पद्मविभूषण पंडित छन्नूलाल मिश्र का 89 वर्ष की आयु में निधन, संगीत जगत में शोक की लहर

बनारस की संगीत परंपरा के ध्वजवाहक पद्मविभूषण पंडित छन्नूलाल मिश्र का 89 वर्ष की आयु में निधन हो गया, संगीत जगत में गहरा शोक।

Thu, 02 Oct 2025 08:03:41 - By : SANDEEP KR SRIVASTAVA

मिर्जापुर/वाराणसी: भारतीय शास्त्रीय संगीत की दुनिया से गुरुवार तड़के एक बेहद दुखद समाचार सामने आया। बनारस की संगीत परंपरा को वैश्विक पहचान दिलाने वाले और पद्मविभूषण सम्मान से अलंकृत शास्त्रीय गायक पंडित छन्नूलाल मिश्र का निधन हो गया। वे 89 वर्ष के थे। लंबे समय से अस्वस्थ चल रहे पंडित जी ने आज सुबह लगभग 4.15 बजे मिर्जापुर में अपनी पुत्री प्रो. नम्रता मिश्र के आवास पर अंतिम सांस ली। उनके निधन से पूरे संगीत जगत और सांस्कृतिक धारा में गहरा शोक व्याप्त है।

लंबे समय से बीमार चल रहे थे पंडित जी
पिछले सात महीनों से उनकी सेहत बिगड़ती जा रही थी। परिवार ने बताया कि वे सीने में दर्द, श्वास संबंधी परेशानी और बेड सोर जैसी गंभीर समस्याओं से जूझ रहे थे। 11 सितंबर को तबीयत अचानक बिगड़ने पर उन्हें मिर्जापुर के ओझला स्थित रामकृष्ण मिशन सेवाश्रम हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया। जांच में डॉक्टरों ने दिल का दौरा पड़ने की पुष्टि की। दो यूनिट रक्त चढ़ाया गया और उनकी हालत को स्थिर करने की कोशिश की गई।

इसके बाद 13 सितंबर की रात उन्हें बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) के सर सुंदरलाल अस्पताल लाया गया। वहां विशेषज्ञ डॉक्टरों की टीम ने बताया कि उन्हें एक्यूट रेस्पिरेटरी डिस्ट्रेस सिंड्रोम (ARDS) है, जिसमें फेफड़ों में गंभीर सूजन हो जाती है। इसके अलावा वे टाइप-2 डायबिटीज, उच्च रक्तचाप, ऑस्टियोआर्थराइटिस और प्रोस्टेट बढ़ने की बीमारी से भी पीड़ित थे। हालत में थोड़ा सुधार होने के बाद उन्हें 27 सितंबर को डिस्चार्ज कर दिया गया था और वे बेटी नम्रता के घर मिर्जापुर आ गए थे। लेकिन गुरुवार सुबह अचानक स्वास्थ्य बिगड़ने से उनका निधन हो गया।

पारिवारिक स्थिति और अंतिम संस्कार
पंडित जी की पुत्री नम्रता मिश्र ने बताया कि अंतिम संस्कार आज शाम काशी के मणिकर्णिका घाट पर किया जाएगा। परिवार में फिलहाल उनकी चार बेटियां और एक बेटा है। उनकी पत्नी और बड़ी बेटी संगीता मिश्रा का निधन 2021 में कोरोना संक्रमण के दौरान चार दिन के अंतराल पर हो गया था। पत्नी मनोरमा मिश्र ने 26 अप्रैल 2021 को अंतिम सांस ली, जबकि बेटी संगीता ने 29 अप्रैल को दम तोड़ दिया था। इस दोहरे आघात ने पंडित जी को गहराई तक झकझोर दिया था।

हरिहरपुर से काशी तक का संगीतमय सफर
पंडित छन्नूलाल मिश्र का जन्म 3 अगस्त 1936 को उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ जिले के हरिहरपुर गांव में हुआ था। यह गांव भारत के उन चुनिंदा स्थलों में है, जहां घर-घर में संगीत की परंपरा जीवित है। उनके दादा गुदई महाराज शांता प्रसाद प्रख्यात तबला वादक थे। पंडित जी ने संगीत की प्रारंभिक शिक्षा अपने पिता बद्री प्रसाद मिश्र से ली। मात्र छह वर्ष की आयु में उन्होंने रियाज शुरू कर दिया और नौ वर्ष की आयु में किराना घराने के उस्ताद अब्दुल गनी खान से खयाल गाने की शिक्षा प्राप्त की। आगे चलकर संगीत के कई आचार्यों से मार्गदर्शन लिया और अपनी गायकी को निखारा।

बिहार के मुजफ्फरपुर में उन्होंने संगीत की उच्च शिक्षा ली। वे खयाल, ठुमरी, दादरा, भजन, कजरी और चैती गायन में विशेष प्रवीणता रखते थे। चार दशक पहले उन्होंने वाराणसी को अपनी कर्मभूमि बनाया और यहीं से संगीत साधना को नई ऊंचाई दी। बनारस के घाटों और मंदिरों में उनकी गायकी का असर अलग ही आभा बिखेरता था।

संगीत साधना और राष्ट्रीय सम्मान
✅पंडित जी के सुरों की गूंज केवल काशी तक सीमित नहीं रही, बल्कि विदेशों तक पहुंची। वे शास्त्रीय और लोकधुनों के संगम के लिए खास तौर पर जाने जाते थे। उनकी गायकी में लोकजीवन, अध्यात्म और भक्ति का अद्भुत मेल देखने को मिलता था।

✅वर्ष 2000 में उन्हें संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

✅वर्ष 2010 में भारत सरकार ने उन्हें पद्मभूषण से अलंकृत किया।

✅वर्ष 2014 में वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के वाराणसी से नामांकन के दौरान प्रस्तावक बने।

✅वर्ष 2021 में उन्हें देश के दूसरे सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्मविभूषण से नवाजा गया।

✅उनकी अमर रचना "खेले मसाने में होली" आज भी बनारस की संस्कृति और फागुन की राग-रंग परंपरा का अभिन्न हिस्सा मानी जाती है।

निजी जीवन की कठिनाइयाँ और मानसिक मजबूती
पंडित जी ने जीवन में अनेक आघात सहे। पत्नी और बड़ी बेटी की असमय मृत्यु के बाद वे गहरे अवसाद में चले गए थे। इसके बावजूद उन्होंने संगीत साधना को जारी रखा और कहा था, "संगीत ही मेरी ताकत है और यही मुझे जीने का सहारा देता है।"

संगीत जगत में शोक की लहर
पंडित छन्नूलाल मिश्र के निधन से संगीत जगत स्तब्ध है। बनारस घराना और भारतीय शास्त्रीय संगीत ने एक ऐसा सितारा खो दिया, जिसकी भरपाई असंभव है। कलाकारों, शिष्यों और संगीत प्रेमियों ने उनकी आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना की है।

आज मणिकर्णिका घाट पर जब उनके पार्थिव शरीर का अंतिम संस्कार होगा, तब घाट की लहरों में, शंख-घंटों की ध्वनि और रुदन के बीच, मानो उनकी गायकी की गूंज भी सुनाई देगी।

पद्मविभूषण पंडित छन्नूलाल मिश्र का 89 वर्ष की आयु में निधन, संगीत जगत में शोक की लहर

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