वाराणसी: रामनगर रामलीला में श्रीराम राज्याभिषेक, भोर की आरती ने भक्तों को किया भावविभोर

रामनगर की विश्व प्रसिद्ध रामलीला में श्रीराम के राज्याभिषेक और भोर की आरती ने हजारों भक्तों को भावविभोर किया, जनसैलाब उमड़ा।

Mon, 06 Oct 2025 11:44:07 - By : SANDEEP KR SRIVASTAVA

वाराणसी: रामनगर की ऐतिहासिक और यूनेस्को से मान्यता प्राप्त विश्व प्रसिद्ध रामलीला ने रविवार रात भक्ति और परंपरा का ऐसा अद्भुत संगम प्रस्तुत किया, जिसे देखने हजारों श्रद्धालु उमड़ पड़े। किला रोड स्थित अयोध्या मैदान में आयोजित श्रीराम राज्याभिषेक की भव्य लीला ने समूचे वातावरण को भक्तिमय बना दिया। "राजा रामचंद्र की जय" और "हर हर महादेव" के गगनभेदी जयघोषों से पूरी काशी गूंज उठी।

रविवार रात के भव्य राज्याभिषेक समारोह में जब गुरु वशिष्ठ की आज्ञा से प्रभु श्रीराम ने सिर झुकाकर सभी का अभिवादन किया और अयोध्या के राजसिंहासन पर विराजमान हुए, तो पूरा मैदान श्रद्धा से भर उठा। गुरु वशिष्ठ ने उनका राजतिलक किया और माता कौशल्या ने दान देकर उस दिव्य क्षण को पूर्णता प्रदान की। मंच पर विभीषण, सुग्रीव, अंगद, हनुमान और संपूर्ण वानर-भालू सेना प्रभु के राज्याभिषेक के साक्षी बने। इस दृश्य ने सभी भक्तों को पौराणिक काल की उस अलौकिक अयोध्या में पहुंचा दिया, जहां धर्म और मर्यादा सर्वोपरि थी।

इस अवसर पर रामनगर के राजपरिवार से डॉ. अनंत नारायण सिंह परंपरा के अनुसार रामनगर दुर्ग से पैदल चलकर लीला स्थल पहुंचे। भूमि पर बैठकर उन्होंने श्रीराम स्वरूप का तिलक किया और भेंट अर्पित की। बदले में श्रीराम स्वरूप ने अपने गले की माला उतारकर डॉ. सिंह को पहनाई, जिसे देखकर पूरा मैदान “राजा रामचंद्र की जय” के उद्घोष से गूंज उठा। यह दृश्य सदियों से चली आ रही उस परंपरा का प्रतीक है, जिसमें राजपरिवार और जनता एक साथ भक्ति के इस उत्सव में शामिल होते हैं।

रविवार की रात से लेकर सोमवार की भोर तक श्रद्धालुओं की भीड़ अयोध्या मैदान में डटी रही। जगह-जगह रामायण पाठ, भजन मंडलियों और कीर्तन की स्वर लहरियां वातावरण में गूंजती रहीं। जब सोमवार की सुबह भोर की आरती का समय आया, तो मानो स्वर्गिक दृश्य धरती पर उतर आया।

भोर की आरती के समय सूर्योदय की पहली किरणों के साथ जब घंटा-घड़ियाल और शंखनाद की ध्वनि गूंजी, तो चारों ओर सिर्फ भक्ति का सागर उमड़ पड़ा। माता कौशल्या ने स्वयं प्रभु श्रीराम, माता सीता, लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न और हनुमान जी की आरती उतारी। लाल और सफेद रोशनी में सजे मंच की अनुपम छटा देखते ही बन रही थी। श्रद्धालु भावविभोर होकर जयघोष करते रहे, "जय सिया राम, जय जय राम!"
"हरि अनंत हरि कथा अनंता!"

रामनगर की यह भोर आरती सिर्फ एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि आस्था, समय और सूर्य की उपासना का अनोखा संगम है। कहा जाता है कि यह परंपरा सैकड़ों वर्ष पुरानी है, जब रामनगर नरेश स्वयं इस आरती के साक्षी बनते थे।

काले हनुमान जी के दर्शन का पौराणिक दिन
सोमवार की भोर आरती के साथ ही एक और अद्भुत परंपरा देखने को मिली काले हनुमान जी के दर्शन की।
रामनगर दुर्ग के भीतर स्थित यह प्राचीन काले हनुमान मंदिर वर्षभर आम जनता के लिए बंद रहता है, और केवल रामलीला के इस पावन दिन दर्शनार्थियों के लिए खोला जाता है।

भोर होते ही श्रद्धालुओं की लंबी कतारें मंदिर के बाहर लग गईं। लोग “जय बजरंग बली” और "संकट मोचन हनुमान की जय" के उद्घोष के साथ दर्शन को आतुर खड़े रहे।

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, यह काले हनुमान जी का स्वरूप अत्यंत प्रभावशाली और अद्भुत है। कहा जाता है कि लंका दहन के बाद जब हनुमान जी का सम्पूर्ण शरीर कालिमा से भर गया था, तब उसी रूप को यहां विराजमान किया गया।
स्थानीय कथा यह भी कहती है कि इस मंदिर की प्रतिमा स्वयंभू है। यानी यह किसी शिल्पी द्वारा निर्मित नहीं, बल्कि प्रकट स्वरूप मानी जाती है।
"अंजनीसुत बलवन्त महान,
संकट मोचन मंगलदान।
काल स्वरूप कपीश्वर धाम,
दर्शन से मिटे सब अवगुन नाम॥"

भक्तों का विश्वास है कि इस दिन काले हनुमान जी के दर्शन करने से जीवन के समस्त संकट और भय दूर हो जाते हैं। जो व्यक्ति पूर्ण श्रद्धा से दर्शन कर “हनुमान चालीसा” का पाठ करता है, उसके जीवन में शुभता और साहस की वृद्धि होती है।

मंदिर के पुजारियों के अनुसार, सुबह से ही हजारों भक्तों ने तेल, सिंदूर, तुलसी माला और लड्डू का भोग अर्पित किया। मंदिर परिसर में शंखनाद और घंटा ध्वनि लगातार गूंजती रही।

सांस्कृतिक धरोहर और आस्था का जीवंत प्रतीक
रामनगर की रामलीला न केवल धार्मिक श्रद्धा का केंद्र है, बल्कि यह भारत की जीवंत सांस्कृतिक धरोहर भी है। यूनेस्को द्वारा विश्व अमूर्त सांस्कृतिक विरासत (Intangible Cultural Heritage) के रूप में मान्यता प्राप्त यह रामलीला आज भी अपने पारंपरिक स्वरूप में मंचित की जाती है। बिना किसी आधुनिक तकनीक या माइक्रोफोन के, केवल मानव स्वर और भक्ति की ऊर्जा से।

हर पात्र, हर संवाद, हर दृश्य में उस सनातन परंपरा की झलक मिलती है, जिसने भारतीय संस्कृति को सदियों तक एक सूत्र में बांधे रखा है।

भोर की आरती और काले हनुमान जी के दर्शन के साथ इस वर्ष की रामलीला का यह पड़ाव भले संपन्न हुआ हो, परंतु श्रद्धालुओं के हृदय में भक्ति और आनंद का यह अमिट अनुभव सदा के लिए अंकित रह गया है।

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