Tue, 17 Jun 2025 23:22:08 - By : SANDEEP KR SRIVASTAVA
वाराणसी: सोमवार की शाम एक दिल दहला देने वाली घटना सामने आई, जिसने एक बार फिर से यह सवाल खड़ा कर दिया कि क्या हमारी व्यवस्था कमजोर और संवेदनहीन हो चुकी है? लालपुर क्षेत्र में रहने वाले एक 10वीं के छात्र संदीप यादव ने आत्महत्या कर ली। उसकी मौत केवल एक छात्र का जीवन समाप्त होना नहीं है, बल्कि यह हमारी सामाजिक और प्रशासनिक व्यवस्था की विफलता की करुण कथा है। संदीप कोचिंग सेंटर में साथ पढ़ने वाले कुछ छात्रों की धमकियों और दर्ज हुई एफआईआर से मानसिक रूप से इतना टूट चुका था कि उसने अपने ही किराए के कमरे में फांसी लगाकर अपनी जान दे दी।
संदीप यादव, गाजीपुर के धामूपुर निवासी और बिहार में जूनियर इंजीनियर पद पर कार्यरत सतीश चंद्र यादव का बेटा था। वाराणसी के लालपुर क्षेत्र में संदीप अपनी मां रीमा यादव और छोटे भाई प्रदीप के साथ किराए के मकान में रहता था। वह सेंट जेवियर्स स्कूल में कक्षा 10वीं का छात्र था और भोजूबीर स्थित एक प्रतिष्ठित कोचिंग संस्था 'फिजिक्स वाला' में पढ़ाई करता था।
इन सारे घटनाक्रम की शुरुआत 11 जून को हुई थी, जब संदीप किसी काम से अर्दली बाजार गया था। वहीं उसकी मुलाकात अपने कोचिंग के सहपाठी अक्षत और उसके कुछ साथियों से हुई। किसी बात को लेकर वहां झगड़ा हुआ और विवाद ने मारपीट का रूप ले लिया। इस घटना में अक्षत घायल हो गया। इसके बाद अक्षत की मां प्रियंका सिंह ने 13 जून को कैंट थाने में संदीप और उसके कुछ दोस्तों, रुद्राक्ष, ईशान और यश के खिलाफ एफआईआर दर्ज करा दी।
एफआईआर दर्ज होने की सूचना जब संदीप को मिली, तो वह घबरा गया। उसने कई बार कैंट थाने जाकर अपनी सफाई दी और क्रॉस एफआईआर की मांग की। उसने बताया कि वह भी पीड़ित था और उस पर झूठा केस हुआ है, लेकिन पुलिस ने उसकी शिकायत को गंभीरता से नहीं लिया। इस बीच अक्षत और उसके साथियों ने कोचिंग में संदीप को देख लेने और उसका करियर बर्बाद कर देने की धमकियां दीं। मानसिक तनाव, सामाजिक अपमान और पुलिस से निराश होकर संदीप ने 17 जून की शाम अपने कमरे में पंखे से फांसी लगा ली।
घटना की जानकारी मंगलवार सुबह तब हुई जब संदीप की मां रीमा ने उसका कमरा खोला। संदीप फंदे से लटका हुआ था। चीख-पुकार सुनकर आसपास के लोग इकट्ठा हो गए। सूचना पर पहुंची पुलिस ने शव को कब्जे में लेकर पोस्टमॉर्टम के लिए भेजा और बाद में गाजीपुर में अंतिम संस्कार किया गया।
इस पूरे मामले में संदीप के परिजन बेहद आक्रोशित हैं। मां रीमा का कहना है कि यदि पुलिस चाहती, तो छात्रों के इस विवाद को एनसीआर दर्ज कर समझौते के जरिए सुलझा सकती थी। बच्चों के झगड़े को इस तरह मुकदमे तक नहीं ले जाना चाहिए था। “वे छात्र हैं, अपराधी नहीं। अगर पुलिस ने सही समय पर हमारी बात सुनी होती, तो आज मेरा बेटा जिंदा होता,” उन्होंने रोते हुए कहा।
इधर, कैंट थाने के इंस्पेक्टर राजकुमार का कहना है कि दोनों पक्षों को थाने बुलाकर समझौते की कोशिश की गई थी। घायल छात्र अक्षत को अस्पताल में भर्ती भी कराया गया था। “हमने अक्षत के परिजनों को समझाया था कि यह छात्रों का मामला है और इसे शांतिपूर्वक निपटाया जा सकता है। लेकिन उन्होंने समझौते से इनकार कर दिया और तहरीर दी, जिस पर मुकदमा दर्ज करना पड़ा। संदीप की तरफ से कोई लिखित शिकायत हमें नहीं मिली थी,” उन्होंने स्पष्ट किया।
यह मामला केवल एक आत्महत्या का नहीं है, बल्कि हमारे सामाजिक और कानूनी ढांचे की उस चुप्पी का उदाहरण है, जिसमें एक मासूम की आवाज गुम हो जाती है। संदीप शायद डर गया था, लेकिन उससे भी बड़ी बात यह है कि वह कहीं से भी यह नहीं महसूस कर पाया कि उसकी बात सुनी जाएगी, उसकी हिफाजत की जाएगी।
अब जब वह नहीं है, तब हर कोई उसकी मौत के कारणों पर चर्चा कर रहा है। लेकिन शायद अगर उसकी बात समय रहते सुनी गई होती, तो आज वह एक उज्जवल भविष्य की ओर बढ़ रहा होता, न कि एक दुखद अंत की ओर। यह घटना हमें यही सबक देती है कि हमें अपने बच्चों की मानसिक स्थिति को समझने, संवाद करने और समय रहते मदद देने की जरूरत है, ताकि कोई और संदीप इस तरह खामोशी में न चला जाए।