Tue, 16 Sep 2025 13:09:28 - By : Shriti Chatterjee
उत्तर भारत में लगातार हो रही बारिश और ऊपरी क्षेत्रों से छोड़े गए पानी के कारण गंगा का जलस्तर एक बार फिर से चेतावनी बिंदु के करीब पहुंच गया है। यह स्थिति वाराणसी के लिए और भी चुनौतीपूर्ण है क्योंकि आने वाले समय में देव दीपावली और छठ जैसे बड़े पर्व मनाए जाने हैं। जानकारी के अनुसार, फिलहाल गंगा का जलस्तर 69.58 मीटर दर्ज किया गया है और यह पांच सेंटीमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से घट रहा है। हालांकि पानी कम हो रहा है, लेकिन घाटों और आसपास के इलाकों में जलभराव की स्थिति बरकरार है जिससे आम जनजीवन और व्यापार दोनों बुरी तरह प्रभावित हैं।
पिछले तीन महीनों से गंगा घाट पूरी तरह जलमग्न हैं और नाव संचालन बंद पड़ा है। इससे पर्यटन गतिविधियों पर गहरा असर पड़ा है। गंगा किनारे रोज़ी-रोटी चलाने वाले सैकड़ों दुकानदारों की दुकानें बीते 85 दिनों से बंद हैं। नाविकों को भी भारी नुकसान झेलना पड़ रहा है क्योंकि पर्यटकों को न गंगा दर्शन का अवसर मिल रहा है और न ही नौका विहार का। इन सबके बीच वाराणसी के घाट, जो अपनी धार्मिक और सांस्कृतिक महत्ता के कारण देश दुनिया में प्रसिद्ध हैं, लगातार वीरान और सुनसान बने हुए हैं।
अब सबसे बड़ी चिंता त्योहारों को लेकर है। वाराणसी में देव दीपावली और छठ पर्व दोनों का खास महत्व है। देव दीपावली महज 50 दिन बाद है और इसके लिए हर साल गंगा घाटों को सजाया और रोशन किया जाता है। लाखों श्रद्धालु और पर्यटक इन आयोजनों में शामिल होते हैं। नगर निगम के अनुसार गंगा घाटों पर जमी सिल्ट और गाद की सफाई में 60 से 90 दिन का समय लग सकता है। इस लिहाज से अगर जलस्तर जल्द कम नहीं हुआ तो घाटों की सफाई समय पर पूरी कर पाना मुश्किल होगा। इसका सीधा असर देव दीपावली और छठ पर्व की भव्यता पर पड़ सकता है।
मणिकर्णिका और हरिश्चंद्र घाट जैसे पारंपरिक शवदाह स्थलों पर भी पानी भर जाने से स्थिति गंभीर बनी हुई है। यहां अंतिम संस्कार की प्रक्रिया बाधित हो रही है। प्रशासन ने अस्थायी इंतजाम किए हैं, लेकिन जलभराव के कारण परंपरागत विधियों से शवदाह में कठिनाई आ रही है। स्थानीय लोगों का कहना है कि यह पहली बार है जब सितंबर माह में गंगा का जलस्तर तीन बार चेतावनी बिंदु के करीब पहुंचा है।
विशेषज्ञ मानते हैं कि यह स्थिति जल प्रबंधन और घाटों की संरचना के लिए बड़ा संकेत है। अभी गंगा का जलस्तर धीरे घट रहा है, लेकिन जब तक घाट पूरी तरह सूख नहीं जाते और सफाई शुरू नहीं होती, तब तक देव दीपावली जैसे आयोजनों पर अनिश्चितता बनी रहेगी। वाराणसी जैसे धार्मिक और सांस्कृतिक केंद्र में यह समस्या न केवल स्थानीय व्यापारियों और नाविकों के लिए, बल्कि पूरे शहर की आस्था और पहचान के लिए भी बड़ी चुनौती साबित हो रही है।