Wed, 05 Nov 2025 19:04:35 - By : SANDEEP KR SRIVASTAVA
वाराणसी: काशी आस्था, अध्यात्म और भारतीय संस्कृति की राजधानी कही जाने वाली काशी ने बुधवार की रात अपने दिव्य वैभव से एक बार फिर पूरी दुनिया को मंत्रमुग्ध कर दिया। देव दीपावली 2025 के अवसर पर जब संध्या ढली और गंगा के दोनों तटों पर लाखों दीपों की पंक्तियाँ एक साथ प्रज्वलित हुईं, तब ऐसा प्रतीत हुआ मानो धरती पर स्वयं आकाश उतर आया हो। प्रकाश, भक्ति और श्रद्धा के इस अनुपम संगम ने सम्पूर्ण वाराणसी को स्वर्गिक आभा से आलोकित कर दिया।
इस ऐतिहासिक क्षण के साक्षी बने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, जिन्होंने स्वयं गंगा तट पर पहुंचकर दीप प्रज्ज्वलन किया और देवताओं की इस दिवाली में भागीदार बने। मुख्यमंत्री के साथ प्रदेश के पर्यटन एवं संस्कृति मंत्री जयवीर सिंह भी उपस्थित रहे, जिन्होंने श्रद्धालुओं के साथ मिलकर दीप जलाए और मां गंगा से प्रदेश की सुख-समृद्धि की कामना की।
देव दीपावली का यह पर्व काशी के लिए केवल एक आयोजन नहीं, बल्कि उसकी आत्मा का उत्सव है। इस वर्ष करीब 15 लाख दीपों की रौशनी ने गंगा तटों से लेकर मंदिरों और गलियों तक हर कोने को आलोकित कर दिया। घाटों पर जलते दीपों की लंबी कतारें गंगा की लहरों में झिलमिलाते तारों की भांति चमक रहीं थीं। दशाश्वमेध, अस्सी, शीतला, नमो और राजघाट से लेकर गाय घाट, पंचगंगा घाट, दंडकारिणी घाट और तुलसी घाट तक, हर स्थान पर सामूहिक गंगा आरती का दिव्य आयोजन हुआ।
घंटों की गूंज, शंखनाद, और ‘हर हर महादेव’ के जयघोष से जब वातावरण गूंज उठा, तो श्रद्धालुओं के चेहरे पर भक्ति का प्रकाश और हृदय में अलौकिक ऊर्जा प्रवाहित होने लगी। हर दीप मानो अपने भीतर एक कहानी कह रहा था, श्रद्धा, संस्कृति और समर्पण की।
इस अवसर पर पर्यटन एवं संस्कृति मंत्री जयवीर सिंह ने कहा कि “प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मार्गदर्शन और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में काशी ने आज विश्व पटल पर अपने प्राचीन गौरव को पुनः स्थापित किया है। यह केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि सांस्कृतिक चेतना, पर्यावरणीय संवेदनशीलता और आयोजन क्षमता का अद्भुत उदाहरण है। आज काशी न केवल श्रद्धा की धुरी है, बल्कि यह ‘वैश्विक संस्कृति और नवाचार’ का भी केंद्र बन चुकी है।”
उन्होंने आगे कहा कि देव दीपावली ने यह सिद्ध कर दिया है कि भारत की आत्मा उसकी संस्कृति में बसती है, और काशी उसका सबसे उज्ज्वल प्रतीक है।
जब सूर्य अस्त हुआ और पहली दीये की लौ जली, तभी से गंगा का प्रवाह तारों की धारा में बदल गया। घाटों से उठती आरती की लहरें, मंत्रोच्चार की ध्वनि और दीयों की उजली आभा, सब मिलकर एक ऐसी दृश्यावली रच रहे थे जिसे देखकर हर कोई निःशब्द रह गया। नमो घाट से लेकर अस्सी घाट तक श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ पड़ी। हवा में तैरती फूलों की खुशबू और दीयों की टिमटिमाती रौशनी के बीच पूरा वातावरण एक अद्वितीय आध्यात्मिक ऊर्जा से भर गया।
इस वर्ष देव दीपावली को और भी भव्य बनाने के लिए प्रशासन ने विशेष प्रबंध किए। आठ प्रमुख घाटों पर एक साथ सामूहिक गंगा आरती का आयोजन किया गया। इस व्यवस्था से गंगा तट के किसी भी हिस्से पर मौजूद श्रद्धालु इस दिव्य आरती के दर्शन से वंचित नहीं रहे।
88 घाटों और 97 प्रमुख स्थलों पर दीपों की जगमगाहट देखने लायक थी। शहर भर में 83 स्थानीय समितियों ने दीप प्रज्ज्वलन की जिम्मेदारी संभाली। लगभग 08 लाख दीप केवल घाटों पर जले, जबकि 02 लाख दीप शहर के प्रमुख स्थलों और मार्गों पर जगमगाए। नागरिकों और पर्यटकों के हाथों जले असंख्य दीपों ने इस संख्या को 15 लाख के पार पहुंचा दिया। जो वाराणसी की सामूहिक चेतना और भागीदारी का प्रतीक बन गया।
देव दीपावली का आकर्षण केवल भारत तक सीमित नहीं रहा। दुनिया भर से आए सैकड़ों विदेशी पर्यटक भी इस आयोजन के साक्षी बने। ग्रीस से आई पर्यटक मेलिसा ने भावुक होकर कहा, “मैंने ऐसा दृश्य पहले कभी नहीं देखा। जब गंगा पर लाखों दीप एक साथ जले, तो लगा मानो आसमान और धरती का मिलन हो गया हो। यह केवल रोशनी का नहीं, आत्मा के जागरण का उत्सव है।” जापान, अमेरिका, फ्रांस और ऑस्ट्रेलिया से आए कई अन्य पर्यटकों ने भी इसे “जीवन का सबसे अद्भुत अनुभव” बताया।
देव दीपावली 2025 ने एक बार फिर यह प्रमाणित कर दिया कि काशी यूं ही दुनिया के सबसे प्राचीन और जीवंत नगरों में नहीं गिनी जाती। यहां की परंपराएं, रीति-रिवाज और सांस्कृतिक चेतना सदियों से मानवता के मार्ग को आलोकित कर रही हैं।
साफ-सुथरे घाट, रंगीन प्रकाश सज्जा, नदियों पर झिलमिलाती रोशनी और एकता की भावना से ओतप्रोत जनसागर, इन सबने मिलकर काशी को उस रात एक जीवंत मंदिर में बदल दिया। इस भव्य आयोजन में राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) रवींद्र जायसवाल, मेयर अशोक तिवारी, जनप्रतिनिधियों, प्रशासनिक अधिकारियों और हजारों स्वयंसेवकों की सक्रिय भूमिका रही।
देव दीपावली 2025 केवल एक उत्सव नहीं, बल्कि वह क्षण था जब काशी ने अपनी प्राचीन आत्मा और आधुनिक पहचान का अद्भुत संगम प्रस्तुत किया। गंगा के तटों पर लहराते दीपों ने न केवल अंधकार को मिटाया, बल्कि मानवता, आस्था और एकता के प्रकाश से पूरी दुनिया को आलोकित कर दिया।
काशी ने एक बार फिर साबित कर दिया, जहां गंगा बहती है, वहीं से संस्कृति और सभ्यता का प्रकाश दुनिया में फैलता है।