वाराणसी: हिंदू समाज के लिए आचार संहिता, नये नियमों के साथ अक्तूबर में होगी प्रकाशित

काशी विद्वत परिषद और अखिल भारतीय संत समिति द्वारा तैयार हिंदू आचार संहिता अक्टूबर 2025 में प्रकाशित होगी, जिसका उद्देश्य सामाजिक कुरीतियों को दूर करना और एकता को बढ़ावा देना है।

Mon, 14 Jul 2025 22:40:15 - By : SANDEEP KR SRIVASTAVA

वाराणसी: दशकों की प्रतीक्षा के बाद, हिंदू समाज के लिए एक व्यापक और एकीकृत आचार संहिता का प्रकाशन अक्तूबर 2025 में किया जाएगा। काशी विद्वत परिषद और अखिल भारतीय संत समिति के नेतृत्व में तैयार की गई इस 356 पृष्ठों की आचार संहिता की एक लाख प्रतियां छप चुकी हैं, जिन्हें चरणबद्ध तरीके से देश भर के हिंदू परिवारों तक पहुँचाया जाएगा। इस पहल का उद्देश्य न केवल समाज में व्याप्त कुरीतियों को दूर करना है, बल्कि जाति-धर्म के नाम पर समाज को विभाजित करने वाले तत्वों को एक सशक्त सांस्कृतिक संदेश देना भी है।

इस नई संहिता में विवाह, मृतक भोज, मंदिरों में प्रवेश और सामाजिक कर्तव्यों से जुड़े कई अहम बिंदुओं को स्पष्ट रूप से नियमबद्ध किया गया है। परिषद के महामंत्री प्रो. रामनारायण द्विवेदी के अनुसार, विवाह समारोहों में अनावश्यक खर्च और भौंडे प्रदर्शन की प्रवृत्ति पर लगाम लगाने के लिए विशेष प्रावधान किए गए हैं। विवाह का आयोजन केवल वैदिक परंपराओं के अनुरूप दिन में करने का निर्देश दिया गया है, जबकि दहेज प्रथा और प्री-वेडिंग जैसे आधुनिक और अपव्ययी चलनों को पूर्णतः प्रतिबंधित किया गया है। साथ ही, मृतक भोज को केवल 13 व्यक्तियों तक सीमित रखने की व्यवस्था की गई है, ताकि इसे एक अनावश्यक सामाजिक बोझ बनने से रोका जा सके।

इस संहिता की तैयारी में 15 वर्षों तक देश भर के 70 से अधिक विद्वानों ने गहन शोध किया। 11 मुख्य टीमों और 3 उप-टीमों में उत्तर और दक्षिण भारत के विद्वानों की समान भागीदारी रही। मनु स्मृति, पराशर स्मृति, देवल स्मृति के साथ-साथ भगवद गीता, रामायण, महाभारत और पुराणों के मुख्य अंशों को आधार बनाकर इसे धर्मशास्त्रीय स्वरूप दिया गया है। इसके मसौदे को देश के प्रमुख शंकराचार्यों, रामानुजाचार्यों, रामानंदाचार्य परंपरा से जुड़े संतों और विद्वानों ने अनुमोदित किया है।

महाकुंभ में इस संहिता को संतों के समक्ष प्रस्तुत किया गया था, जहां इसे व्यापक समर्थन मिला। इसमें स्पष्ट कहा गया है कि मंदिरों के गर्भगृह में केवल अर्चकों को ही प्रवेश की अनुमति होगी, ताकि प्राचीन परंपराओं और मर्यादाओं की रक्षा की जा सके। जन्मदिन, घर वापसी और दलित समाज से जुड़े मसलों पर भी निर्देश जारी किए गए हैं। विशेष रूप से, संहिता में यह उल्लेखनीय है कि अब महिलाएं भी यज्ञ आदि धार्मिक कर्मकांडों में भाग ले सकेंगी, जिससे लैंगिक समानता की दिशा में एक बड़ा कदम माना जा रहा है।

प्रो. द्विवेदी ने बताया कि समाज को सही दिशा देने और एकजुट करने की दृष्टि से आमजन के लिए इस संहिता की दो पृष्ठों की संक्षिप्त सारांशिका भी तैयार की गई है, जिसकी एक लाख प्रतियों का प्रकाशन किया जा रहा है। यह सारांशिका समाज को तोड़ने वाले विचारों के विरुद्ध एक वैचारिक उत्तर के रूप में काम करेगी।

अखिल भारतीय संत समिति के महामंत्री स्वामी जितेंद्रानंद सरस्वती ने कहा कि अक्तूबर के अंत तक इस संहिता को सांस्कृतिक संसद के मंच से औपचारिक रूप से सार्वजनिक किया जाएगा। इसके बाद इसका प्रसार देश भर में किया जाएगा और कम से कम एक लाख लोगों तक यह दस्तावेज पहुंचाने का लक्ष्य रखा गया है। इसके लिए देशभर के धार्मिक स्थलों पर अब तक 40 से अधिक बार बैठकें आयोजित की जा चुकी हैं।

एक महत्वपूर्ण और संवेदनशील विषय 'घर वापसी' पर भी संहिता में स्पष्ट प्रावधान दिया गया है। जो लोग फिर से हिंदू धर्म में लौटना चाहते हैं, उनके लिए एक सरल और गरिमापूर्ण प्रक्रिया बनाई गई है। ऐसे व्यक्तियों का शुद्धिकरण करने वाले ब्राह्मण उन्हें अपना गोत्र देंगे, जिससे समाज में उनकी पहचान और अधिकार सुनिश्चित हो सकें।

संपूर्ण हिंदू आचार संहिता न केवल धार्मिक दिशा निर्देश है, बल्कि यह सामाजिक समरसता, अनुशासन और मूल्यों की स्थापना की दिशा में एक ऐतिहासिक दस्तावेज के रूप में सामने आ रहा है। उम्मीद की जा रही है कि यह न केवल समाज में सकारात्मक परिवर्तन लाएगा, बल्कि विभिन्न वर्गों के बीच समरसता और सहयोग की भावना को भी सुदृढ़ करेगा।

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