Mon, 06 Oct 2025 11:35:46 - By : Garima Mishra
वाराणसी: स्पेन निवासी मारिया रूइस ने पिछले 13 वर्षों से भारतीय संस्कृति और संस्कृत अध्ययन में अपने जीवन को समर्पित कर दिया है। उनका शोध कार्य विशेष रूप से पूर्व मीमांसा दर्शन पर केंद्रित रहा है और आठ अक्टूबर को संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय के दीक्षा समारोह में उन्हें इसी विषय में पीएचडी उपाधि प्रदान की जाएगी।
मारिया ने विश्वविद्यालय के पूर्व मीमांसा विभाग से 'अर्थवादाधिकरणस्य समीक्षात्मक अध्ययनम' विषय पर शोध किया है। इस शोध का उद्देश्य वेदों के अर्थवाद खंड में प्रचलित गलत व्याख्याओं को स्पष्ट करना और उन्हें सही दिशा में प्रस्तुत करना रहा। इस शोध कार्य का निर्देशन प्रोफेसर कमलाकांत त्रिपाठी ने किया। इससे पहले उन्होंने शास्त्री और आचार्य स्तर पर भी इसी विषय का अध्ययन किया और गोल्ड मेडल प्राप्त किया।
मारिया बताती हैं कि उनकी माता और दो भाई स्पेन में रहते हैं, और वह साल में एक बार उनसे मिलने जाती हैं। इसके बावजूद वह बनारस को अपना स्थायी निवास मानती हैं और यहां रहकर संस्कृत पर कार्य करना चाहती हैं। वर्तमान में वह धर्म से संबंधित पुस्तकों का अंग्रेजी अनुवाद और संशोधन कर रही हैं। इसके साथ ही वे अपने शोधग्रंथ का संक्षिप्त अंग्रेजी संस्करण तैयार कर रही हैं, ताकि इसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रकाशित किया जा सके और मीमांसा दर्शन का प्रचार विदेशों में भी हो। वह इसे स्पेनिश भाषा में भी प्रस्तुत करने की योजना बना रही हैं।
मारिया की भाषाई क्षमता भी उल्लेखनीय है। वह अंग्रेजी, स्पेनिश, हिंदी और संस्कृत में समान दक्षता रखती हैं। उनका मानना है कि मीमांसा शास्त्र केवल कर्मकांड और यज्ञों तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें शब्दों के परस्पर संबंध, वाक्य संरचना और पाठ विवेचन के नियमों का अत्यंत रोचक विश्लेषण मिलता है, जो आधुनिक समय में भी उपयोगी हैं। उनके शोध में यह स्पष्ट किया गया कि किसी आज्ञावाचक वाक्य का प्रभाव और कार्य किस प्रकार से उत्पन्न होता है। इसके लिए उन्होंने जैमिनि सूत्रों, शबरस्वामी की भाष्य और मंडन मिश्र की विधि विवेक का गहन अध्ययन किया।
मारिया का मानना है कि प्रत्येक व्यक्ति की समाज में भूमिका और उत्तरदायित्व उसी प्रकार महत्वपूर्ण है जैसे वाक्य में प्रत्येक शब्द का अपना उद्देश्य होता है। उनका कहना है कि सामाजिक नियमों का पालन करने से स्वतंत्रता और सामंजस्य की प्राप्ति होती है, जबकि बिना नियमों वाला जीवन असंगत और अराजक होता है। मारिया युवाओं को भारतीय धर्मशास्त्रों के ज्ञान और उनके सिद्धांतों को समझने और अपनाने के लिए प्रेरित करना चाहती हैं।
मारिया के प्रयास और उनके शोध कार्य ने बनारस को उनके लिए कर्मभूमि बना दिया है। उनका उद्देश्य केवल अध्ययन करना नहीं है, बल्कि मीमांसा दर्शन और वेदों के गहन अर्थ को समाज और विश्व के सामने प्रस्तुत करना है। उनकी यह यात्रा भारतीय संस्कृति और विद्वता की समृद्ध परंपरा का जीवंत उदाहरण है।