Mon, 01 Dec 2025 13:12:13 - By : Garima Mishra
वाराणसी के प्रतिष्ठित शक्तिपीठ मां विशालाक्षी मंदिर में चल रहे कुंभाभिषेक समारोह के तहत सोमवार को कई महत्वपूर्ण विधानों को संपन्न किया गया। मंदिर में स्थापित देवी विग्रह को वैदिक मंत्रोच्चार के बीच चलायमान किया गया, जिसे कुंभाभिषेक प्रक्रिया का प्रमुख चरण माना जाता है। इस विधि के पूरे होते ही गर्भगृह के पट आम श्रद्धालुओं के लिए बंद कर दिए गए। मंदिर प्रबंधन ने बताया कि सामान्य दर्शन अब लगभग 45 घंटे के बाद आज दोपहर 3 बजे से फिर शुरू हो सकेंगे।
कुंभाभिषेक एक बारह वर्षीय चक्र में होने वाला विशेष धार्मिक अनुष्ठान है, जिसमें मंदिर के संपूर्ण वास्तु, गर्भगृह और देवी विग्रहों का पुनरुद्धार और पुनर्प्राण प्रतिष्ठा की जाती है। इस बार का आयोजन भी पूरी तरह दक्षिण भारतीय पद्धति के अनुसार हो रहा है, जिसके लिए तमिलनाडु से वैदिक विद्वानों और विद्धानों का दल विशेष रूप से वाराणसी पहुंचा है। सुबह के सत्र में गणपति पूजन, मंडपम पूजन और प्रधान कलश पूजन के बाद आराधना और हवन का आयोजन किया गया। तमिलनाडु से आए ग्यारह वैदिक आचार्यों के मंत्रोच्चार से पूरा परिसर आध्यात्मिक ऊर्जा से भर गया और वातावरण में वैदिक ध्वनि लगातार गूंजती रही।
कुंभाभिषेक के अंतर्गत मंदिर में नए देव विग्रहों की स्थापना भी की जानी है। काशी की विशालाक्षी, कांची की कामाक्षी, मदुरै की मीनाक्षी, भगवान गणेश और भगवान कार्तिकेय की नई प्रस्तर मूर्तियां रविवार को नगर भ्रमण के लिए निकाली गईं। इस शोभायात्रा की शुरुआत मंदिर परिसर से हुई और मीरघाट, त्रिपुरा भैरवी, दशाश्वमेध और गोदौलिया होते हुए वापस मंदिर पहुंचकर समाप्त हुई। नगर भ्रमण के उपरांत इन विग्रहों को उस स्थान पर स्थापित कर दिया गया, जहां आज उनकी प्राण प्रतिष्ठा की जाएगी।
इस पावन अवसर पर दक्षिण भारत सहित देश के अनेक हिस्सों से भक्त वाराणसी पहुंचे हैं। कार्यक्रम का संचालन काशी नाट्टकोट्टई नगर क्षत्रम मैनेजिंग सोसाइटी के सहयोग से किया जा रहा है। सभी धार्मिक विधान डॉ शिवाश्री केपी गुरुकल के आचार्यत्व में संपन्न हो रहे हैं। श्रद्धालुओं का कहना है कि इतने बड़े स्तर पर दक्षिण भारतीय विधि विधान से कुंभाभिषेक कराना काशी की आध्यात्मिक विविधता का एक अद्भुत उदाहरण है।
कुंभाभिषेक के अंतिम चरण में आज प्राण प्रतिष्ठा का आयोजन होगा। प्राण प्रतिष्ठा के बाद गर्भगृह पुनः देवमय होकर भक्तों के लिए खुल जाएगा और मंदिर में दर्शन व्यवस्था सामान्य रूप से शुरू हो जाएगी। इस अनुष्ठान को मंदिर के इतिहास में एक बड़े धार्मिक पल के रूप में देखा जा रहा है, जिसका प्रभाव आने वाले वर्षों तक श्रद्धालुओं और मंदिर दोनों पर दिखाई देगा।