Sun, 28 Sep 2025 22:00:57 - By : SANDEEP KR SRIVASTAVA
लखनऊ: राज्य कर्मचारियों की लगातार अनदेखी और लंबित मांगों पर कार्रवाई न होने से नाराज़गी गहराती जा रही है। इसी क्रम में राज्य कर्मचारी संयुक्त परिषद ने आंदोलन की राह पकड़ने का ऐलान किया है। परिषद ने घोषणा की है कि आगामी 18 अक्तूबर को प्रदेश के सभी जिला मुख्यालयों पर प्रदर्शन आयोजित किए जाएंगे, जिसके माध्यम से कर्मचारी जिलाधिकारियों को ज्ञापन सौंपकर मुख्यमंत्री तक अपनी आवाज़ पहुँचाएंगे।
रविवार को परिषद की बैठक में इस आंदोलनात्मक कार्यक्रम की रूपरेखा तय की गई। बैठक की अध्यक्षता करते हुए परिषद के अध्यक्ष जे.एन. तिवारी ने कहा कि पिछले 18 महीनों से न तो मुख्य सचिव और न ही प्रमुख सचिव (कार्मिक) स्तर पर कोई वार्ता हुई है। इस कारण कर्मचारियों की समस्याएं ठंडे बस्ते में पड़ी हुई हैं। तिवारी ने स्पष्ट कहा कि विभागों में बैठे अधिकारी भी कर्मचारियों की मांगों के प्रति उदासीन रवैया अपनाए हुए हैं, जिससे असंतोष और गहराता जा रहा है।
उन्होंने उदाहरण देते हुए बताया कि खाद्य रसद विभाग में नीति के विपरीत किए गए स्थानांतरण आज तक निरस्त नहीं किए गए हैं। वहीं, समाज कल्याण और जनजाति विभाग में 60% औसत परीक्षा परिणाम को मनमाने ढंग से लागू कर दिया गया, जिसके चलते दर्जनों शिक्षकों को नौकरी से बाहर कर दिया गया है। इतना ही नहीं, विभिन्न विभागों में वर्षों से खाली पड़े पदों पर भर्ती नहीं की जा रही है।
तिवारी ने यह भी आरोप लगाया कि आउटसोर्स कर्मचारियों के लिए निगम तो बना दिया गया, लेकिन उसका सही क्रियान्वयन विभागीय स्तर पर अब तक शुरू नहीं हुआ है। इससे बड़ी संख्या में कर्मचारी असमंजस की स्थिति में हैं और उन्हें स्थायित्व नहीं मिल पा रहा है।
बैठक में परिषद की महामंत्री अरुणा शुक्ला ने बताया कि संगठन ने मुख्यमंत्री को दोबारा पत्र लिखकर प्रमुख मांगों का संज्ञान लेने की अपील की है। इन मांगों में दशहरा और दीपावली से पहले वेतन का समय पर भुगतान, महंगाई भत्ते की लंबित किश्त जारी करना और कर्मचारियों को बोनस देना शामिल है। उन्होंने कहा कि त्योहारी सीजन में कर्मचारियों को राहत देना सरकार की जिम्मेदारी बनती है।
बैठक में उपाध्यक्ष त्रिलोकी नाथ चौरसिया, डी.के. त्रिपाठी सहित अन्य पदाधिकारी भी मौजूद रहे। परिषद ने सर्वसम्मति से यह ठान लिया है कि यदि 18 अक्तूबर के प्रदर्शन के बाद भी सरकार ने कोई सकारात्मक पहल नहीं की, तो आंदोलन को और व्यापक किया जाएगा।
राज्य कर्मचारी परिषद का यह ऐलान प्रदेश सरकार के लिए चुनौतीपूर्ण साबित हो सकता है, क्योंकि लाखों कर्मचारियों की नाराज़गी सीधा असर शासन-प्रशासन की कार्यप्रणाली पर पड़ सकती है। आगामी दिनों में सरकार की प्रतिक्रिया और कर्मचारियों का रुख प्रदेश की राजनीति और प्रशासन दोनों पर गहरा असर डाल सकता है।