वाराणसी में सोमवार को आयोजित लोटा-भंटा मेले में श्रद्धा और परंपरा का अनोखा संगम देखने को मिला। यह ऐतिहासिक मेला हर वर्ष मार्गशीर्ष माह की षष्ठी तिथि पर आयोजित किया जाता है। काशी के विभिन्न हिस्सों से हजारों श्रद्धालु इस दिन भगवान भोलेनाथ को बाटी-चोखा का भोग लगाने के लिए एकत्र हुए। नगर के जंसा, रामेश्वर, पांचों शिवाला और हरहुआ के बीच वरुणा नदी के कछार पर दूर तक फैला यह मेला धार्मिक उल्लास और लोक आस्था का प्रतीक बना रहा। जगह-जगह बने अहरों से उठता धुआं इस आयोजन की भव्यता और उत्साह की गवाही दे रहा था।
धार्मिक मान्यता के अनुसार, प्रभु श्रीराम ने इसी स्थल पर लोटा-भंटा मेले की परंपरा की शुरुआत की थी। कहा जाता है कि उन्होंने यहां एक मुट्ठी रेत से शिवलिंग की स्थापना की थी और एक लोटा जल के साथ बाटी-चोखा का भोग अर्पित किया था। उस समय प्रभु राम ने भगवान शिव की आराधना करते हुए काशी में धर्म और भक्ति की इस परंपरा को स्थायी रूप दिया। यही कारण है कि आज भी काशीवासी इस मेले में उत्साहपूर्वक भाग लेते हैं और शिव को उसी रूप में प्रसाद अर्पित करते हैं।
पंडित विकास ने जानकारी दी कि भगवान राम ने अपने जीवन में दो बार काशी की 84 कोस परिक्रमा की थी। पहली बार उन्होंने यह परिक्रमा अपने पिता राजा दशरथ को श्रवण कुमार के श्राप से मुक्त कराने के लिए लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न के साथ की थी। दूसरी बार रावण वध के बाद ब्रह्महत्या के दोष से मुक्ति पाने के लिए उन्होंने मां सीता और लक्ष्मण के साथ यह यात्रा की। इसी यात्रा के दौरान उन्होंने रामेश्वर तीर्थ पर पूजा अर्चना कर बाटी-चोखा का भोग लगाया था।
स्थानीय मान्यता के अनुसार, अगहन की षष्ठी तिथि पर काशी पंचक्रोशी परिक्रमा के तीसरे पड़ाव स्थल रामेश्वर तीर्थ पर स्नान, दर्शन और रात्रि प्रवास करने से नि:संतान दंपतियों को संतान प्राप्ति का वरदान मिलता है। इसलिए यह दिन विशेष रूप से पुण्यदायक माना जाता है।
मेले में आए श्रद्धालुओं ने सुबह से ही गंगा और वरुणा नदी में स्नान कर भगवान भोलेनाथ और श्रीराम का पूजन किया। महिलाएं परिवार की समृद्धि की कामना के साथ दीपदान करती नजर आईं। शाम तक पूरा क्षेत्र भक्ति और लोक परंपरा की भावना से सराबोर रहा।
वाराणसी में लोटा-भंटा मेले में उमड़ा भक्तों का सैलाब, श्रीराम ने शुरू की थी परंपरा

वाराणसी में मार्गशीर्ष षष्ठी पर आयोजित ऐतिहासिक लोटा-भंटा मेले में उमड़ी भीड़, हजारों भक्तों ने शिव को बाटी-चोखा का भोग लगाया।
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