Sat, 29 Nov 2025 12:01:55 - By : Garima Mishra
लखनऊ के केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय में इस समय 10 दिवसीय खादी महोत्सव चर्चा का केंद्र बना हुआ है। महोत्सव में रोज बड़ी संख्या में लोग पहुंच रहे हैं, लेकिन खास बात यह है कि इसमें युवाओं की दिलचस्पी पिछले वर्षों की तुलना में काफी बढ़ी है। छात्र और युवा प्रोफेशनल्स यहां डिजाइनर खादी के कपड़े खरीदते नजर आ रहे हैं। उनका कहना है कि खादी अब सिर्फ पारंपरिक पहनावा नहीं रहा, बल्कि फैशन और कंफर्ट दोनों का उत्तम मेल बन चुका है।
महोत्सव में लगाए गए स्टॉलों पर काम कर रहे बुनकरों के अनुसार बिक्री में जबरदस्त बढ़ोतरी हुई है। कई कारीगरों ने बताया कि पिछले सालों की तुलना में इस बार उनकी कमाई 2 से 3 गुना तक बढ़ी है। इसके पीछे बड़ी वजह इलेक्ट्रिक चरखे हैं, जिन्होंने कताई की रफ्तार और दक्षता दोनों को आगे बढ़ाया है। इलेक्ट्रिक चरखे से सूत कात रहीं सुनीता बताती हैं कि पहले लकड़ी के चरखे से महीनों मेहनत करने के बाद मुश्किल से दस हजार रुपये मिलते थे, लेकिन अब आठ घंटे के काम में 20 से 30 हजार रुपये आसानी से जुटा पा रही हैं। वे मौके पर ही लोगों को कपड़ा बनाकर दे रही हैं, जो आगंतुकों के लिए आकर्षण का विषय बना हुआ है।
दूसरी ओर कानपुर के हस्तशिल्प कारीगर धीरेंद्र द्विवेदी ने बताया कि खादी में डिजाइनिंग का दायरा तेजी से बढ़ा है। एनआईएफटी डिजाइनिंग और आधुनिक फैशन ट्रेंड को शामिल कर खादी अब पूरी तरह से युवा पीढ़ी के स्वाद के अनुसार ढल चुकी है। एयरपोर्ट आउटलेट्स पर विदेशी पर्यटक भी खादी की खरीदारी खूब कर रहे हैं। खादी के कपड़े 150 रुपये से लेकर 4000 रुपये तक की रेंज में उपलब्ध हैं। धीरेंद्र के अनुसार उनके साथ लगभग 500 लोग जुड़े हैं जो खादी उद्योग से रोजगार पा रहे हैं।
महोत्सव में आए ग्राहक खादी की आरामदायक प्रकृति की खूब तारीफ कर रहे हैं। अवधेश प्रताप ने बताया कि वे पिछले 35 वर्षों से सिर्फ खादी पहनते हैं क्योंकि यह शरीर के लिए बेहद आरामदायक और स्वास्थ्यप्रद कपड़ा है। उनका कहना है कि अब खादी हल्के और मोटे दोनों धागों में उपलब्ध है और फैशनेबल शर्ट, सदरी, साड़ी और महिलाओं के परिधानों में भी इसकी बेहतरीन वैराइटी मिल रही है।
महोत्सव में केवल कपड़े ही नहीं, बल्कि स्वदेशी उत्पाद भी खूब बिक रहे हैं। नीम की कंघी बनाने वाले कारीगर राकेश शुक्ला बताते हैं कि उनकी कंघियां बालों के झड़ने से लेकर सिर की कई समस्याओं को कम करती हैं। यह 150 रुपये से 1000 रुपये तक की रेंज में उपलब्ध है।
धनतेरस और दीपावली के बाद अब इस महोत्सव ने शहर में स्वदेशी उत्पादों की चमक और भी बढ़ा दी है। यहां 160 से अधिक कारीगर और उद्यमी अपने उत्पाद प्रदर्शित कर रहे हैं। बनारसी साड़ी, उत्तराखंड की टोपी, वुलेन शॉल, सूट, लकड़ी से बने उत्पाद और खादी की आधुनिक रेंज आगंतुकों को खूब आकर्षित कर रही है। महोत्सव 30 नवंबर तक चलेगा।