Mon, 23 Jun 2025 15:38:49 - By : SANDEEP KR SRIVASTAVA
वाराणसी: हरहुआ क्षेत्र में एक ऐसी घटना सामने आई जिसने न केवल मानव संवेदनाओं को झकझोरा बल्कि यह भी याद दिला दिया कि कानून की चौखट पर खड़ा हर नागरिक न्याय की अपेक्षा करता है । चाहे वह आम हो या खास। यह मामला उस क्षण शुरू हुआ जब अधिवक्ता अलीम ने हरहुआ पुलिस चौकी के दो पुलिसकर्मियों पर अभद्रता का आरोप लगाया। पुलिस की वर्दी एक भरोसे की निशानी होती है, लेकिन जब वही वर्दी किसी की अस्मिता और आत्मसम्मान को चोट पहुँचाए, तब सवाल उठना स्वाभाविक है।
घटना की गंभीरता को देखते हुए वाराणसी के डीसीपी (गोमती जोन) आकाश पटेल ने तत्काल संज्ञान लिया और पूरे मामले की निष्पक्ष जांच के निर्देश दिए। जांच की रफ्तार तेज रही, और परिणामों ने इस बात की पुष्टि की कि हर शिकायत सिर्फ एक कागज नहीं होती, उसमें किसी का टूटता भरोसा, अपमान और पीड़ा भी दर्ज होती है। जांच में दोष सिद्ध होने के बाद एसआई अमर चंद्र शुक्ला और सिपाही उपेंद्र कुमार को लाइन हाजिर कर दिया गया।
यह कार्रवाई महज एक औपचारिक आदेश नहीं थी, बल्कि यह पुलिस महकमे द्वारा दिए गए उस स्पष्ट संकेत का हिस्सा थी कि वर्दी के भीतर अनुशासन, संवेदनशीलता और जनसेवा की भावना सबसे ऊपर होनी चाहिए। अधिवक्ता अलीम जैसे नागरिक, जो संविधान और कानून की रक्षा में खुद एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, जब उन्हीं के साथ अभद्रता होती है, तो यह न केवल व्यक्ति पर बल्कि पूरे न्यायिक ताने-बाने पर एक प्रहार जैसा होता है।
डीसीपी पटेल का यह निर्णय एक प्रशंसनीय उदाहरण है जिसमें अनुशासनात्मक कार्रवाई के साथ पुलिस विभाग ने यह जताया कि किसी भी प्रकार की मनमानी, विशेषकर सार्वजनिक सेवा से जुड़े कर्मियों द्वारा, बर्दाश्त नहीं की जाएगी। यह मामला आने वाले समय में विभागीय सतर्कता का एक मानक बन सकता है, जहां वर्दी के साथ विवेक और व्यवहार का संतुलन सर्वोपरि माना जाएगा।
इस घटना में पुलिस-जन विश्वास के उस धागे को भी फिर से बुनने की कोशिश दिखती है जो कई बार टूटने लगता है। जहां एक ओर यह घटना एक काली स्याही की तरह पुलिस की छवि पर दाग छोड़ती है, वहीं दूसरी ओर कार्रवाई की पारदर्शिता और तत्परता उम्मीद की किरण भी जगाती है।
हरहुआ चौकी के इस प्रकरण से यह सीख भी मिलती है कि सत्ता या वर्दी का दुरुपयोग, चाहे वह किसी भी रूप में हो, उसके खिलाफ आवाज उठाने वाले आज भी हैं। और ऐसे मामलों में न्याय, देर से ही सही, लेकिन मिलता है। अलीम की आवाज एक आम आदमी की नहीं थी, वह उस चुप्पी को तोड़ने वाली गूंज थी जो बहुतों के दिलों में बस जाती है लेकिन होंठों तक नहीं आ पाती।
यह खबर केवल एक कार्रवाई की सूचना नहीं है, यह एक जीवंत दस्तावेज़ है उस बदलती हुई व्यवस्था का, जो जवाबदेही, ईमानदारी और संवेदना के मूल्यों को फिर से जिंदा करना चाहती है।