Thu, 04 Dec 2025 12:42:36 - By : Yash Agrawal
सर्दियों ने दस्तक दे दी है और इसके साथ ही अयोध्या और मथुरा के मंदिरों में भगवान की सेवा व्यवस्था भी बदल गई है। तापमान गिरने के साथ ही बाल स्वरूप के भगवान को ठंड से बचाने के लिए पुजारियों ने पूजा, भोग और दर्शन की समय सारणी में कई बदलाव किए हैं। दशकों से सेवा कर रहे पुजारी बताते हैं कि मौसम बदलते ही भगवान की देखभाल बच्चे की तरह करनी पड़ती है ताकि उन्हें बुखार या जुकाम न हो।
अयोध्या में रामलला को सुबह गुनगुने पानी से स्नान कराया जा रहा है। उनके वस्त्र भी अब मौसम के अनुसार बदल दिए गए हैं। पुजारी बताते हैं कि रामलला को अब मखमल के गर्म कपड़े पहनाए जा रहे हैं और ठंड बढ़ने पर गर्भगृह में ब्लोअर लगाया जाएगा ताकि तापमान संतुलित बना रहे। सेवा में लगे पुजारी संतोष तिवारी बताते हैं कि बाल स्वरूप की सेवा हमेशा सावधानी की मांग करती है और सर्दियों में यह जिम्मेदारी और बढ़ जाती है।
दर्शन व्यवस्था में भी बदलाव किया गया है। रामलला को अब सुबह आधा घंटा ज्यादा सुलाया जा रहा है। पहले जहां गर्मियों में दर्शन सुबह साढ़े छह बजे से शुरू हो जाते थे, वहीं सर्दियों में अब यह समय सुबह सात बजे कर दिया गया है। भोग और आरती का क्रम भी नया तय किया गया है। दोपहर में पूड़ी, सब्जी, दाल और चावल के साथ सर्दियों के विशेष भोग जैसे देसी घी का हलवा और तिल के लड्डू लगाए जा रहे हैं।
अयोध्या के अन्य मंदिरों में भी व्यवस्था बदली है। श्रीरामवल्लभाकुंज और कनक भवन जैसे प्रसिद्ध मंदिरों में अब फूलों की जगह कपड़े की मालाएं पहनाई जा रही हैं। सेवा करने वाले संत बताते हैं कि फूलों से ठंड लगने की आशंका रहती है, इसलिए सर्दियों में फूलों का उपयोग कम कर दिया जाता है। कई जगहों पर रजाई और शॉल भी पहनाए जा रहे हैं तथा गर्भगृह में अंगीठी रखकर तापमान को नियंत्रित किया जा रहा है।
मथुरा में भी भगवान कृष्ण की सेवा में मौसम अनुसार कई बदलाव किए गए हैं। राधा बल्लभ मंदिर में भगवान को ऊनी ग्लब्स और गर्म मोजे पहनाए जा रहे हैं। यहां भी गर्भगृह में अंगीठी रखी गई है ताकि ठंड का असर न पड़े। भोग में मेवा, केसर और तिल से बनी गर्माहट देने वाली चीजें शामिल की गई हैं। सेवायत बताते हैं कि सर्दियों में फूलों का उपयोग कम किया जाता है, क्योंकि माना जाता है कि फूल ठंड पैदा करते हैं।
बांके बिहारी मंदिर में भी भगवान के भोग में बदलाव किया गया है। यहां दाल, रोटी, दाल चावल के अलावा गुड़ और तिल की बनी चीजें दी जा रही हैं। दूध भात में केसर और पिस्ता का अधिक प्रयोग किया जा रहा है। दर्शन के समय भी बदले हैं और अब मंदिर में सुबह आठ बजकर पैंतालीस मिनट से दोपहर एक बजे तक तथा शाम चार बजकर तीस मिनट से रात आठ बजकर तीस मिनट तक दर्शन हो रहे हैं। रात में भगवान को मखमल की रजाई ओढ़ाई जाती है और अधिक ठंड होने पर अंगीठी भी रखी जाएगी।
पूरे प्रदेश में सर्दी बढ़ने के साथ मंदिरों में भगवान की सेवा का तरीका बदलना परंपरा का हिस्सा है। पुजारी कहते हैं कि भगवान को मानव स्वरूप की तरह माना जाता है और उसी अनुसार सर्दियों में उनकी देखभाल की जाती है ताकि भक्तों को बिना किसी बाधा के दर्शन मिलते रहें।