वाराणसी में अस्सी नदी के संगम स्थल में किए गए परिवर्तन का गंभीर असर अब गंगा की पारिस्थितिकी पर दिखाई देने लगा है। संगम स्थल के बदलाव के बाद गंगा नदी में सिल्ट की मात्रा बढ़ गई है, जिससे नदी का प्राकृतिक प्रवाह बाधित हो रहा है और जलीय जीवन पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है। विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि यदि तत्काल सुधारात्मक कदम नहीं उठाए गए तो यह समस्या गंगा की स्वच्छता और उसकी प्राकृतिक धारा के लिए गहरा खतरा बन सकती है।
गंगा की सफाई और संरक्षण के नाम पर पिछले चार दशकों में अरबों रुपये खर्च किए जा चुके हैं, लेकिन स्थिति में ठोस सुधार नहीं हुआ। 1983 से 1985 के बीच बिना वैज्ञानिक अध्ययन के अस्सी नदी के संगम स्थल को अस्सी घाट से बदलकर रविदास घाट के पास कर दिया गया। यह कदम नदी विज्ञान के सिद्धांतों के विपरीत था। गंगा विज्ञानी प्रो. बी.डी. त्रिपाठी बताते हैं कि कोई भी छोटी नदी बड़ी नदी से समकोण पर संगम नहीं करती, बल्कि न्यून कोण पर मिलती है ताकि प्रवाह की दिशा और गति बनी रहे। पहले अस्सी नदी अस्सी घाट पर गंगा में मिलती थी, जिससे गंगा का प्रवाह तेज रहता था और अपशिष्ट व सिल्ट बहकर आगे निकल जाते थे।
लेकिन जब संगम स्थल को समकोण पर रविदास घाट के पास कृत्रिम रूप से जोड़ा गया तो अस्सी से बहकर आने वाली गाद, कूड़ा और सिल्ट गंगा के मुहाने पर जमा होने लगे। इसके कारण गंगा की धारा की गति कमजोर पड़ी और घाटों पर सिल्ट जमाव की समस्या बढ़ गई। अब स्थिति यह है कि अस्सी घाट से लेकर दशाश्वमेध घाट तक हर बार बाढ़ आने के बाद मोटी परत में सिल्ट जमा हो जाती है, जिससे गंगा की गहराई घट रही है और जल प्रवाह बाधित हो रहा है।
प्रो. त्रिपाठी का कहना है कि हिमालय से आने वाली नदियों में गाद का आना एक प्राकृतिक प्रक्रिया है। यह गाद मैदानों को उपजाऊ बनाती है, लेकिन जब यह नदी में ही ठहर जाती है तो जल संचयन क्षमता कम हो जाती है और नदी की पारिस्थितिकी पर सीधा असर पड़ता है। नदी की गहराई घटने से जल प्रवाह कमजोर होता है, जिससे बाढ़ और प्रदूषण की समस्या बढ़ जाती है।
नगर निगम की भूमिका भी इस स्थिति को और बिगाड़ रही है। विशेषज्ञों ने आरोप लगाया है कि घाटों पर जमा सिल्ट को निकालकर फिर से गंगा में ही बहा दिया जाता है। जहां एक ओर सरकार और प्रशासन गंगा में कचरा, फूल-माला और पूजन सामग्री न डालने की अपील कर रहे हैं, वहीं दूसरी ओर नगर निगम का यह रवैया गंगा की पवित्रता के साथ खिलवाड़ के समान है। सुप्रीम कोर्ट ने मूर्ति विसर्जन पर रोक लगाई है, लेकिन सिल्ट को गंगा में डालना अब भी आम प्रशासनिक प्रक्रिया बनी हुई है।
बीएचयू के पूर्व प्रोफेसर और गंगा विशेषज्ञ प्रो. यू.के. चौधरी का कहना है कि गंगा की पारिस्थितिकी में बदलाव का सीधा असर वाराणसी की पहचान पर पड़ेगा। अस्सी का संगम स्थल बदलने के बाद अस्सी घाट, हरिश्चंद्र घाट, मणिकर्णिका घाट, पंचगंगा घाट और रामघाट तक सिल्ट जमाव बढ़ गया है। इससे न केवल गंगा का प्राकृतिक प्रवाह बाधित हुआ है, बल्कि घाटों की धार्मिक और सांस्कृतिक पहचान पर भी खतरा मंडरा रहा है।
पर्यावरणविदों का मानना है कि इस संकट का समाधान केवल वैज्ञानिक दृष्टिकोण से संभव है। अस्सी नदी और गंगा के संगम स्थल का पुनः मूल्यांकन कर पुराने स्वरूप को बहाल करने पर विचार होना चाहिए। साथ ही, निकाली गई सिल्ट का पुनः गंगा में बहाव रोकने के लिए ठोस व्यवस्था बनानी होगी।
गंगा केवल एक नदी नहीं, बल्कि भारत की आस्था, संस्कृति और जीवन का आधार है। उसके प्रवाह में असंतुलन आने का अर्थ है काशी की आत्मा को आघात पहुंचना। इसलिए जरूरी है कि गंगा और अस्सी दोनों की धारा को उनके प्राकृतिक स्वरूप में लौटाने के लिए वास्तविक और वैज्ञानिक कदम उठाए जाएं।
वाराणसी में अस्सी-गंगा संगम बदलाव से बढ़ा सिल्ट, प्रभावित हुई गंगा की पारिस्थितिकी

वाराणसी में अस्सी नदी के गंगा संगम स्थल में बदलाव से सिल्ट बढ़ा, प्राकृतिक प्रवाह बाधित और जलीय जीवन खतरे में है.
Category: uttar pradesh varanasi environment
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