Tue, 17 Jun 2025 21:00:43 - By : SANDEEP KR SRIVASTAVA
वाराणसी: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र और उत्तर प्रदेश की प्रशासनिक सख्ती की मिसाल कहे जाने वाले वाराणसी नगर निगम से एक बार फिर भ्रष्टाचार की बदबू उठी है। मंगलवार को नगर निगम कार्यालय में उस समय हड़कंप मच गया जब एंटी करप्शन टीम ने त्वरित कार्रवाई करते हुए कनिष्ठ लिपिक रामविलास शर्मा को पांच हजार रुपये की रिश्वत लेते हुए रंगेहाथ पकड़ लिया।
जानकारी के मुताबिक, एक टेलीकॉम कंपनी ने रोड कटिंग की अनुमति के लिए नगर निगम में आवेदन किया था। इस प्रक्रिया को आगे बढ़ाने के लिए संबंधित फाइल रामविलास शर्मा के पास थी। आरोप है कि शर्मा ने उक्त अनुमति प्रदान करने के एवज में कंपनी से खुलेआम पांच हजार रुपये की रिश्वत की मांग की। कंपनी के अधिकारियों ने इस बात की शिकायत एंटी करप्शन विभाग से की, जिसके बाद पूरी योजना के तहत टीम ने जाल बिछाया और उसे रंगेहाथ पकड़ा।
जैसे ही शर्मा ने रिश्वत की रकम स्वीकार की, मौके पर मौजूद टीम ने उसे तत्काल गिरफ्तार कर लिया। फिर उसे सिगरा थाने ले जाया गया, जहां विधिक कार्यवाही की जा रही है। इस पूरे घटनाक्रम के दौरान नगर निगम कार्यालय में अफरा-तफरी मच गई और कर्मचारियों के बीच खामोशी छा गई।
यह मामला इस ओर इशारा करता है कि नगर निगम कार्यालय में रिश्वतखोरी एक संरचित व्यवस्था की तरह काम कर रही है। यह तो वह मामला है जो उजागर हो गया, लेकिन सच्चाई यह है कि ऐसे न जाने कितने मामले हैं जो रोजमर्रा के कामकाज में दबा दिए जाते हैं या फिर पीड़ित चुप्पी साध लेते हैं। किसी को नक्शा पास करवाना हो, दुकान का लाइसेंस लेना हो, नाला सफाई की शिकायत दर्ज करवानी हो या सड़क कटिंग की मंजूरी। हर कदम पर फाइलें तब तक नहीं चलतीं जब तक जेबें गरम न कर दी जाएं।
राज्य सरकार भले ही 'जीरो टॉलरेंस फॉर करप्शन' की नीति पर जोर दे रही हो, लेकिन जमीनी हकीकत इससे कोसों दूर है। नगर निगम जैसे संवेदनशील विभागों में भ्रष्टाचार की यह स्थिति उस नीति को सीधा-सीधा चुनौती देती है। यह घटना कोई अकेली या इत्तेफाक नहीं है, बल्कि यह संकेत है कि कहीं न कहीं पूरी व्यवस्था में जवाबदेही और पारदर्शिता का अभाव है।
स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ताओं और जनप्रतिनिधियों ने इस घटना की कड़ी निंदा की है और नगर निगम की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े किए हैं। उनका कहना है कि जब एक साधारण अनुमति के लिए भी रिश्वत देनी पड़े, तो आम नागरिकों के अधिकारों का क्या होगा?
अब निगाहें नगर निगम प्रशासन और सरकार की ओर हैं कि इस मामले को लेकर क्या ठोस कदम उठाए जाते हैं। क्या केवल रामविलास शर्मा की गिरफ्तारी से यह भ्रष्टाचार रुक जाएगा? या फिर यह महज एक और फाइल बनकर अलमारी में दबा दी जाएगी?
बहरहाल, यह घटना फिर से ये सोचने पर मजबूर करती है कि क्या वाकई हम एक भ्रष्टाचार-मुक्त व्यवस्था की ओर बढ़ रहे हैं या यह लड़ाई अभी भी केवल कागजों में ही लड़ी जा रही है।