Wed, 12 Nov 2025 11:18:13 - By : Shriti Chatterjee
फर्रुखाबाद में 27 वर्ष पुराने सामूहिक दुष्कर्म और लूटपाट के मामले में अदालत ने आखिरकार अपना फैसला सुना दिया। इस लंबे न्यायिक इंतजार के बाद अदालत ने आरोपी अतिराज यादव को दोषी पाया है। 1998 में शाहजहांपुर के मिर्जापुर थाना क्षेत्र के एक ग्रामीण द्वारा दर्ज कराई गई इस रिपोर्ट में आरोप लगाया गया था कि कुछ बदमाश रात के समय घर में घुस आए, महिलाओं के साथ अत्याचार किया और कीमती सामान लूटकर फरार हो गए थे।
अपर जिला सत्र न्यायाधीश रितिका त्यागी ने इस मामले में सुनवाई पूरी करते हुए आरोपी अतिराज यादव को डकैती और सामूहिक दुष्कर्म दोनों मामलों में दोषी ठहराया। अदालत ने उसे न्यायिक अभिरक्षा में जेल भेज दिया है और सजा के निर्धारण के लिए 15 नवंबर की तारीख तय की है। इस मुकदमे की सुनवाई के दौरान दूसरा आरोपी हरी सिंह ठाकुर की मृत्यु हो गई थी।
मामला 25 जनवरी 1998 की रात का है, जब मिर्जापुर थाना क्षेत्र के एक ग्रामीण अपने परिवार के साथ घर में सो रहा था। उसी दौरान लगभग एक दर्जन बदमाशों ने उसके घर पर धावा बोल दिया। आरोप है कि बदमाशों ने परिवार के सदस्यों को एक कमरे में बंद कर दिया और विरोध करने पर घर के मुखिया के साथ मारपीट की। वह किसी तरह बदमाशों के चंगुल से बचकर गांव की ओर भागा और ग्रामीणों को सूचना दी। जब ग्रामीणों ने बदमाशों को घेरने की कोशिश की, तो उन्होंने फायरिंग शुरू कर दी। इसी दौरान आरोपियों ने उसकी पत्नी के साथ सामूहिक दुष्कर्म किया और घर में रखा कीमती सामान व एक घोड़ा लूट लिया।
घटना के बाद पीड़ित की शिकायत पर पुलिस ने मामला दर्ज किया। जांच की जिम्मेदारी तत्कालीन थाना प्रभारी आरडी मौर्य को दी गई। जांच के बाद मिर्जापुर क्षेत्र के इस्माइलपुर गांव निवासी अतिराज यादव और हरी सिंह ठाकुर के खिलाफ आरोप पत्र दाखिल किया गया। मामले में वर्षों तक सुनवाई चली और कई गवाहों के बयान दर्ज किए गए।
सरकारी पक्ष की ओर से एडीजीसी शैलेश सिंह और भानुप्रकाश मिश्रा ने अभियोजन पक्ष का पक्ष रखा, जबकि बचाव पक्ष ने आरोपी की ओर से अपनी दलीलें पेश कीं। सभी तर्कों और साक्ष्यों पर विचार करने के बाद अदालत ने माना कि अभियोजन पक्ष आरोपों को प्रमाणित करने में सफल रहा है। इसके आधार पर अदालत ने अतिराज यादव को दोषी ठहराया और उसे जेल भेजने का आदेश दिया।
लंबे समय से न्याय की प्रतीक्षा कर रहे पीड़ित परिवार ने अदालत के इस फैसले को न्याय की जीत बताया है। यह मामला उन मामलों में से एक है, जिनमें वर्षों की देरी के बाद भी न्याय की प्रक्रिया ने अंततः अपराधी को सजा के दायरे में लाया है।