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बांग्लादेश: अफवाह पर भीड़ ने निर्दोष दीपू चंद्र दास की हत्या, जांच में सच उजागर

बांग्लादेश: अफवाह पर भीड़ ने निर्दोष दीपू चंद्र दास की हत्या, जांच में सच उजागर

मयमनसिंह में ईशनिंदा के झूठे आरोप पर दीपू चंद्र दास को भीड़ ने मार डाला, जांच में आरोप बेबुनियाद पाए गए।

नई दिल्ली/ढाका/मयमनसिंह: बांग्लादेश के मयमनसिंह जिले में पिछले दिनों हुई बर्बरता की एक ऐसी घटना ने इंसानियत को शर्मसार कर दिया है, जिसका सच अब सामने आया है। भालुका इलाके में ईशनिंदा के महज एक आरोप के चलते जिस हिंदू युवक, दीपू चंद्र दास, को उन्मादी भीड़ ने पीट-पीटकर मार डाला और उसके शव को आग के हवाले कर दिया, उसने दरअसल ऐसा कोई गुनाह किया ही नहीं था। मामले की जांच कर रही रैपिड एक्शन बटालियन (RAB) और स्थानीय प्रशासन ने अपनी तफ्तीश में पाया है कि दीपू चंद्र दास के खिलाफ ईशनिंदा का रत्ती भर भी सबूत मौजूद नहीं है। यह खुलासा न केवल चौंकाने वाला है, बल्कि यह भी साबित करता है कि कैसे एक बेबुनियाद अफवाह ने एक निर्दोष व्यक्ति को मौत के घाट उतार दिया।
जांच अधिकारियों ने स्पष्ट किया है कि उन्हें अब तक ऐसा एक भी चश्मदीद गवाह नहीं मिला है, जिसके सामने दीपू ने धर्म के खिलाफ कोई आपत्तिजनक टिप्पणी की हो। घटना की परतें खुलने पर जो मंजर सामने आया है, वह दिल दहला देने वाला है।

स्थानीय मीडिया और 'प्रोथोम आलो' की रिपोर्ट के मुताबिक, यह पूरा फसाद एक कपड़ा फैक्ट्री के भीतर शुरू हुई कानाफूसी से पनपा था। दीपू इसी फैक्ट्री में कार्यरत था। अचानक यह अफवाह फैलाई गई कि उसने इस्लाम धर्म के खिलाफ कुछ अपमानजनक कहा है। देखते ही देखते यह झूठ फैक्ट्री की दीवारों से बाहर निकलकर एक हिंसक आंदोलन में बदल गया। फैक्ट्री के फ्लोर इंचार्ज आलमगीर हुसैन ने उस खौफनाक मंजर को बयां करते हुए बताया कि शुरुआत में प्रबंधन ने दीपू को बचाने की कोशिश की थी और उसे सुरक्षा की दृष्टि से एक कमरे में बंद कर दिया था। लेकिन, बाहर जमा भीड़ का गुस्सा और हिंसा का स्तर इतना बढ़ गया कि पूरी फैक्ट्री को जलाए जाने का खतरा पैदा हो गया। स्थिति को नियंत्रित करने के लिए पुलिस बल समय पर नहीं पहुंच सका, और अंततः फैक्ट्री प्रबंधन ने अपनी संपत्ति और अन्य लोगों को बचाने के लिए उस निहत्थे युवक को हिंसक भीड़ के हवाले कर दिया।

भीड़ के हत्थे चढ़ते ही दीपू के साथ जो हुआ, वह किसी भी सभ्य समाज के माथे पर कलंक है। उन्मादी लोगों ने उसे तब तक पीटा जब तक उसके प्राण नहीं निकल गए, और दरिंदगी की हदें पार करते हुए उसके शव को आग लगा दी। इस पूरी घटना का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ, जिसमें लोग नारेबाजी करते हुए दिखाई दिए। हालांकि, अब जब जांच रिपोर्ट सामने आई है, तो यह स्पष्ट हो गया है कि दीपू की हत्या किसी अपराध की सजा नहीं, बल्कि कोरी अफवाहों और भीड़तंत्र (Mobocracy) का नंगा नाच थी। रैपिड एक्शन बटालियन के कंपनी कमांडर ने आधिकारिक तौर पर पुष्टि की है कि दीपू पर लगाए गए आरोपों की पुष्टि करने वाला कोई भी तथ्य या गवाह सामने नहीं आया है।

इस जघन्य हत्याकांड ने बांग्लादेश की कानून व्यवस्था और सामाजिक ताने-बाने पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। मामले की गंभीरता को देखते हुए पुलिस ने कार्रवाई तेज कर दी है और अब तक 12 लोगों को गिरफ्तार किया गया है। वहीं, बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के मुख्य सलाहकार मोहम्मद यूनुस ने इस घटना पर कड़ा रुख अख्तियार किया है। उन्होंने घटना की घोर निंदा करते हुए एक सख्त संदेश जारी किया है। यूनुस ने कहा, "हम मयमनसिंह में एक हिंदू व्यक्ति की नृशंस हत्या की कड़े शब्दों में निंदा करते हैं। 'नए बांग्लादेश' की परिकल्पना में ऐसी सांप्रदायिक हिंसा और अराजकता के लिए कोई स्थान नहीं है। हम यह सुनिश्चित करेंगे कि इस जघन्य अपराध में शामिल किसी भी दोषी को बख्शा नहीं जाएगा और उन्हें कानून के तहत सख्त से सख्त सजा मिलेगी।"

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