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मिर्जापुर: विंध्य पंडा समाज ने मारपीट के बाद सात लोगों को 15 दिन के लिए किया निष्कासित

मिर्जापुर: विंध्य पंडा समाज ने मारपीट के बाद सात लोगों को 15 दिन के लिए किया निष्कासित

विंध्याचल धाम में दो मारपीट की घटनाओं के बाद श्री विंध्य पंडा समाज ने अनुशासन बनाए रखने के लिए सात लोगों को 15 दिन के लिए निष्कासित किया।

मिर्जापुर: विंध्याचल स्थित पवित्र श्री विंध्यवासिनी धाम में विगत 15 दिनों के भीतर मारपीट की दो अलग-अलग घटनाओं के बाद श्री विंध्य पंडा समाज ने अनुशासन कायम रखने के लिए बड़ी कार्रवाई करते हुए सात लोगों को 15 दिन के लिए समाज से निष्कासित कर दिया है। निष्कासित किए गए लोगों में प्रतिष्ठित शृंगारिया परिवार के दो सदस्य भी शामिल हैं। समाज ने इस अवधि तक उनके तीर्थ पुरोहिती और शृंगार पूजन पर पूर्ण रोक लगाने का निर्णय लिया है।

पंडा समाज के अध्यक्ष पंकज द्विवेदी ने जानकारी देते हुए बताया कि यह निर्णय चार जुलाई और 23 जुलाई को हुई घटनाओं की विस्तृत जांच और वायरल हुए वीडियो फुटेज के विश्लेषण के बाद लिया गया है। चार जुलाई को मंदिर के गर्भगृह में हुए विवाद और 23 जुलाई को मंदिर के समीप स्थित पूजा सामग्री की दुकान पर हुई मारपीट की घटनाएं न केवल मंदिर की गरिमा को ठेस पहुंचाने वाली थीं, बल्कि पूरे तीर्थ क्षेत्र की मर्यादा पर भी सवाल उठाने वाली रहीं। इन घटनाओं के वीडियो सोशल मीडिया पर व्यापक रूप से वायरल हुए, जिन्हें लाखों लोगों ने देखा और सार्वजनिक रूप से आलोचना की।

जांच में सामने आए तथ्यों के आधार पर पंडा समाज ने यह स्पष्ट किया कि उक्त घटनाओं में शामिल सभी पक्षों के आचरण ने समाज और मंदिर की प्रतिष्ठा को धूमिल किया है। इसी के चलते शृंगारिया शिव जी के पुत्र शिवांजू मिश्रा और भतीजे सत्यकाम मिश्रा सहित पांच व्यक्तियों अमित पांडेय, सुमित पांडेय और नवनीत पांडेय को 15 दिन के लिए निष्कासित कर तीर्थ पुरोहिती और शृंगार पूजन से दूर रहने का आदेश दिया गया है। इसके अतिरिक्त, 23 जुलाई की दूसरी घटना में निवेदित भट्ट और उत्तम पांडेय को भी समान अवधि के लिए निष्कासित किया गया है।

पंडा समाज द्वारा जारी विज्ञप्ति में यह भी कहा गया है कि इन अनुशासनात्मक कार्रवाइयों का उद्देश्य न केवल मंदिर की गरिमा की रक्षा करना है, बल्कि समाज के भीतर आचार संहिता को सुदृढ़ बनाना भी है। समाज का मानना है कि इन घटनाओं को यदि अनदेखा किया गया तो भविष्य में धार्मिक अनुशासन और श्रद्धालुओं की आस्था पर प्रतिकूल असर पड़ेगा।

हालांकि इस फैसले पर शृंगारिया परिवार की ओर से विरोध भी सामने आया है। शृंगारिया शिव जी ने इस निष्कासन को एकतरफा कार्रवाई बताते हुए कहा कि पंडा समाज केवल तीर्थ पुरोहितों पर प्रतिबंध लगा सकता है, शृंगार कार्यों में संलग्न लोगों को रोकने का अधिकार उनके पास नहीं है। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि जांच प्रक्रिया में निष्पक्षता नहीं बरती गई और समिति में शामिल कुछ व्यक्तियों की भूमिका पक्षपातपूर्ण रही है।

मामले ने तीर्थ क्षेत्र में तीखी प्रतिक्रिया उत्पन्न की है। कई श्रद्धालु और स्थानीय लोग मंदिर की गरिमा बनाए रखने के लिए समाज के निर्णय को सराह रहे हैं, वहीं कुछ लोग निष्कासित किए गए सदस्यों की बातों को भी गंभीरता से ले रहे हैं। इस प्रकरण ने न केवल विंध्यवासिनी मंदिर क्षेत्र की आंतरिक व्यवस्थाओं को सार्वजनिक बहस का विषय बना दिया है, बल्कि यह भी दिखाया है कि धार्मिक स्थलों की मर्यादा बनाए रखने के लिए सभी पक्षों को संयम और अनुशासन का पालन करना कितना आवश्यक है।

अब देखना यह होगा कि आगामी दिनों में इस निष्कासन के प्रभाव और समाज के भीतर उत्पन्न मतभेद किस दिशा में जाते हैं, और क्या विंध्य पंडा समाज इस निर्णय को अंतिम रूप में लागू करने में सफल होता है या फिर इस पर पुनर्विचार की कोई प्रक्रिया प्रारंभ की जाती है।

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