Mon, 06 Oct 2025 12:48:16 - By : Shriti Chatterjee
वाराणसी: भारत में आश्विन माह की पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है, जो विशेष रूप से बंगाल, असम और ओडिशा में कोजागरी लक्ष्मी पूजा या लोक्खी पूजा के रूप में प्रसिद्ध है। यह पर्व माता लक्ष्मी को समर्पित है और इसे समृद्धि, सुख और खुशहाली का प्रतीक माना जाता है। इस वर्ष शरद पूर्णिमा और कोजागरी लक्ष्मी पूजा 6 अक्टूबर 2025, सोमवार को मनाई जाएगी।
इतिहास और पौराणिक महत्व
शरद पूर्णिमा का उल्लेख प्राचीन वेद और पुराणों में मिलता है। इसे खास तौर पर चंद्रमा की पूर्णिमा रात के लिए महत्वपूर्ण माना गया है। पुराणों के अनुसार, इस रात चंद्रमा की किरणें औषधीय गुणों से भरपूर होती हैं। बंगाल और आस-पास के क्षेत्रों में इसे कोजागरी लक्ष्मी पूजा के रूप में मनाया जाता है। 'कोजागरी' का अर्थ है जागरण करना, और माना जाता है कि इस रात माता लक्ष्मी अपने भक्तों के घर आती हैं।
इस व्रत की पौराणिक कथा ऋषि वालाखिल्य द्वारा वर्णित है। उन्होंने बताया कि शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को श्रद्धा और जागरण के साथ पूजा करने से माता लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं और भक्तों को धन, सुख और समृद्धि प्रदान करती हैं। गरीब ब्राह्मण वालित की कथा इस व्रत की महत्ता को दर्शाती है, जिन्होंने जागरण और पूजा से अपनी वित्तीय स्थिति सुधारी।
पूजा और अनुष्ठान
पूजा की तैयारी दिनभर चलती है। घरों को साफ किया जाता है और पूजा स्थल को सजाया जाता है। पारंपरिक अल्पना, चावल के घोल से बनाई जाने वाली लाल और सफेद डिजाइन, घर के प्रवेश द्वार और पूजा क्षेत्र को सजाती है। पूजा थाली में फूल, फल, दीप और कमल रखे जाते हैं। पूजा आरती के बाद प्रसाद वितरण किया जाता है, जिसमें खीर, नारियल लड्डू, हलवा पूरी, खिचड़ी और पेयश प्रमुख होते हैं। खासतौर पर खीर का महत्व बहुत बड़ा है, क्योंकि इसे माता लक्ष्मी को भोग के रूप में अर्पित किया जाता है और रातभर जागरण करने वाले भक्त इसका सेवन करते हैं।
जागरण और भक्ति
रातभर जागरण इस पूजा का मुख्य अंग है। परिवार दीप प्रज्वलित कर भजन और कीर्तन करते हैं। पूजा कथा सुनकर माता लक्ष्मी की कृपा प्राप्ति की कामना की जाती है। जागरण के दौरान खीर और अन्य प्रसाद का वितरण किया जाता है। इसे खाने से यह विश्वास किया जाता है कि माता लक्ष्मी घर में वास करती हैं और समृद्धि का आशीर्वाद देती हैं।
कोजागरी लक्ष्मी पूजा न केवल धार्मिक महत्व रखती है, बल्कि यह पारिवारिक और सामाजिक जुड़ाव का भी प्रतीक है। पूरे बंगाल, असम और ओडिशा में घरों और मंदिरों में दीपों की रौशनी, भजन की गूंज और खीर के प्रसाद से उत्साह और आध्यात्मिक ऊर्जा का वातावरण बनता है।