वाराणसी: रामनगर/विश्वप्रसिद्ध रामलीला की तैयारियां इस वर्ष भी पूरे पारंपरिक उत्साह और श्रद्धा के साथ आरंभ हो गई हैं। सोमवार को चौक स्थित रामलीला पक्की पर प्रथम गणेश पूजन संपन्न हुआ, जिसके साथ ही पंच स्वरूपों श्रीराम, लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न और माता सीता का विधिवत प्रशिक्षण आरंभ कर दिया गया। यह आयोजन भारतीय सांस्कृतिक विरासत का अद्वितीय उदाहरण है, जिसे यूनेस्को ने भी अपनी Intangible Cultural Heritage सूची में दर्ज कर मान्यता प्रदान की है।
गणेश पूजन का शुभ मुहूर्त शाम 4:30 बजे था, जिसके अंतर्गत परंपरा के अनुरूप श्रीगणेश और पवनपुत्र हनुमान के मुखौटे की पूजा संपन्न हुई। इसके पश्चात रामलीला में प्रयुक्त होने वाले संवाद पुस्तिका, औजारों और मंचीय सामग्री का पूजन किया गया। इस अवसर पर पंच स्वरूपों को विधिवत तिलक कर माला पहनाई गई और ब्राह्मणों ने संवादों का शुभारंभिक पाठ किया। रामलीला ट्रस्ट के मंत्री जयप्रकाश पाठक मुख्य जजमान के रूप में उपस्थित रहे। पूजन में पं. रामनारायण पांडेय, पं. शांतनारायण पांडेय, व्यास संपत राम, शिवदत्त, आदित्य दत्त, कृष्णदत्त, मनोज श्रीवास्तव, कृष्णचंद्र द्विवेदी, आशुतोष पांडेय और हृदय नारायण पांडेय समेत कई प्रमुख गणमान्य लोग उपस्थित थे।
इस वर्ष की रामलीला 6 सितंबर से प्रारंभ होगी और लगभग एक माह तक चलने वाली यह लीला पूरे देशभर से श्रद्धालुओं को आकर्षित करती है। इस बार श्रीराम, भरत और लक्ष्मण की भूमिका वही बाल कलाकार निभाएंगे जिन्होंने पिछले वर्ष भी ये पात्र निभाए थे। केवल माता सीता और शत्रुध्न की भूमिकाओं के लिए नए पात्रों का चयन किया गया है। यह परंपरा दर्शकों को पात्रों के साथ भावनात्मक रूप से जोड़ने में मदद करती है।
इन पंच स्वरूपों को अब उनके वास्तविक नामों से नहीं बुलाया जाएगा। अगले लगभग तीन महीनों तक ये बालक – अथर्व, श्रीकांत द्विवेदी, प्रत्यक्ष दवे, सूरज और ओम – परिवार से दूर रहकर रामलीला व्यास के सानिध्य में रहेंगे और बलुआ घाट स्थित धर्मशाला में रहकर संवादों, मुद्राओं और भाव-भंगिमाओं का गहन अभ्यास करेंगे। वे अब ‘रामजी’, ‘लक्ष्मणजी’, ‘भरतजी’, ‘शत्रुघ्नजी’ और ‘सीताजी’ के नाम से ही पहचाने जाएंगे, जिससे उनमें उस दिव्यता और मर्यादा का संचार हो जो रामलीला के चरित्रों के साथ जुड़ी होती है।
रामनगर रामलीला: एक जीवंत परंपरा जो समय से ऊपर है
रामनगर की रामलीला का इतिहास लगभग 200 वर्षों से भी पुराना है। इसकी शुरुआत काशी नरेश राजा उदित नारायण सिंह ने अठारहवीं सदी के उत्तरार्ध में की थी। यह रामलीला अभिनय मात्र नहीं है, बल्कि एक आध्यात्मिक और सांस्कृतिक यात्रा है, जिसमें भगवान राम के चरित्र को जीवन्त रूप में प्रस्तुत किया जाता है।
इस रामलीला की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसका मंचन किसी मंच पर नहीं, बल्कि पूरे रामनगर क्षेत्र में भौगोलिक रूप से तय स्थलों पर किया जाता है। जहां अयोध्या, चित्रकूट, जनकपुर, पंचवटी, लंका आदि के दृश्यों को वास्तविक स्थल और पृष्ठभूमि देकर प्रस्तुत किया जाता है। कलाकारों का चयन स्थानीय बालकों में से होता है और ये बालक अभिनय के साथ धार्मिक अनुशासन का भी पालन करते हैं। उन्हें अभिनय प्रशिक्षण के साथ-साथ वेद, रामचरितमानस और नैतिक मूल्यों की शिक्षा भी दी जाती है।
रामनगर की रामलीला को यूनेस्को ने 2004 में अपनी "मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक धरोहर" (Intangible Cultural Heritage of Humanity) सूची में शामिल कर मान्यता दी। यह न केवल काशी की विरासत को अंतरराष्ट्रीय मंच पर प्रस्तुत करता है, बल्कि देश की आध्यात्मिक धरोहर को संजोने का सशक्त माध्यम भी है।
आध्यात्मिकता, अनुशासन और समर्पण का अद्वितीय संगम
रामनगर रामलीला सिर्फ धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि यह एक सामाजिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक शिक्षा शिविर के रूप में काम करती है। इसमें हिस्सा लेने वाले कलाकार केवल अभिनय नहीं करते, वे मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के जीवन मूल्यों को जीते हैं। संपूर्ण रामलीला काल में पंच स्वरूपों का रहन-सहन, खान-पान, आचरण पूर्णतः धार्मिक और अनुशासित होता है।
आज जब आधुनिकता के नाम पर परंपराएं विलुप्त हो रही हैं, ऐसे में रामनगर की रामलीला हमें हमारी जड़ों से जोड़ती है और यह याद दिलाती है कि सनातन परंपराएं आज भी उतनी ही जीवंत और प्रासंगिक हैं।
वाराणसी: रामनगर/ विश्वप्रसिद्ध रामलीला में गणेश पूजन से पंच स्वरूपों का प्रशिक्षण हुआ प्रारंभ

वाराणसी के रामनगर में विश्वप्रसिद्ध रामलीला की तैयारियां शुरू, गणेश पूजन के साथ पंच स्वरूपों का प्रशिक्षण शुरू, यूनेस्को ने भी इस सांस्कृतिक विरासत को मान्यता दी है।
Category: uttar pradesh cultural events
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