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लोकसभा में मनरेगा के नाम और प्रावधानों में बदलाव को लेकर सियासी घमासान तेज

लोकसभा में मनरेगा के नाम और प्रावधानों में बदलाव को लेकर सियासी घमासान तेज

केंद्र सरकार ने मनरेगा का नाम और प्रावधान बदलने संबंधी संशोधन विधेयक लोकसभा में पेश किया, विपक्ष ने जताई आपत्ति।

नई दिल्ली : केंद्र सरकार द्वारा महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम में नाम और प्रावधानों में बदलाव करते हुए संशोधन विधेयक लोकसभा में पेश किए जाने के बाद सियासी बहस तेज हो गई है। अधिनियम का नया नाम विकसित भारत गारंटी फार रोजगार एंड आजीविका मिशन ग्रामीण यानी वीबी जी राम जी रखा गया है। इस बदलाव पर विपक्ष की आपत्ति सामने आना स्वाभाविक माना जा रहा है, क्योंकि सरकार की लगभग हर नीति पहल पर विरोध दर्ज किया जा रहा है। विपक्ष को यह कहने का मौका मिल गया है कि सरकार महात्मा गांधी के नाम की उपेक्षा कर रही है, जबकि सरकार का तर्क है कि बदलाव का उद्देश्य योजना को अधिक प्रभावी और वर्तमान जरूरतों के अनुरूप बनाना है।

सरकार का कहना है कि नाम परिवर्तन के साथ साथ प्रस्तावित सुधारों का मकसद ग्रामीण रोजगार और आजीविका के अवसरों को नए ढांचे में सुदृढ़ करना है। हालांकि यह भी माना जा रहा है कि यदि नाम में बदलाव न किया जाता तो विधेयक के अन्य अहम प्रावधानों पर चर्चा अपेक्षाकृत सहज हो सकती थी। इसके बावजूद सरकार का पक्ष है कि योजना का नाम पहले भी बदला जा चुका है। यह योजना शुरुआत में नरेगा थी और बाद में इसमें महात्मा गांधी का नाम जोड़ा गया था। ऐसे में नाम परिवर्तन को अभूतपूर्व कदम नहीं कहा जा सकता।

मनरेगा जिस दौर में लागू हुई थी, उस समय ग्रामीण सामाजिक सुरक्षा की परिस्थितियां अलग थीं। बीते वर्षों में इस योजना के क्रियान्वयन में कई व्यावहारिक चुनौतियां सामने आईं। मजदूरी आधारित कार्यों में मशीनों के इस्तेमाल की शिकायतें मिलीं और कई क्षेत्रों में टिकाऊ ग्रामीण परिसंपत्तियों का निर्माण अपेक्षित स्तर पर नहीं हो पाया। इन कमियों को दूर करने की मांग लंबे समय से उठती रही है और स्वयं विपक्षी नेताओं ने भी समय समय पर सुधार की जरूरत पर जोर दिया था।

संशोधन विधेयक के जरिए सरकार ग्रामीण क्षेत्रों में बुनियादी ढांचे के निर्माण और स्थायी आजीविका के अवसरों पर अधिक ध्यान देने की बात कर रही है। बदले हुए प्रावधानों के तहत मजदूरी के दिनों में वृद्धि के साथ राज्यों को यह अधिकार भी दिया गया है कि वे वर्ष में साठ दिन तक काम रोक सकें। यह मांग भी पहले से सामने आती रही है। सरकार का तर्क है कि इन बदलावों से ग्रामीण विकास को नई दिशा मिलेगी और विकसित भारत के लक्ष्य को हासिल करने में मदद मिलेगी।

विशेषज्ञों का मानना है कि इस विधेयक पर संसद में विस्तृत और तथ्य आधारित चर्चा जरूरी है। केवल नाम परिवर्तन को लेकर विरोध करने के बजाय इसके वास्तविक प्रभावों और सुधारों का मूल्यांकन किया जाना चाहिए। यदि प्रस्तावित बदलावों से योजना अधिक पारदर्शी और परिणामोन्मुख बनती है तो ग्रामीण अर्थव्यवस्था को इससे दीर्घकालिक लाभ मिल सकता है। ऐसे में सुधार की पहल को अतिरंजित विरोध के बजाय संतुलित बहस के जरिए परखना अधिक उचित होगा।

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