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वाराणसी: श्री काशी विश्वनाथ धाम में किन्नर समाज का जलाभिषेक, आम श्रद्धालु भी हुए शामिल

वाराणसी: श्री काशी विश्वनाथ धाम में किन्नर समाज का जलाभिषेक, आम श्रद्धालु भी हुए शामिल

किन्नर समाज ने श्री काशी विश्वनाथ धाम में 11 साल पुरानी परंपरा का निर्वाह करते हुए जलाभिषेक किया, जिसमें पहली बार आम श्रद्धालुओं ने भी भाग लिया और गंगाजल अर्पित कर देश की सुख-शांति की कामना की।

वाराणसी: किन्नर समाज ने गुरुवार को गहन श्रद्धा और परंपरा के साथ श्री काशी विश्वनाथ मंदिर में बाबा विश्वनाथ का जलाभिषेक किया। यह आयोजन समाज की उस 11 वर्षों पुरानी परंपरा का हिस्सा है, जिसके अंतर्गत किन्नर समुदाय हर सावन माह में बाबा को गंगाजल अर्पित कर देश और समाज की सुख-शांति की कामना करता है। इस बार की विशेष बात यह रही कि इस धार्मिक यात्रा में किन्नर समुदाय के साथ पहली बार आम श्रद्धालुओं ने भी सहभागिता की, जिससे आयोजन में भक्ति और समरसता की एक नई छवि उभरकर सामने आई।

गुरुवार सुबह, किन्नर समाज की प्रमुख सलमा किन्नर के नेतृत्व में निकली जलाभिषेक यात्रा में किन्नर समुदाय के लोग ढोल-नगाड़ों की थाप पर थिरकते हुए शीतला घाट पहुंचे। वहां मां गंगा का विधिवत पूजन करने के बाद सभी ने गंगाजल कलश में भरकर जलाभिषेक के लिए श्री काशी विश्वनाथ धाम की ओर प्रस्थान किया। यात्रा मार्ग पर 'हर-हर महादेव' के जयघोषों और भक्तिरस में डूबी हुई श्रद्धालुओं की टोली ने धार्मिक वातावरण को और भी जीवंत बना दिया।

विश्वनाथ धाम पहुंचने पर जलाभिषेक के लिए जब किन्नर समाज के लोग गर्भगृह में प्रवेश करना चाह रहे थे, तो उन्हें पहले रोक दिया गया, जिससे क्षणिक असमंजस की स्थिति उत्पन्न हो गई। हालांकि, मौके पर मौजूद अधिकारियों के हस्तक्षेप के बाद व्यवस्था सामान्य हुई और किन्नर समुदाय को मंदिर के गर्भगृह में प्रवेश देकर बाबा विश्वनाथ का अभिषेक करने की अनुमति प्रदान की गई। इसके बाद किन्नरों ने गर्भगृह में जल चढ़ाकर परंपरा का निर्वहन किया और बाबा के स्वर्ण शिखर को नमन करते हुए देश और समाज की उन्नति की प्रार्थना की।

सलमा किन्नर ने बताया कि वह वर्ष 2014 से लगातार सावन के इस पावन महीने में बाबा विश्वनाथ का जलाभिषेक करती आ रही हैं। उनके अनुसार, बाबा महादेव उनके गुरु स्वरूप हैं और यह अभिषेक उनके प्रति श्रद्धा और आत्मिक संबंध की अभिव्यक्ति है। उन्होंने कहा, “हम बाबा से हमेशा यही प्रार्थना करते हैं कि देश में प्रेम, सौहार्द और समृद्धि बनी रहे। समाज में किन्नर समुदाय को भी सम्मान और समान अधिकार मिले।”

जलाभिषेक के इस आयोजन ने धार्मिक आस्था के साथ-साथ सामाजिक समरसता का भी संदेश दिया, जिसमें परंपरा और प्रगतिशीलता का सुंदर संगम देखने को मिला। आयोजनों की शृंखला और श्रद्धालुओं की सहभागिता यह दर्शाती है कि काशी की धरती पर भक्ति और सामाजिक समावेश की परंपराएं आज भी उतनी ही जीवंत हैं, जितनी सदियों पूर्व थीं।

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