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मिल्कीपुर-रामनगर बंदरगाह विस्तार पर गरमाया विवाद, ग्रामीणों के विरोध के आगे झुका प्रशासन

मिल्कीपुर-रामनगर बंदरगाह विस्तार पर गरमाया विवाद, ग्रामीणों के विरोध के आगे झुका प्रशासन

रामनगर बंदरगाह विस्तार के लिए पहुंची प्रशासनिक टीम को महिलाओं के कड़े विरोध के बाद खाली हाथ लौटना पड़ा, ग्रामीणों में आक्रोश।

वाराणसी जनपद के रामनगर क्षेत्र में प्रस्तावित बंदरगाह विस्तार को लेकर हालात फिर से तनावपूर्ण हो गए जब शुक्रवार को प्रशासनिक अमला भारी पुलिस बल के साथ बंदरगाह के आसपास की जमीन को खाली कराने के उद्देश्य से पहुंचा। यह कार्रवाई बिना किसी पूर्व सूचना के की गई, जिससे ग्रामीणों में खासा आक्रोश देखा गया। विरोध की कमान इस बार गांव की महिलाओं ने संभाली, जिन्होंने प्रशासनिक दल के रवैये पर गंभीर आरोप लगाए हैं।

स्थानीय ग्रामीणों का कहना है कि टीम ने सुबह अचानक गांव में दस्तक दी और जमीन खाली कराने की कोशिश शुरू कर दी। इस दौरान महिलाओं को धक्का-मुक्की का शिकार होना पड़ा और उन्हें डराने-धमकाने की भी कोशिश की गई। मौके पर मौजूद ग्रामीणों के मुताबिक, “प्रशासनिक लोग बार-बार धमकी दे रहे थे कि यह जमीन सरकार की है और इसे खाली कराना ही होगा, चाहे जैसे भी हो। हमसे कोई बातचीत नहीं की गई और न ही किसी प्रकार की अधिसूचना या नोटिस दिखाया गया।”

गांव की महिलाओं ने जब टीम का विरोध किया और खेतों में डट गईं, तो स्थिति तनावपूर्ण हो गई। महिलाओं ने आरोप लगाया कि उन्हें धकेला गया, डराया गया और कहा गया कि अगर जमीन नहीं छोड़ी तो कानूनी कार्रवाई की जाएगी। इसके बावजूद महिलाओं ने हार नहीं मानी और एकजुट होकर विरोध किया। प्रशासन की टीम को भारी विरोध और स्थानीय आक्रोश के चलते अंततः पीछे हटना पड़ा।

गौरतलब है कि रामनगर क्षेत्र में गंगा किनारे बंदरगाह का निर्माण और विस्तार परियोजना बीते कुछ वर्षों से केंद्र सरकार और अंतर्देशीय जलमार्ग प्राधिकरण (IWAI) के अधीन चल रही है। यह योजना वाराणसी को राष्ट्रीय जलमार्ग नेटवर्क से जोड़ने के लिए तैयार की गई है, जिसका उद्देश्य मालवाहक परिवहन को गंगा के जरिए सस्ता और सुगम बनाना है। हालांकि, जिस भूमि पर यह विस्तार प्रस्तावित है, वह कई ग्रामीण परिवारों की पीढ़ियों से जीविका का स्रोत रही है।

ग्रामीणों का कहना है कि उनके पास भूमि संबंधी कागजात मौजूद हैं और वे किसी भी कीमत पर अपनी पुश्तैनी जमीन नहीं छोड़ेंगे। एक महिला ने भावुक होते हुए कहा, “हम यहां वर्षों से खेती कर रहे हैं, यही हमारी रोजी-रोटी है। सरकार चाहे जो करे, हम अपनी जमीन नहीं छोड़ेंगे। हमारी जमीन लेनी है तो पहले हमारी लाशों से होकर जाना होगा।”

इस घटनाक्रम को लेकर प्रशासनिक अधिकारियों की ओर से कोई स्पष्ट बयान सामने नहीं आया है। सूत्रों की मानें तो जमीन का अधिग्रहण केंद्र सरकार की योजना के अंतर्गत किया जा रहा है, जिसमें राज्य प्रशासन की भूमिका क्रियान्वयन की है। लेकिन गांव वालों का आरोप है कि उनसे न तो किसी प्रकार की सहमति ली गई, न मुआवजा तय किया गया और न ही कोई बातचीत की गई।

फिलहाल गांव में माहौल तनावपूर्ण बना हुआ है। स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ताओं और जनप्रतिनिधियों ने मामले में दखल देने की मांग की है और सरकार से अपील की है कि बिना संवाद और वैकल्पिक व्यवस्था के किसी की जमीन जबरन न ली जाए।

यह घटनाक्रम एक बार फिर यह सवाल खड़ा करता है कि विकास परियोजनाओं को लागू करते समय आम जनता, विशेष रूप से ग्रामीण समुदाय की सहमति और अधिकारों को कितना महत्व दिया जा रहा है। रामनगर की इस जमीनी लड़ाई में जहां एक तरफ सरकार की विकास योजनाएं हैं, वहीं दूसरी तरफ अपनी जमीन और अस्मिता की रक्षा करती महिलाएं।जो बिना किसी राजनीतिक या कानूनी प्रशिक्षण के भी, लोकतंत्र में अपने अधिकार की आवाज़ बुलंद कर रही हैं।

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