वाराणसी में गंगा नदी में हाल ही में लाखों टन सिल्ट बहाने की घटनाओं ने पर्यावरण और पारिस्थितिकी विशेषज्ञों की चिंता बढ़ा दी है। नगर निगम प्रशासन द्वारा दशकों से अपनाई जा रही अवैज्ञानिक विधियों के कारण गंगा की तलहटी उथली हो रही है और बाढ़ का खतरा लगातार बढ़ रहा है। नदी विशेषज्ञों का कहना है कि यह सिल्ट नदी के प्राकृतिक प्रवाह और संरचना को बदल रहा है, जिससे भूजल प्रवाह पर भी प्रतिकूल असर पड़ रहा है।
विशेषज्ञों के अनुसार गंगा में घाटों की सफाई के नाम पर जमी सिल्ट को बड़े जेनरेटर और मोटर पंपों की मदद से सीधे नदी में बहाया जा रहा है। यह प्रक्रिया वर्षों से प्रतिवर्ष बाढ़ के बाद अपनाई जा रही है, लेकिन इसके गंभीर पारिस्थितिकीय परिणाम नजरअंदाज किए जा रहे हैं। नदी में सिल्ट के जमाव से जलधारा कमजोर हो रही है, नदी घाटों से दूर होती जा रही है और गर्मियों में जगह-जगह रेत के टीले उभर आते हैं। इसका सीधा प्रभाव नदी के जलीय जीवन, मछलियों और अन्य जीवों के आवास पर पड़ता है।
डा. उदयकांत चौधरी, जो आईआईटी बीएचयू के पूर्व प्रोफेसर और गंगा पर गहन शोधकर्ता हैं, बताते हैं कि असि नदी अब अस्सी नाली बन चुकी है। 1985 से पूर्व असि नदी घाट पर 30 से 45 डिग्री पर गंगा से संगम करती थी और वर्षांत के दिनों में गंगा के प्रवाह को नियंत्रित कर मृदा जमाव को रोकती थी। अब अस्सी घाट पर मिट्टी का जमावड़ा आरंभ कर दिया गया है, जिससे पूरे वाराणसी क्षेत्र और उससे सैंकड़ों किलोमीटर दूर तक गंगा की संरचना और प्रवाह बदल रहा है।
इस अवैज्ञानिक प्रक्रिया के कारण गंगा का चंद्राकार स्वरूप और घाटों की पारंपरिक आकृति बदल रही है। नदी की तलहटी शहरी क्षेत्रों में उथली हो रही है और प्रतिवर्ष बाढ़ का खतरा बढ़ता जा रहा है। भूजल की प्रवाह रेखा भी बदल रही है, जिससे पानी की उपलब्धता और नदी तटों पर कृषि व स्थानीय जीवन प्रभावित हो सकता है।
विशेषज्ञों का कहना है कि नगर निगम प्रशासन को नदी संरक्षण के वैज्ञानिक उपाय अपनाने की तत्काल आवश्यकता है। गंगा के पारिस्थितिकीय स्वास्थ्य को बनाए रखना न केवल वाराणसी बल्कि पूरे क्षेत्र की जल सुरक्षा और पर्यावरणीय संतुलन के लिए महत्वपूर्ण है। यदि सिल्ट बहाव और वर्तमान अवैज्ञानिक उपाय जारी रहे, तो नदी और उसके आसपास के पारिस्थितिक तंत्र के लिए दीर्घकालिक खतरा उत्पन्न हो सकता है।
वाराणसी में गंगा में सिल्ट बहाने से बाढ़ का खतरा बढ़ा, विशेषज्ञ चिंतित

वाराणसी में गंगा नदी में लाखों टन सिल्ट बहाने से पर्यावरण विशेषज्ञों की चिंता बढ़ी है, जिससे बाढ़ का खतरा बढ़ रहा है।
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