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जौनपुर: रिश्वतखोरी के आरोप में थानाध्यक्ष निलंबित, सिपाही और लेखपाल पर दर्ज हुई FIR

जौनपुर: रिश्वतखोरी के आरोप में थानाध्यक्ष निलंबित, सिपाही और लेखपाल पर दर्ज हुई FIR

जौनपुर के मुंगराबादशाहपुर में ग्राम समाज की भूमि विवाद में रिश्वतखोरी और धमकाने के आरोप लगने पर थानाध्यक्ष, सिपाही और लेखपाल निलंबित, साथ ही सिपाहियों और लेखपाल पर प्राथमिकी दर्ज की गई है।

जौनपुर: मुंगराबादशाहपुर थाना क्षेत्र अंतर्गत बड़ागांव में ग्राम समाज की भूमि को लेकर चल रहे विवाद ने शुक्रवार को एक नई करवट ली, जब मामले में हाईकोर्ट की निगरानी के बीच पुलिस और राजस्व विभाग के अधिकारियों पर रिश्वतखोरी और धमकाने के गंभीर आरोप सामने आए। इन आरोपों के आधार पर पुलिस अधीक्षक डॉ. कौस्तुभ कुमार ने बड़ी कार्रवाई करते हुए थानाध्यक्ष दिलीप कुमार सिंह, हल्का सिपाही पंकज मौर्य, नीतीश गौड़ और लेखपाल विजय शंकर को तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया है। यही नहीं, सिपाही पंकज मौर्य, नीतीश गौड़ और लेखपाल विजय शंकर के विरुद्ध प्राथमिकी भी दर्ज कर ली गई है।

पूरा मामला ग्राम बड़ागांव निवासी गौरीशंकर सरोज द्वारा ग्राम समाज की जमीन पर हो रहे कथित अवैध कब्जे को लेकर दायर की गई एक जनहित याचिका से जुड़ा है, जिसे उन्होंने 30 मई को इलाहाबाद हाईकोर्ट में दाखिल किया था। याचिका पर सुनवाई करते हुए अदालत ने संबंधित थाना और जिला प्रशासन से जवाब तलब किया था। इसी सिलसिले में 17 जून को पुलिसकर्मी पंकज मौर्य और नीतीश गौड़ के साथ लेखपाल विजय शंकर, वादी गौरीशंकर सरोज के घर पहुंचे थे, जहां उन्होंने याचिका वापस लेने का दबाव बनाया। इसके अलावा, आरोप है कि उन्होंने गौरीशंकर के नाती रजनीश सरोज को जबरन हिरासत में ले लिया और कुछ दूरी पर ले जाकर दो हजार रुपये की रिश्वत लेकर छोड़ा।

घटना की जानकारी वादी ने अपने अधिवक्ता के माध्यम से अदालत को दी और वादी व उसके नाती का बयान भी दर्ज कराया गया। हाईकोर्ट ने मामले की गंभीरता को देखते हुए 8 जुलाई को एसपी जौनपुर को निर्देश दिया कि वे पूरे घटनाक्रम की निष्पक्ष जांच कर 9 जुलाई को अदालत में स्वयं उपस्थित होकर रिपोर्ट प्रस्तुत करें। लेकिन इससे पहले ही, 8 जुलाई की रात मुंगराबादशाहपुर के थानाध्यक्ष दिलीप कुमार सिंह मयफोर्स अधिवक्ता के घर पहुंच गए और उन पर मुलाकात करने के लिए दबाव बनाने का प्रयास किया। अधिवक्ता की गैरमौजूदगी में पुलिसकर्मियों ने उनके परिजनों को कथित रूप से धमकाया भी।

इस दबाव और धमकी को लेकर अधिवक्ता ने कोर्ट में शपथपत्र प्रस्तुत किया, जिसे गंभीरता से लेते हुए न्यायालय ने एसपी जौनपुर और उत्तर प्रदेश के गृह सचिव को निर्देश दिया है कि वे आगामी 15 जुलाई को अदालत में अधिवक्ता के साथ हुए पूरे घटनाक्रम पर शपथपत्र दाखिल करें।

कोर्ट की फटकार और लगातार सामने आ रही शिकायतों के मद्देनजर एसपी डॉ. कौस्तुभ कुमार ने यह कार्रवाई करते हुए स्पष्ट किया कि पुलिस विभाग में भ्रष्टाचार और पक्षपात को किसी भी रूप में बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। उन्होंने बताया कि "हाईकोर्ट में दाखिल याचिका को वापस लेने के लिए धमकाने और रिश्वत लेने के आरोपों की पुष्टि के बाद थानाध्यक्ष, दोनों सिपाही और लेखपाल को निलंबित कर दिया गया है। सिपाही और लेखपाल के खिलाफ मुकदमा भी दर्ज कर लिया गया है।"

यह मामला न केवल कानून व्यवस्था की निष्पक्षता पर सवाल खड़े करता है, बल्कि सरकारी अधिकारियों की कार्यशैली और आम नागरिकों पर दबाव बनाने की प्रवृत्ति को भी उजागर करता है। अब निगाहें 15 जुलाई की सुनवाई पर टिकी हैं, जब कोर्ट के समक्ष राज्य सरकार और पुलिस प्रशासन को अपना पक्ष और कार्रवाई का विवरण प्रस्तुत करना है।

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