
Mon, 16 Jun 2025 15:04:35 - By : SANDEEP KR SRIVASTAVA
वाराणसी: एक ओर न्याय की आस में फरियादी चौखट पर दस्तक देता है, तो दूसरी ओर वही चौखट अगर उत्पीड़न की जगह बन जाए, तो समाज का भरोसा डगमगाने लगता है। हाल ही में शहर के दो अलग-अलग थानों से जो घटनाएं सामने आई हैं, उन्होंने पूरे अधिवक्ता समुदाय को झकझोर कर रख दिया है। कानून के प्रहरी जब खुद कानून की मर्यादा को तार-तार कर दें, तो सवाल सिर्फ व्यवस्था पर नहीं, बल्कि उस सोच पर भी उठते हैं जो सत्ता के मद में संवेदना और संवैधानिक दायरे दोनों को बिसरा देती है।
पहली घटना वाराणसी के लालपुर पांडेयपुर थाने के अंतर्गत लालपुर पुलिस चौकी की है, जहां सोयेपुर निवासी अधिवक्ता अरविंद वर्मा एक गंभीर शिकायत लेकर पहुंचे थे। उनका आरोप है कि उनकी निजी जमीन पर अवैध कब्जा किया जा रहा था। वे अपनी फरियाद लेकर चौकी पहुंचे, लेकिन वहां उनके साथ जो हुआ, वह न केवल अमानवीय था बल्कि पुलिस की भूमिका पर गहरा प्रश्नचिह्न भी खड़ा करता है। अधिवक्ता का कहना है कि जब उन्होंने कब्जे की जानकारी दी तो चौकी प्रभारी आदित्य सेन सिंह ने न सिर्फ उनकी बात अनसुनी की, बल्कि विपक्षियों के प्रभाव में आकर उनके साथ गालीगलौज शुरू कर दी। जब अधिवक्ता ने इसका विरोध किया, तो उन्हें सार्वजनिक रूप से अपमानित करते हुए पीटा गया और चौकी से बाहर कर दिया गया।
यह घटना रविवार को सोशल मीडिया पर वायरल होते ही आग की तरह फैल गई। वीडियो ने प्रशासन की नींद उड़ा दी और मामले को गंभीरता से लेते हुए डीसीपी वरुणा जोन प्रमोद कुमार ने तत्काल प्रभाव से चौकी प्रभारी आदित्य सेन सिंह को लाइन हाजिर कर दिया। साथ ही जांच की जिम्मेदारी एसीपी सारनाथ को सौंपी गई है। डीसीपी का स्पष्ट कहना है कि थाने या चौकी में किसी फरियादी के साथ दुर्व्यवहार को किसी भी स्थिति में बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।
इस पूरे प्रकरण पर सेंट्रल बार एसोसिएशन के उपाध्यक्ष दीपक राय कान्हा ने तीखी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने कहा कि एक अधिवक्ता के साथ ऐसा व्यवहार निंदनीय है और यदि पुलिस इस तरह से पेश आएगी तो आम जनता के साथ किस तरह का व्यवहार होगा, इसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती। उन्होंने उच्चाधिकारियों से दरोगा के खिलाफ कठोर विभागीय कार्रवाई की मांग की है।
लेकिन जब लोग सोच रहे थे कि इस अपमानजनक कृत्य पर कार्रवाई से शायद पुलिस संवेदनशीलता सीखेगी, तभी सोमवार सुबह एक और शर्मनाक घटना ने अधिवक्ता समुदाय को फिर से आक्रोशित कर दिया। इस बार मामला बड़ागांव थाना क्षेत्र के हरहुआ पुलिस चौकी का है। जानकारी के अनुसार, एक अधिवक्ता जो कचहरी जा रहे थे, उनकी कार को चौकी के पास रोका गया। बिना किसी स्पष्ट कारण के पुलिस सिपाही ने उनके साथ बदतमीजी की और मोबाइल फोन छीन लिया। भले ही बाद में वह मोबाइल वापस कर दिया गया, लेकिन यह पूरी घटना कैमरे में कैद हो गई और कुछ ही देर में शहर भर में चर्चा का विषय बन गई।
यह दूसरी घटना केवल एक दिन के अंतराल पर हुई, जब पहली घटना में कार्रवाई हो चुकी थी। इससे साफ होता है कि यह महज इत्तेफाक नहीं, बल्कि एक गहरी प्रशासनिक विफलता और जिम्मेदारियों से मुंह मोड़ने की प्रवृत्ति का नतीजा है। लगातार हो रही इन घटनाओं ने अधिवक्ता समाज को आहत किया है। वे यह पूछने को मजबूर हैं कि जब कानून जानने और समझने वाला वर्ग भी पुलिस के दमन का शिकार हो रहा है, तब आम नागरिकों की सुरक्षा और न्याय की उम्मीद कितनी सार्थक बची है?
इन घटनाओं के बाद अधिवक्ताओं में उबाल है। सेंट्रल बार सहित कई अधिवक्ता संघों ने बैठक कर विरोध दर्ज कराया और चेतावनी दी है कि यदि दोषियों पर शीघ्र, पारदर्शी और कठोर कार्रवाई नहीं की गई, तो वे आंदोलन के रास्ते पर जाने को बाध्य होंगे।
पुलिस प्रशासन के लिए यह चेतावनी की घंटी है। इन घटनाओं ने स्पष्ट कर दिया है कि कानून की रक्षा करने वाली ताकतें अगर मर्यादाओं को तोड़ेंगी, तो जनता का विश्वास टूटना तय है। अब जरूरत है कि न सिर्फ जांच रिपोर्टों का इंतज़ार किया जाए, बल्कि दोषियों को ऐसी मिसाल के तौर पर सज़ा दी जाए जिससे पुलिसिया व्यवस्था में सुधार का मार्ग प्रशस्त हो सके और जनता के मन में सुरक्षा का भाव पुनर्स्थापित हो।
यह केवल अधिवक्ताओं की लड़ाई नहीं, बल्कि पूरे समाज की अस्मिता का प्रश्न बन चुका है। पुलिस और जनता के बीच बढ़ती यह खाई अब चेतावनी नहीं, बल्कि व्यवस्था में गहराई से झांकने का अवसर है। अगर अब भी आंखें मूंदी गईं, तो शायद आने वाले समय में भरोसे का पुल ढह जाएगा, और उसके नीचे दब जाएगी वो संवेदनशीलता, जिससे लोकतंत्र की आत्मा सांस लेती है।