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मॉरीशस की आधी से अधिक आबादी उत्तर भारत के दलित समुदाय से, नए शोध में बड़ा खुलासा

मॉरीशस की आधी से अधिक आबादी उत्तर भारत के दलित समुदाय से, नए शोध में बड़ा खुलासा

बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के शोध से पता चला है कि मॉरीशस की 50% से अधिक आबादी उत्तर भारत के दलित समुदाय से संबंध रखती है।

मॉरीशस, हिंद महासागर का एक छोटा लेकिन महत्वपूर्ण द्वीप देश, अपनी प्राकृतिक सुंदरता और समृद्ध सांस्कृतिक विविधता के लिए जाना जाता है। हालांकि इसकी पहचान केवल समुद्री नजारों तक सीमित नहीं है। यहां की सामाजिक संरचना और विकास यात्रा में भारत, खासकर उत्तर भारत के दलित समुदाय का योगदान गहराई से दर्ज है। बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के जीन वैज्ञानिक प्रोफेसर ज्ञानेश्वर चौबे के नेतृत्व में किए गए एक शोध ने इस तथ्य को और स्पष्ट किया है।

शोध में सामने आया है कि मॉरीशस की आबादी में सबसे बड़ा योगदान उत्तर भारत के अनुसूचित जाति समुदाय का रहा है। अध्ययन के अनुसार यहां की कुल जनसंख्या में लगभग 50 प्रतिशत लोग उत्तर भारत के एससी समुदाय से जुड़े हैं। इसके अलावा 41 प्रतिशत लोग द्रविड़ मूल के हैं, पांच प्रतिशत की जड़ें पाकिस्तान क्षेत्र से जुड़ती हैं और मात्र तीन प्रतिशत ब्राह्मण पाए गए। यह आंकड़े बताते हैं कि मॉरीशस का सामाजिक आधार काफी हद तक भारतीय समाज से मेल खाता है।

इतिहास पर नजर डालें तो यह योगदान औपनिवेशिक दौर से शुरू होता है। दास प्रथा खत्म होने के बाद अंग्रेजों को अपने उपनिवेशों में श्रमिकों की भारी जरूरत थी। इसी क्रम में वर्ष 1834 से 1910 के बीच लगभग चार लाख से अधिक भारतीयों को अनुबंधित श्रमिक या गिरमिटिया मजदूर बनाकर मॉरीशस ले जाया गया। इनमें सबसे अधिक संख्या दलित और पिछड़े वर्ग के मजदूरों की थी। ये मजदूर बिहार, पूर्वांचल और उत्तर प्रदेश के अन्य हिस्सों से पहुंचे थे और ज्यादातर भोजपुरी भाषा बोलते थे। यही वजह है कि आज भी मॉरीशस में भोजपुरी और हिंदी व्यापक रूप से बोली जाती है।

बीएचयू के इस शोध में यह भी सामने आया है कि उस समय मॉरीशस गए मजदूरों में करीब 50 से 60 प्रतिशत दलित समुदाय से थे। उन्होंने गन्ने के खेतों, बंदरगाहों और अन्य कठिन कार्यों में परिश्रम और ईमानदारी से योगदान दिया। धीरे-धीरे उनकी आने वाली पीढ़ियां यहीं बस गईं और मॉरीशस के सामाजिक और आर्थिक ढांचे को मजबूत करने में अहम भूमिका निभाई।

आज भी मॉरीशस की संस्कृति और जीवनशैली में भारतीयता की गहरी छाप दिखाई देती है। वहां के विवाह समारोह, त्योहार, धार्मिक अनुष्ठान और सामाजिक परंपराएं भारत से काफी हद तक मिलती-जुलती हैं। इसी कारण मॉरीशस को अक्सर मिनी भारत या छोटा भारत कहा जाता है।

एक रिपोर्ट के अनुसार मॉरीशस की कुल आबादी में 52 प्रतिशत हिंदू, 30.7 प्रतिशत ईसाई, 16.1 प्रतिशत मुस्लिम और करीब 2.9 प्रतिशत चीनी लोग रहते हैं। इसमें 70 प्रतिशत आबादी भारतीय मूल की है। यह विविधता देश को धार्मिक सहिष्णुता और सांस्कृतिक समृद्धि का अनोखा उदाहरण बनाती है।

मॉरीशस का उपनिवेशवादी इतिहास भी इसी योगदान से गहराई से जुड़ा है। 1715 में फ्रांस ने इस पर कब्जा किया था और बाद में 1810 में यह ब्रिटेन के अधीन चला गया। 2 नवंबर 1834 को जब पहला जहाज एटलस भारतीय मजदूरों को लेकर यहां पहुंचा, तब से अप्रवासी भारतीयों की संघर्ष यात्रा शुरू हुई। मजदूर जिस घाट पर उतरे थे, उसे आज भी अप्रवासी घाट कहा जाता है। इस ऐतिहासिक घटना की स्मृति में हर वर्ष 2 नवंबर को अप्रवासी दिवस मनाया जाता है।

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