Sun, 12 Oct 2025 15:50:24 - By : Shriti Chatterjee
वाराणसी: आध्यात्मिक राजधानी काशी अब सनातन धर्म और भारतीय संस्कृति के गहन विमर्श का केंद्र बनने जा रही है। यहां संस्कृति संसद का निर्माण किया जाएगा, जो हिंदू धर्म से जुड़े विषयों पर राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा और विचार का मंच बनेगी। इस संसद का मुख्य उद्देश्य हिंदू संस्कृति, परंपराओं और जीवन मूल्यों को बढ़ावा देना है ताकि धर्म और समाज से जुड़े मुद्दों पर एकजुट दृष्टिकोण विकसित हो सके।
संस्कृति संसद का आयोजन प्रत्येक दूसरे वर्ष काशी में किया जाता है। इस वर्ष यह तीन दिवसीय आयोजन 31 अक्टूबर से 2 नवंबर तक सिगरा स्थित रुद्राक्ष कन्वेंशन सेंटर में होगा। अखिल भारतीय संत समिति, अखाड़ा परिषद और गंगा महासभा के तत्वावधान में होने वाली इस संसद में देश के विभिन्न हिस्सों से 350 से अधिक संत-महंत, शंकराचार्य, जगद्गुरु, रामानुजाचार्य, शिवाचार्य, सामाजिक कार्यकर्ता, चिंतक, विचारक और सनातन धर्म के विभिन्न संप्रदायों के प्रतिनिधि शामिल होंगे।
अखिल भारतीय संत समिति के महामंत्री स्वामी जीतेन्द्रानन्द सरस्वती ने बताया कि यह संस्कृति संसद सनातन धर्म और राष्ट्रहित के व्यापक विमर्श का केंद्र बनेगी। तीन दिनों तक चलने वाले इस आयोजन में 30 से अधिक सत्र होंगे जिनमें 100 से अधिक वक्ता अपने विचार रखेंगे। समाज और राष्ट्र की वर्तमान परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए युगानुकूल निर्णय लिए जाएंगे और कई महत्वपूर्ण प्रस्ताव पारित कर केंद्र व राज्य सरकारों से उन पर कानून बनाने की मांग की जाएगी।
उन्होंने कहा कि संसद में सनातन धर्म के विरुद्ध चल रहे अंतरराष्ट्रीय षड्यंत्रों पर भी गहन चर्चा होगी। हिंदू विरोधी इकोसिस्टम को उजागर किया जाएगा और समाज को इससे सावधान रहने का संदेश दिया जाएगा। इसके साथ ही संस्कृति संसद में ऐसे ठोस सुझाव दिए जाएंगे जिनसे धर्म और समाज की एकता को मजबूत किया जा सके।
गंगा महासभा के महामंत्री पंडित गोविंद शर्मा ने बताया कि संसद के तीनों दिन अलग-अलग राज्यों के राज्यपाल मुख्य अतिथि रहेंगे। 31 अक्टूबर को हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल शिव प्रताप शुक्ला, 1 नवंबर को केरल के राज्यपाल आरिफ मुहम्मद खान और 2 नवंबर को असम के राज्यपाल लक्ष्मण आचार्य मुख्य अतिथि के रूप में शामिल होंगे। उन्होंने बताया कि विश्व हिंदू परिषद के वरिष्ठ पदाधिकारी भी पूरे तीन दिनों तक आयोजन में उपस्थित रहेंगे।
कार्यक्रम के दौरान हिंदू आचार संहिता का विमोचन भी किया जाएगा। यह संहिता समय की आवश्यकताओं के अनुरूप हिंदू संस्कृति को प्रोत्साहित करने और सामाजिक मर्यादाओं को सुदृढ़ करने का प्रयास होगी। आयोजन के दौरान फिल्म सेंसर बोर्ड को भारतीय संस्कृति के अनुकूल बनाने, इंटरनेट मीडिया पर अपसंस्कृति और धर्म विरोधी सामग्री को रोकने के लिए सख्त निगरानी की मांग सहित कई महत्वपूर्ण प्रस्ताव पारित किए जाएंगे। साथ ही हिंदू मठ-मंदिरों से सरकारी नियंत्रण समाप्त करने, धार्मिक आयोजनों को मर्यादा के अनुरूप संचालित करने और मंदिरों में प्रवेश के लिए परिधान संबंधी दिशा-निर्देश बनाने जैसे विषयों पर भी विचार किया जाएगा।
स्वामी जीतेन्द्रानन्द सरस्वती ने कहा कि काशी में यह संसद न केवल धर्म का संवाद मंच है, बल्कि यह राष्ट्र निर्माण की दिशा में भी एक सांस्कृतिक प्रयास है। उन्होंने बताया कि इस आयोजन का उद्देश्य समाज में संवाद, एकता और आस्था के माध्यम से सांस्कृतिक चेतना को सशक्त करना है।
संस्कृति संसद के माध्यम से काशी एक बार फिर भारतीय ज्ञान, अध्यात्म और संस्कृति के प्रसार का केंद्र बनेगी, जहां धर्म, समाज और राष्ट्र के हित में विचारों का संगम होगा।