Sun, 07 Dec 2025 15:39:53 - By : SUNAINA TIWARI
नई दिल्ली : मिली जानकारी के अनुसार पश्चिम बंगाल की राजनीति इन दिनों एक नए विवाद और चुनौती के दौर से गुजर रही है। मुर्शिदाबाद में बाबरी मस्जिद की नींव रखने के बाद सुर्खियों में आए टीएमसी के पूर्व विधायक हुमायूं कबीर अब अपनी ही पूर्व पार्टी के खिलाफ खुलकर मोर्चा खोल चुके हैं। तृणमूल कांग्रेस द्वारा बाहर किए जाने के बाद कबीर ने मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को सीधी चेतावनी देते हुए दावा किया है कि अब टीएमसी चौथी बार सत्ता में नहीं लौट पाएगी। उनके बयानों ने प्रदेश की राजनीति में नई हलचल पैदा कर दी है।
हुमायूं कबीर ने कहा कि टीएमसी का मुस्लिम वोट बैंक अब खत्म हो चुका है और यह आने वाले चुनावों में साफ दिखाई देगा। उन्होंने कहा कि पिक्चर अभी बाकी है और राज्य की राजनीति संवेदनशील मोड़ पर पहुंच चुकी है। उनके अनुसार अब वह एक नई राजनीतिक शुरुआत करने जा रहे हैं जिसमें मुस्लिम समुदाय की समस्याओं और उनके प्रतिनिधित्व को प्राथमिकता दी जाएगी।
कबीर ने 22 दिसंबर को अपनी नई पार्टी की नींव रखने की घोषणा की है। इसके साथ ही उन्होंने यह भी संकेत दिया कि वह एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी के साथ गठबंधन कर सकते हैं। उनका दावा है कि आने वाले विधानसभा चुनाव में वह 294 में से 135 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारेंगे और यह चुनाव बंगाल की राजनीति में गेम चेंजर साबित होगा। उन्होंने कहा कि ओवैसी से उनकी बातचीत हुई है और गठबंधन को लेकर दोनों पक्षों में सहमति बनने की संभावना है।
कबीर ने हाल ही में मुर्शिदाबाद में बाबरी मस्जिद की नींव रखी थी। छह दिसंबर 1992 को हुई घटना की वर्षगांठ पर किए गए इस कदम ने प्रदेश की राजनीति में नया विवाद खड़ा कर दिया। कई राजनीतिक दलों ने इस कदम की आलोचना की, जबकि कुछ संगठनों ने इसे धार्मिक और भावनात्मक मुद्दा बताते हुए इसका समर्थन किया। उनका यह निर्णय टीएमसी से उनकी दूरी और अधिक बढ़ाने वाला साबित हुआ।
उन्होंने दावा किया है कि वह न तो टीएमसी को और न ही बीजेपी को राज्य की सत्ता में आने देंगे। उनके अनुसार बंगाल में कई संस्थान उनका समर्थन कर रहे हैं और देश भर के मुसलमान बाबरी मस्जिद निर्माण के लिए आर्थिक मदद दे रहे हैं। उन्होंने कहा कि उनकी नई राजनीतिक पार्टी राज्य में धार्मिक और सामाजिक मुद्दों पर नई बहस को जन्म देगी और राजनीतिक समीकरण पूरी तरह बदल देगी।
पश्चिम बंगाल में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव पहले से ही चुनौतीपूर्ण माने जा रहे थे, लेकिन कबीर की इस नई राजनीतिक पहल और बयानबाजी ने चुनावी माहौल को और जटिल बना दिया है। अभी यह देखना होगा कि उनकी प्रस्तावित पार्टी और संभावित गठबंधन का राज्य की राजनीति पर क्या प्रभाव पड़ता है और क्या उनकी चुनौती वास्तव में टीएमसी के वोट बैंक में कोई बड़ा बदलाव ला पाएगी।