Sat, 29 Nov 2025 13:12:26 - By : Palak Yadav
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यह स्पष्ट कर दिया है कि सेवानिवृत्ति के बाद भी किसी सरकारी कर्मचारी को सेवाकाल में हुई अनियमितताओं से मुक्त नहीं किया जा सकता। फर्रुखाबाद निवासी विपिन चंद्र वर्मा की याचिका पर सुनवाई करते हुए अदालत ने कहा कि बढ़ते भ्रष्टाचार को रोकने और सार्वजनिक जवाबदेही बनाए रखने के लिए सेवानिवृत्त सरकारी कर्मचारियों के खिलाफ भी जांच और कार्रवाई की जा सकती है। न्यायमूर्ति मंजूरानी चौहान की एकल पीठ ने रिटायर्ड जूनियर इंजीनियर की ओर से शो कॉज नोटिस के खिलाफ दायर याचिका खारिज करते हुए यह निर्णय दिया।
विपिन चंद्र तकनीकी जूनियर इंजीनियर के पद से 30 जून 2025 को सेवानिवृत्त हुए थे। इसके बाद उनके खिलाफ सेवाकाल 2015 से 2022 के दौरान गड़बड़ी के आरोप लगाते हुए शिकायत की गई। विभाग ने कुछ आरोपों पर नोटिस जारी कर जवाब मांगा, लेकिन उन्होंने इसे हाईकोर्ट में चुनौती दी। अधिवक्ता ने दलील दी कि सेवानिवृत्ति के बाद नियोक्ता और कर्मचारी का संबंध समाप्त हो जाता है, इसलिए जांच नहीं की जा सकती। साथ ही यह भी कहा गया कि शिकायतकर्ता स्थानीय विधायक का रिश्तेदार है, इसलिए शिकायत राजनीतिक रूप से प्रेरित है।
अदालत ने इन दलीलों को स्वीकार नहीं किया। कोर्ट ने कहा कि सिविल सर्विस रेगुलेशन में सेवानिवृत्त कर्मचारियों पर कार्रवाई की पूरी प्रक्रिया पहले से मौजूद है। इसलिए यह तर्क नहीं माना जा सकता कि सेवानिवृत्त होने के बाद किसी भी प्रकार की जांच या कार्यवाही नहीं की जा सकती। कोर्ट ने यह भी कहा कि सरकारी कर्मचारी केवल वेतन के लिए काम नहीं करते, बल्कि उनका योगदान राष्ट्र निर्माण से जुड़ा होता है और इस कारण उन पर अधिक जिम्मेदारी होती है।
अदालत ने यह टिप्पणी करते हुए बताया कि सरकारी विभागों में अनियमितता, भ्रष्टाचार और पक्षपात की प्रवृत्ति तेजी से बढ़ रही है। ऐसे में यदि सेवानिवृत्त कर्मचारियों को जांच से बाहर रखा जाए तो यह जवाबदेही की भावना को कमजोर करेगा। जनता और जनप्रतिनिधियों का यह अधिकार है कि किसी भी सरकारी कर्मचारी की सेवा अवधि में हुई लापरवाही या कदाचार की जानकारी सामने ला सकें, चाहे वह कर्मचारी अभी सेवा में हो या सेवानिवृत्त हो चुका हो। अदालत के इस आदेश को प्रशासनिक जवाबदेही को मजबूत करने की दिशा में महत्वपूर्ण माना जा रहा है।