दिल्ली हाई कोर्ट की सख्त टिप्पणी, जज से ऊंची आवाज में बात करना अस्वीकार्य

दिल्ली हाई कोर्ट ने जजों से ऊंची आवाज में बात करने या दबाव बनाने की कोशिश को अस्वीकार्य बताया, इसे एक चिंताजनक प्रवृत्ति कहा है।

Sun, 07 Dec 2025 15:34:04 - By : SUNAINA TIWARI

नई दिल्ली : दिल्ली हाई कोर्ट ने हाल ही में एक मामले की सुनवाई के दौरान अधिवक्ता के अनुचित व्यवहार पर कड़ी टिप्पणी की है। हाई कोर्ट ने स्पष्ट कहा कि ट्रायल कोर्ट या हाई कोर्ट के जज के साथ ऊंची आवाज में बात करना या दबाव बनाने की कोशिश करना किसी भी परिस्थिति में स्वीकार नहीं किया जा सकता। न्यायमूर्ति गिरीश कथपालिया की पीठ ने यह टिप्पणी उस घटनाक्रम को रिकॉर्ड में शामिल करते हुए की, जिसमें एक वकील ने ट्रायल कोर्ट के न्यायाधीश के सामने लगातार ऊंची आवाज में दलीलें दीं और जज के प्रति असम्मानजनक रवैया अपनाया।

पीठ ने कहा कि हाल के दिनों में यह देखा जा रहा है कि जब किसी मामले में मेरिट नहीं होता या तर्क पर्याप्त नहीं होते, तो कुछ अधिवक्ता विशेष रूप से जिला अदालत के जजों पर दबाव बनाने की कोशिश करते हैं। अदालत ने इसे एक चिंताजनक प्रवृत्ति बताया और कहा कि न्यायिक प्रक्रिया में इस तरह का व्यवधान न्याय के सुचारु संचालन के लिए हानिकारक है। अदालत ने इस बात पर जोर दिया कि जजों का सम्मान न्याय व्यवस्था का एक प्रमुख स्तंभ है और इसे किसी भी रूप में कमजोर नहीं किया जाना चाहिए।

यह मामला 2016 से लंबित एक सिविल केस से जुड़ा है। सुनवाई के दौरान अधिवक्ता ने केस को आगे बढ़ाने का अनुरोध किया, लेकिन ट्रायल कोर्ट ने इसे स्वीकार नहीं किया। इस पर वकील ने जज से ऊंची आवाज में कहा कि वह सुप्रीम कोर्ट में प्रैक्टिस करता है। अदालत के अनुसार, यह बयान एक तरह का दबाव बनाने का प्रयास था। इसके बावजूद, जब उसे जिरह का अंतिम अवसर दिया गया, तो उसने ट्रायल कोर्ट से कहा कि वह बहस नहीं करेगा। इतना ही नहीं, वकील ने यह भी गलत दावा किया कि उसके मुवक्किल ने मामले में कोई समझौता कर लिया है, जबकि इसका कोई रिकॉर्ड नहीं था।

हाई कोर्ट ने इन सभी घटनाओं को अनुचित और न्यायिक गरिमा के खिलाफ बताया। अदालत ने कहा कि ट्रायल कोर्ट द्वारा शांत रहने के निर्देश दिए जाने के बाद भी वकील का जज से ऊंची आवाज में बात करना निंदनीय है। पीठ ने अधिवक्ता को चेतावनी दी कि अदालत के प्रति इस तरह का व्यवहार न केवल अस्वीकार्य है बल्कि यह वकील की पेशेवर जिम्मेदारी के भी विपरीत है।

कोर्ट ने यह भी कहा कि न्यायपालिका पर दबाव बनाने का प्रयास करने वाली कोई भी हरकत न्यायिक प्रक्रिया की मर्यादा को ठेस पहुंचाती है। अदालत ने उम्मीद जताई कि भविष्य में वकील इस चेतावनी को गंभीरता से लेंगे और अदालत की गरिमा और शालीनता का सम्मान करेंगे।

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