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डिजिटल गोपनीयता: पटियाला हाउस कोर्ट ने दिया ऐतिहासिक फैसला, राइट टू बी फारगाटन मान्य

डिजिटल गोपनीयता: पटियाला हाउस कोर्ट ने दिया ऐतिहासिक फैसला, राइट टू बी फारगाटन मान्य

पटियाला हाउस कोर्ट ने 'राइट टू बी फारगाटन' को मान्यता देते हुए पुराने ऑनलाइन कंटेंट हटाने का आदेश दिया, डिजिटल गोपनीयता में अहम कदम।

पटियाला हाउस स्थित प्रधान जिला और सत्र न्यायाधीश की अदालत ने डिजिटल गोपनीयता से जुड़े एक महत्वपूर्ण मामले में ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। अदालत ने एक व्यक्ति के राइट टू बी फारगाटन यानी भुला दिए जाने के अधिकार को मान्यता देते हुए मीडिया संस्थानों, गूगल और सर्च प्लेटफार्म इंडिया कानून को उसके खिलाफ प्रकाशित सभी पुराने ऑनलाइन कंटेंट हटाने और डी इंडेक्स करने का निर्देश दिया है। यह फैसला उन मामलों की पृष्ठभूमि में आया है जहां इंटरनेट पर उपलब्ध पुरानी जानकारी किसी व्यक्ति की प्रतिष्ठा और भविष्य पर गहरा प्रभाव डालती है, जबकि वह व्यक्ति अब किसी भी आरोप का सामना नहीं कर रहा होता। अदालत ने माना कि डिजिटल दुनिया में उपलब्ध कंटेंट समय के साथ मिटता नहीं है और कई बार पुरानी सामग्री वर्तमान परिस्थितियों से मेल नहीं खाती, जिससे व्यक्ति की सामाजिक और पेशेवर छवि पर नकारात्मक असर पड़ता है।

यह मामला मोसर बेयर मनी लांड्रिंग केस से जुड़ा है। याचिकाकर्ता को इस मामले में ईडी ने गिरफ्तार किया था, लेकिन बाद में अदालत ने उन्हें बरी कर दिया। उनका कहना था कि इंटरनेट पर आज भी उनके खिलाफ प्रकाशित पुरानी खबरें मौजूद हैं, जिनमें उन्हें आरोपित के रूप में दिखाया गया है। इन खबरों के कारण उनके पेशेवर जीवन में दिक्कतें बढ़ गई हैं और समाज में भी गलत धारणा बन रही है। उन्होंने अदालत से गुहार लगाई कि चूंकि वह कानूनी रूप से निर्दोष साबित हो चुके हैं, इसलिए पुरानी खबरें और ऑनलाइन रिपोर्टें हटाई जाएं ताकि उनकी छवि को और क्षति न पहुंचे।

अदालत ने विस्तार से दोनों पक्षों की दलीलें सुनीं। कुछ मीडिया संगठनों ने यह तर्क दिया कि मामला सीमाबद्धता से बाधित है और पत्रकारिता की स्वतंत्रता के दायरे में आता है। उनका कहना था कि खबरें सार्वजनिक रिकॉर्ड का हिस्सा हैं और उन्हें हटाना पत्रकारिता के अधिकारों के विरुद्ध होगा। हालांकि प्रधान जिला और सत्र न्यायाधीश अंजू बजाज चांदना ने इन तर्कों को स्वीकार नहीं किया। अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता वर्तमान में किसी आरोप का सामना नहीं कर रहा है और मुकदमे से मुक्त हो चुका है। ऐसे में इंटरनेट पर उसके खिलाफ पुरानी सामग्री बनाए रखना न तो जनहित में आता है और न ही इसका कोई औचित्य बचता है। इसके विपरीत यह उसकी छवि को लगातार नुकसान पहुंचाने का कारण बन रहा है।

अदालत ने स्पष्ट किया कि डिजिटल जानकारी की स्थायित्व एक बड़ी चुनौती है और हर व्यक्ति को यह अधिकार है कि पुरानी और अप्रासंगिक सामग्री से उसकी प्रतिष्ठा प्रभावित न हो। अदालत ने सभी संबंधित पक्षों को अंतरिम आदेश जारी करते हुए निर्देश दिया कि याचिकाकर्ता से जुड़ी सभी आपत्तिजनक लिंक, रिपोर्टें और ऑनलाइन सामग्री को ब्लॉक किया जाए या हटा दिया जाए। फैसले को डिजिटल गोपनीयता और व्यक्तिगत अधिकारों के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है, जो आगे आने वाले मामलों में भी मिसाल बन सकता है।

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