वाराणसी: इंसानियत को शर्मसार कर देने वाला एक मामला वाराणसी के आराजी लाइन विकास खंड अंतर्गत ग्राम पंचायत रामसिंहपुर से प्रकाश में आया है। यहां प्राथमिक विद्यालय में कक्षा तीन की दिव्यांग छात्रा जैनब को स्कूल के ही कमरे में कथित रूप से तीन घंटे तक बंद कर दिया गया। मासूम की करुण चीखें और सिसकियां जब शाम के समय आस-पास तक पहुंचीं, तब जाकर परिजनों को इसकी जानकारी हुई। यह घटना न केवल विद्यालय प्रशासन की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े करती है, बल्कि शिक्षा व्यवस्था की संवेदनहीनता को भी उजागर करती है।
आपको बताते चले कि, यह मामला 16 सितंबर 2025 का है। प्राप्त जानकारी के अनुसार, जैनब दोपहर करीब 1 बजे से स्कूल के कमरे में अकेली कैद रही। जब परिजनों ने शाम करीब 4 बजे रोने की आवाज सुनी, तो वे हतप्रभ रह गए। घबराकर उन्होंने पुलिस को सूचना दी और 112 की मदद से बच्ची को कमरे से बाहर निकाला गया। मासूम जब कांपती हुई बाहर आई, तो उसके चेहरे पर डर, बेबसी और आंसुओं की लकीरें साफ दिखाई दे रही थीं।
हमारे संवाददाता शुभम शर्मा से बात करती हुई, बच्ची की मां फातिमा बेगम ने फफकते हुए आरोप लगाया है, कि "मेरी बेटी दिव्यांग है। उसकी कमजोरी का फायदा उठाकर विद्यालय की महिला प्रिंसिपल और कर्मचारियों ने उसे रंजिशन कमरे में बंद कर दिया। इसके बाद हम पर दबाव बनाया गया कि इस घटना को दबा दें और किसी से कुछ न कहें। लेकिन यह मेरी बच्ची के साथ अन्याय है। मैं कैसे चुप रह सकती हूं? अगर आज आवाज न उठाई तो कल और मासूमों के साथ ऐसा होगा।"
फातिमा बेगम ने प्रशासन से गुहार लगाई है कि घटना की वीडियोग्राफी देखी जाए और दोषियों पर कठोर कार्रवाई की जाए। उन्होंने कहा कि यह केवल उनकी बेटी का मामला नहीं है, बल्कि हर उस बच्चे की सुरक्षा का सवाल है, जिसे शिक्षा के मंदिर में सुरक्षित माहौल मिलना चाहिए।
वहीं, विद्यालय की इंचार्ज महिला प्रिंसिपल ने आरोपों से पल्ला झाड़ते हुए कहा कि 16 सितंबर को संकुल की बैठक थी, जिस कारण विद्यालय सामान्य समय से एक घंटा पहले ही बंद कर दिया गया था। उन्होंने दावा किया कि यह लापरवाही विद्यालय के चपरासी की ओर से हुई होगी। साथ ही उन्होंने खुद को सांप्रदायिक आधार पर परेशान किए जाने का आरोप भी लगाया।
इस पूरे मामले में खंड शिक्षा अधिकारी आराजी लाइन शशिकांत श्रीवास्तव ने कहा कि उन्हें घटना की कोई जानकारी नहीं थी। अब जब मामला सामने आया है तो जांच कराई जाएगी और दोषियों के खिलाफ आवश्यक कार्रवाई की जाएगी।
लेकिन सवाल यही है कि आखिर जांच और कार्यवाही का यह चक्र कब तक चलता रहेगा? क्या एक मासूम दिव्यांग बच्ची के आंसुओं और दर्द को केवल कागजी जांच में दबा दिया जाएगा? समाज में यह सवाल गूंज रहा है कि यदि स्कूलों में भी बच्चों को सुरक्षित माहौल न मिले, तो अभिभावक अपने बच्चों को भरोसे के साथ कहां भेजें?
यह घटना न केवल एक परिवार की पीड़ा है, बल्कि पूरे समाज के लिए चेतावनी है। दिव्यांग बच्ची के साथ हुआ यह अमानवीय व्यवहार हमें यह सोचने पर मजबूर करता है कि शिक्षा के मंदिरों में संवेदनाओं का स्थान आखिर कहां खो गया है।
वाराणसी: प्राथमिक विद्यालय में दिव्यांग छात्रा तीन घंटे कमरे में रही बंद, परिजनों ने न्याय की लगाई गुहार

वाराणसी के एक प्राथमिक विद्यालय में दिव्यांग छात्रा को तीन घंटे तक कमरे में बंद किया गया, परिजनों ने पुलिस की मदद से उसे बाहर निकाला।
Category: uttar pradesh varanasi crime
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