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कर्नाटक: अचानक मौतों को घोषित किया गया अधिसूचित रोग, अब पोस्टमार्टम और सीपीआर ट्रेनिंग अनिवार्य

कर्नाटक: अचानक मौतों को घोषित किया गया अधिसूचित रोग, अब पोस्टमार्टम और सीपीआर ट्रेनिंग अनिवार्य

कर्नाटक सरकार ने अचानक होने वाली मौतों को अधिसूचित रोग घोषित किया, जानकारी देना अनिवार्य किया, पोस्टमार्टम भी अनिवार्य किया, 15 वर्ष से अधिक उम्र के नागरिकों की होगी स्वास्थ्य जांच।

बेंगलुरु: कर्नाटक सरकार ने राज्य में अचानक हो रही मौतों को लेकर एक बड़ा और अहम कदम उठाया है। अब से अचानक हुई मौतें "अधिसूचित रोग" की श्रेणी में आएंगी, यानी ऐसी किसी भी मौत की जानकारी देना अनिवार्य होगा। साथ ही, इन मौतों के पीछे की वजह जानने के लिए पोस्टमार्टम को अनिवार्य कर दिया गया है। इस निर्णय की घोषणा राज्य के स्वास्थ्य मंत्री दिनेश गुंडू राव ने सोमवार को की। यह कदम खासतौर पर हासन जिले समेत राज्य के कई हिस्सों में हाल के दिनों में बढ़ती हार्ट अटैक की घटनाओं को देखते हुए लिया गया है, जिससे लोगों में चिंता का माहौल है।

स्वास्थ्य मंत्री ने बताया कि सरकार अब 15 वर्ष से अधिक उम्र के सभी नागरिकों की सालाना स्वास्थ्य जांच कराएगी, जिससे समय रहते हृदय संबंधी या अन्य गंभीर बीमारियों का पता चल सके। इसके अतिरिक्त, आमजन को सीपीआर (कार्डियोपल्मोनरी रिससिटेशन) का प्रशिक्षण देने की व्यवस्था की जाएगी ताकि आपात स्थिति में जान बचाने में लोग सक्षम हो सकें। स्कूल स्तर पर भी इस जागरूकता अभियान को मजबूती देने के लिए शैक्षणिक पाठ्यक्रम में हार्ट अटैक और अचानक मृत्यु से संबंधित एक नया पाठ शामिल किया जाएगा, जिससे छात्र भी इस विषय की बुनियादी समझ विकसित कर सकें।

सरकार की मौजूदा ‘पुनीत राजकुमार हृदय ज्योति योजना’ को और व्यापक रूप देने का फैसला भी किया गया है। अब यह योजना जिला मुख्यालयों तक सीमित न रहकर तालुका स्तर के अस्पतालों तक पहुंचाई जाएगी ताकि ज्यादा से ज्यादा लोगों को इसका लाभ मिल सके।

राज्य सरकार ने अचानक हो रही मौतों की विस्तृत जांच के लिए जयदेव हृदय विज्ञान संस्थान के निदेशक डॉ. रवींद्रनाथ की अध्यक्षता में एक विशेषज्ञ समिति भी गठित की थी। इस समिति ने हासन जिले में बीते दिनों हुई 20 से अधिक अप्रत्याशित मौतों की गहराई से जांच की। रिपोर्ट के अनुसार इन मौतों का सीधा संबंध ना तो कोविड संक्रमण से है और ना ही कोविड टीकाकरण से। बल्कि इसके उलट रिपोर्ट में यह निष्कर्ष निकला कि वैक्सीन ने दिल की बीमारियों से लंबी अवधि में बचाव में मदद की है। लंबे कोविड से भी इन मौतों का प्रत्यक्ष संबंध सामने नहीं आया है।

हालांकि, मुख्यमंत्री सिद्धारमैया के एक हालिया बयान ने राजनीतिक और सामाजिक बहस को जन्म दे दिया था। उन्होंने सोशल मीडिया मंच एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर लिखा था कि कोविड वैक्सीन को "जल्दबाजी में मंजूरी" और "तुरंत वितरण" मिलने के कारण हार्ट अटैक की घटनाएं बढ़ी हो सकती हैं, और वैश्विक शोधों में भी इस दिशा में इशारे मिले हैं। इस बयान की विपक्षी भाजपा और बायोकॉन की संस्थापक किरण मजूमदार शॉ ने आलोचना करते हुए इसे गैर-जिम्मेदाराना और टीका विरोधी करार दिया।

स्वास्थ्य मंत्री दिनेश गुंडू राव ने इस बयान का बचाव करते हुए स्पष्ट किया कि मुख्यमंत्री की मंशा किसी को दोषी ठहराना नहीं थी। उन्होंने कहा, "मुख्यमंत्री केवल यह जानना चाह रहे थे कि कोविड और उसके टीकों के क्या संभावित दुष्प्रभाव हो सकते हैं। इसे गलत नीयत वाला बयान नहीं माना जाना चाहिए।"

मंत्री राव ने यह भी कहा कि डायबिटीज, हाई ब्लड प्रेशर, मोटापा जैसी बीमारियां आज के समय में हार्ट अटैक के प्रमुख कारण बन चुकी हैं, और महामारी के बाद इन बीमारियों में और तेजी आई है। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि भारत में एमआरएनए वैक्सीन का उपयोग नहीं हुआ, जबकि अन्य देशों में इस तकनीक से बनी वैक्सीन से हल्के रूप में हृदय की मांसपेशियों में सूजन के कुछ मामले सामने आए हैं। हालांकि भारत में इस्तेमाल की गई वैक्सीनों से ऐसा कोई खतरा नहीं पाया गया है।

कुल मिलाकर, कर्नाटक सरकार का यह कदम न केवल अचानक होने वाली मौतों को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से समझने की दिशा में एक प्रयास है, बल्कि जनस्वास्थ्य के प्रति सरकार की गंभीरता और तत्परता को भी दर्शाता है। इस नीति के तहत रोकथाम, प्रशिक्षण, निगरानी और शिक्षा को एक साथ जोड़ने का प्रयास किया गया है, जो निस्संदेह आने वाले समय में एक मॉडल हेल्थ रिस्पॉन्स बन सकता है।

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