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ट्रांस-हिमालयी लोगों में प्रदूषण से लड़ने वाला जीन मिला, बीएचयू शोध में खुलासा

ट्रांस-हिमालयी लोगों में प्रदूषण से लड़ने वाला जीन मिला, बीएचयू शोध में खुलासा

ट्रांस-हिमालय क्षेत्र के लोगों में इपीएचएक्स 1 जीन मिला, जो प्रदूषण व कैंसर से बचाता है लेकिन शराब की लत भी बढ़ाता है; बीएचयू ने किया शोध।

वाराणसी: भारत, चीन और तिब्बत की ओर फैले ट्रांस हिमालय क्षेत्र में रहने वाले लोगों पर किए गए एक अध्ययन में वैज्ञानिकों ने एक ऐसे जीन की पहचान की है, जो प्रदूषण और धुएं से होने वाले नुकसान को साफ करने में मदद करता है। यह जीन फेफड़ों के कैंसर के खतरे को कम करने के साथ दवाओं के नकारात्मक असर को भी घटाता है। हालांकि इसमें एक जटिल पहलू भी है। यही जीन शराब की लत को बढ़ाने में योगदान करता है। इतना ही नहीं, यह टाइप टू डायबिटीज के खतरे को भी कम करने में सहायक है। इस जीन का नाम है इपीएचएक्स 1।

तिब्बती बर्मी भाषा बोलने वाले समुदायों में इस जीन की उपस्थिति अन्य समूहों की तुलना में अधिक पाई गई है। शोधकर्ताओं का मानना है कि यह जीन उन समुदायों में पीढ़ियों से विकसित हुआ है, जो ऊंचे पहाड़ों पर रहते आए हैं, ऐतिहासिक समय में प्रवास कर चुके हैं और जिनमें शराब पीने की आदत अपेक्षाकृत अधिक देखी जाती है।

इस शोध में भारत से पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग, मणिपुर, अरुणाचल प्रदेश, नगालैंड और सिक्किम के 16 समूहों के 607 लोगों का खून जांचा गया। यह अध्ययन बनारस हिंदू विश्वविद्यालय और कलकत्ता विश्वविद्यालय समेत पांच प्रमुख संस्थानों के वैज्ञानिकों की संयुक्त टीम ने किया है। शोध का विस्तृत विवरण हाल ही में अमेरिकन जर्नल ऑफ ह्यूमन बायोलॉजी में प्रकाशित हुआ है।

बीएचयू के जीन वैज्ञानिक प्रोफेसर ज्ञानेश्वर चौबे ने बताया कि इस जीन में खास प्रकार का बदलाव मिला है, जो शराब की लत को बढ़ावा दे रहा था। हालांकि इस जीन का दूसरा पहलू धूम्रपान करने वालों के लिए एक तरह से लाभकारी हो सकता है, क्योंकि यह कैंसर उत्पन्न करने वाले हानिकारक तत्वों को अलग ढंग से प्रोसेस करता है। लेकिन इसकी गति धीमी हो जाए तो स्थिति उलट सकती है और ऐसे में प्रदूषण व धुएं से होने वाले नुकसान को साफ करने की क्षमता कमजोर पड़ जाती है। इस कारण इन लोगों में क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज यानी सीओपीडी का खतरा भी बढ़ सकता है।

विशेषज्ञों के अनुसार यह खोज न केवल जीन के विकास और पर्यावरण के बीच संबंध को समझने में मदद करेगी, बल्कि भविष्य में उन बीमारियों की रोकथाम और इलाज की दिशा भी तय कर सकती है, जिनका संबंध फेफड़ों और मेटाबॉलिक डिसऑर्डर से है।

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