्रोफेसर मनोज पांडेय के नेतृत्व में किए गए इस शोध में 18 से 60 वर्ष आयु के 350 कैंसर मरीजों को शामिल किया गया। अध्ययन के दौरान यह पाया गया कि इनमें से 150 से अधिक मरीजों में मनोयौन विकृति के लक्षण स्पष्ट रूप से देखे गए। केवल मरीजों से ही नहीं, बल्कि उनके जीवनसाथियों से भी विस्तृत साक्षात्कार किए गए, ताकि इस समस्या की सामाजिक और मानसिक जटिलताओं को समझा जा सके। शोध में प्रोफेसर पांडेय के साथ शोध छात्रा आश्रती पठानिया, केरल विश्वविद्यालय की अनुपमा थॉमस और क्षेत्रीय कैंसर केंद्र, तिरुअनंतपुरम की रेखा शामिल रहीं।

इस अध्ययन के परिणामों में सबसे महत्वपूर्ण उपलब्धि नया मूल्यांकन उपकरण 'साइको-सैक्सुअल इनवेंट्री' (Psychosexual Inventory) का निर्माण है। इस टूल में 40 से अधिक प्रश्न शामिल हैं, जिनके माध्यम से यह आकलन किया जा सकेगा कि किसी मरीज में मनोयौन विकृति है या नहीं। इस प्रश्नावली का उद्देश्य कैंसर मरीजों के मानसिक और यौन स्वास्थ्य का वस्तुनिष्ठ मूल्यांकन करना है, जिससे डॉक्टर और मनोचिकित्सक समय रहते आवश्यक उपचार और काउंसिलिंग प्रदान कर सकें।

शोध को अंतरराष्ट्रीय प्रतिष्ठित पत्रिका 'Psycho-Oncology' में प्रकाशित किया गया है, जिससे भारतीय चिकित्सा शोध को वैश्विक स्तर पर नई पहचान मिली है। प्रोफेसर पांडेय ने कहा कि यह शोध केवल चिकित्सा क्षेत्र में ही नहीं, बल्कि सामाजिक और मानसिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में भी नए दिशा-निर्देश तैयार करने में मदद करेगा।

यह अध्ययन स्पष्ट करता है कि कैंसर का प्रभाव केवल शारीरिक स्वास्थ्य तक सीमित नहीं है, बल्कि यह मानसिक स्थिति, संबंधों और व्यक्तिगत जीवन को भी प्रभावित करता है। इस शोध के माध्यम से डॉक्टरों और मनोचिकित्सकों को मरीजों के मानसिक और यौन स्वास्थ्य की बेहतर समझ प्राप्त होगी और समय रहते प्रभावी हस्तक्षेप संभव होगा।

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