Mon, 10 Nov 2025 12:53:37 - By : Garima Mishra
वाराणसी: काशी में भारत और ताइवान के बीच संबंधों को नई दिशा देने के उद्देश्य से एक महत्वपूर्ण कार्यशाला का आयोजन हुआ। इस कार्यक्रम में भारत में ताइपे आर्थिक एवं सांस्कृतिक केंद्र के राजदूत मुमिन चेन ने भाग लिया और दोनों देशों के बीच सांस्कृतिक, शैक्षणिक और तकनीकी सहयोग को और गहरा करने की आवश्यकता पर बल दिया। यह कार्यशाला मानविकी और सामाजिक विज्ञान पर केंद्रित थी, जिसका विषय था "भारत और ताइवान में सतत भविष्य को आकार देना: अवसर और चुनौतियां"।
कार्यक्रम का आयोजन भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएसएसआर) और ताइवान की राष्ट्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद (एनएसटीसी) द्वारा संयुक्त रूप से किया गया था। इस अवसर पर ताइवान से राष्ट्रीय त्सिंग हुआ विश्वविद्यालय के भारत अध्ययन केंद्र के उप निदेशक प्रोफेसर तिएन-से फांग पांच सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल के साथ पहुंचे। उन्होंने भारत और ताइवान के बीच अकादमिक संवाद और अनुसंधान को और व्यापक बनाने की दिशा में विचार साझा किए।
राजदूत मुमिन चेन ने अपने संबोधन में कहा कि आज की दुनिया तेजी से बदल रही है, जिसमें भू-राजनीतिक तनाव, तकनीकी नवाचार और पर्यावरणीय चुनौतियां एक साथ सामने हैं। ऐसे समय में भारत और ताइवान एशिया में दो सशक्त, नवाचार-उन्मुख और लोकतांत्रिक समाज के रूप में उभर रहे हैं। उन्होंने कहा कि दोनों देशों को मिलकर अंतःविषय अनुसंधान और संवाद के माध्यम से साझा रणनीतियां तैयार करनी चाहिए ताकि एक टिकाऊ और समावेशी भविष्य का निर्माण किया जा सके।
कार्यशाला के दौरान वक्ताओं ने आर्थिक सहयोग, शिक्षा, संस्कृति, पर्यावरण और तकनीकी नवाचार जैसे विषयों पर विस्तृत चर्चा की। ताइवान और भारत के बीच बढ़ते सहयोग को लेकर यह सहमति बनी कि संयुक्त शोध और शैक्षणिक आदान-प्रदान से दोनों देशों की नई पीढ़ियों को लाभ मिलेगा। राजदूत चेन ने कहा कि पारस्परिक सहयोग से न केवल आर्थिक विकास को गति मिलेगी, बल्कि दोनों देशों के बीच सामाजिक और सांस्कृतिक जुड़ाव भी और मजबूत होगा।
इस कार्यशाला के निष्कर्षों को आगामी द्वितीय भारत-ताइवान संयुक्त द्विपक्षीय समिति की बैठक में रखा जाएगा, जहां अगले वर्ष की संयुक्त कार्यशाला के विषय पर निर्णय लिया जाएगा। विशेषज्ञों का मानना है कि इस तरह के कार्यक्रम भारत और ताइवान के बीच दीर्घकालिक साझेदारी को नई ऊंचाई देंगे और एशिया में क्षेत्रीय स्थिरता के साथ वैश्विक सहयोग के नए द्वार खोलेंगे।
यह कार्यक्रम वाराणसी के लिए भी विशेष रहा, क्योंकि यहां भारत और ताइवान के बीच भविष्य की साझेदारी के लिए ठोस कदमों की रूपरेखा तैयार की गई। इसमें यह स्पष्ट संदेश गया कि दोनों देश मिलकर शिक्षा, अनुसंधान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में ऐसा सहयोग विकसित करना चाहते हैं जो न केवल उनके नागरिकों के लिए बल्कि पूरे एशिया क्षेत्र के लिए लाभदायक हो।