Fri, 12 Sep 2025 12:58:22 - By : Shriti Chatterjee
वाराणसी जिला एवं सत्र न्यायालय ने नगर निगम में 21 वर्ष पूर्व हुई बलवा और मारपीट की घटना के मामले में आरोपित पूर्व उपसभापति और पार्षदों को दोषमुक्त कर दिया। मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट मनीष कुमार ने फैसला सुनाते हुए कहा कि अभियोजन पक्ष आरोप साबित करने में असफल रहा है। अदालत ने नाजमद पूर्व उपसभापति शैलेंद्र यादव उर्फ बिल्लू, वर्तमान पार्षद राजेश कुमार यादव उर्फ चल्लू, पूर्व पार्षद ओमप्रकाश सिंह और भरत लाल को बरी कर दिया।
अदालत ने कहा कि गवाहों, चार्जशीट और साक्ष्यों के बावजूद कोई ठोस आधार सामने नहीं आया। इस कारण संदेह का लाभ आरोपितों को दिया गया और सभी को दोषमुक्त कर दिया गया। बचाव पक्ष की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता अनुज यादव, बृजपाल सिंह यादव गुड्डू, नरेश यादव और संदीप यादव ने पक्ष रखा।
मामले की शुरुआत 18 अक्टूबर 2004 को हुई थी जब नगर निगम की कार्यकारिणी समिति की बैठक चल रही थी। इस बैठक में तत्कालीन नगर आयुक्त लालजी राय, उप नगर आयुक्त केएन राय, सुभाष पांडेय, सतीश चंद्र मिश्र, रमेश चंद्र सिंह और सहायक नगर आयुक्त समेत अन्य अधिकारी मौजूद थे। इसी दौरान आरोप है कि कुछ पार्षद और उनके समर्थक अचानक बैठक में घुस आए और हंगामा करने लगे। उन्होंने नगर आयुक्त पर आरोप लगाया कि वह ठेका कार्य बंद करवा रहे हैं और उनकी बात नहीं सुन रहे हैं। आरोपितों ने धमकी दी और ललकारा कि नगर आयुक्त और अधिकारियों को जान से मार डालना चाहिए।
वाद में दर्ज आरोपों के अनुसार, हंगामा करने वालों ने कार्यकारिणी कक्ष का दरवाजा भीतर से बंद कर दिया और अधिकारियों व कर्मचारियों को लात घूंसों से मारने लगे। इस दौरान एक अधिकारी की उंगली में गंभीर चोट आई और सभागार में तोड़फोड़ भी की गई। तत्कालीन नगर आयुक्त लालजी राय ने घटना की प्राथमिकी सिगरा थाने में दर्ज कराई थी।
विवेचना के दौरान शैलेंद्र यादव उर्फ बिल्लू, राजेश कुमार यादव उर्फ चल्लू, मंगल प्रजापति, ओमप्रकाश सिंह, नईम अहमद, भरत लाल, शंभूनाथ बाटुल और मुरारी यादव के नाम सामने आए। पुलिस ने इन्हें आरोपित बनाया और मामले को अदालत में भेजा।
सुनवाई के दौरान पूर्व पार्षद मंगल प्रजापति, शंभूनाथ बाटुल और मुरारी यादव की मृत्यु हो जाने के कारण उनके खिलाफ कार्यवाही समाप्त कर दी गई। जबकि शेष आरोपितों के खिलाफ पर्याप्त साक्ष्य न होने के कारण अदालत ने उन्हें दोषमुक्त कर दिया।
इस फैसले के बाद नगर निगम से जुड़ा यह लंबा मामला खत्म हो गया है। अदालत के आदेश से आरोपितों और उनके परिजनों को राहत मिली है जबकि अभियोजन पक्ष अपनी दलीलों को साबित करने में नाकाम रहा।