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काशी हिन्दू विश्वविद्यालय परीक्षा में इस्लाम से जुड़ा विवादित प्रश्न, अकादमिक जगत में बहस छिड़ी

काशी हिन्दू विश्वविद्यालय परीक्षा में इस्लाम से जुड़ा विवादित प्रश्न, अकादमिक जगत में बहस छिड़ी

काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में एमए परीक्षा के प्रश्नपत्र में इस्लाम दर्शन और हिंसा पर पूछे गए सवाल से अकादमिक जगत व सोशल मीडिया पर व्यापक बहस छिड़ गई है।

काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में एमए प्रथम सेमेस्टर की परीक्षा के दौरान पूछे गए एक प्रश्न ने अकादमिक जगत से लेकर सोशल मीडिया तक व्यापक बहस को जन्म दे दिया है। Conflict Management and Development विषय के प्रश्नपत्र में प्रश्न संख्या पांच के तहत छात्रों से इस्लाम दर्शन में शांति की अवधारणा का विश्लेषण करने को कहा गया था। साथ ही इतिहास के उदाहरणों के आधार पर यह स्पष्ट करने को कहा गया कि इस्लाम को लेकर प्रचलित हिंसा संबंधी आलोचनाओं से वे सहमत हैं या असहमत। प्रश्न सामने आने के बाद छात्रों ने अपने अपने अनुभव और उत्तरों को सोशल मीडिया पर साझा किया जिसके बाद यह मुद्दा चर्चा का केंद्र बन गया।

परीक्षा में शामिल कई छात्रों का कहना है कि यह प्रश्न समकालीन वैश्विक परिस्थितियों और संघर्ष प्रबंधन जैसे विषय की मूल अवधारणा से सीधे जुड़ा हुआ है। छात्रों के अनुसार इस तरह के प्रश्न आलोचनात्मक सोच ऐतिहासिक समझ और वैचारिक संतुलन की परीक्षा लेते हैं। कुछ छात्रों ने यह भी कहा कि प्रश्नपत्र जितनी गंभीरता और अकादमिक दृष्टि से तैयार किया गया था उतनी ही गंभीरता से उसका उत्तर दिया गया। सोशल मीडिया पर BHU Pathshala नामक पेज ने भी पोस्ट कर कहा कि यह प्रश्न न तो विवाद का विषय है और न ही विरोध का बल्कि इसे एक शैक्षणिक अभ्यास के रूप में देखा जाना चाहिए। पेज पर यह भी उल्लेख किया गया कि बीते कुछ वर्षों में इस विषय से जुड़ी कई किताबें लेख और व्याख्यान पढ़े और सुने गए हैं लेकिन इस तरह का प्रश्न औपचारिक परीक्षा में पहली बार देखने को मिला है।

वहीं कुछ छात्रों और शिक्षाविदों का मानना है कि प्रश्न की भाषा को और अधिक संतुलित और शुद्ध अकादमिक रूप दिया जा सकता था ताकि किसी भी धर्म विशेष को लेकर गलतफहमी या भावनात्मक प्रतिक्रिया की संभावना कम हो। उनका कहना है कि विश्वविद्यालय जैसे संस्थान में विषयवस्तु की प्रस्तुति बेहद सावधानी और संतुलन के साथ होनी चाहिए। हालांकि अब तक विश्वविद्यालय प्रशासन की ओर से न तो प्रश्नपत्र की आधिकारिक पुष्टि की गई है और न ही किसी जिम्मेदार अधिकारी ने इस विषय पर कोई औपचारिक प्रतिक्रिया दी है।

कुल मिलाकर यह प्रश्न विश्वविद्यालय में अकादमिक स्वतंत्रता आलोचनात्मक अध्ययन और परीक्षा प्रणाली की प्रकृति को लेकर एक नई बहस को जन्म दे रहा है। छात्र इसे विचार विमर्श का अवसर मान रहे हैं जबकि कुछ लोग इसकी भाषा और प्रस्तुति पर पुनर्विचार की बात कर रहे हैं। आने वाले दिनों में इस मुद्दे पर विश्वविद्यालय प्रशासन की प्रतिक्रिया का इंतजार किया जा रहा है।

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