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लखनऊ विधान परिषद में लोकतंत्र की हत्या पर पक्ष और विपक्ष में तीखा टकराव, माफी के बाद सत्र समाप्त

लखनऊ विधान परिषद में लोकतंत्र की हत्या पर पक्ष और विपक्ष में तीखा टकराव, माफी के बाद सत्र समाप्त

यूपी विधान परिषद में विपक्ष और सरकार के बीच तीखी बहस, 'लोकतंत्र की हत्या' के आरोप पर माफी से सत्र खत्म हुआ।

लखनऊ: उत्तर प्रदेश विधानमंडल के शीतकालीन सत्र का समापन बुधवार को भारी राजनीतिक उठापटक और तीखी नोकझोंक के बीच हुआ। विधान परिषद में बुधवार का दिन संसदीय मर्यादा और राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप के लिहाज से बेहद संवेदनशील रहा, जहां सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच टकराव चरम पर पहुंच गया। सदन की कार्यवाही के दौरान स्थिति उस वक्त अनियंत्रित हो गई जब नेता प्रतिपक्ष लाल बिहारी यादव और सभापति कुंवर मानवेंद्र सिंह के बीच तीखा संवाद हुआ। यह पूरा मामला तब शुरू हुआ जब निर्दल समूह के सदस्य राजबहादुर सिंह चंदेल और आकाश अग्रवाल यूपी बोर्ड के स्कूलों की मान्यता के नियमों में ढील देने को लेकर कार्यस्थगन प्रस्ताव के जरिए अपनी बात रख रहे थे। इसी दौरान नेता प्रतिपक्ष लाल बिहारी यादव ने हस्तक्षेप करते हुए एक पूरक प्रश्न पूछने का प्रयास किया। जब सभापति ने उन्हें टोकते हुए अपनी सीट पर बैठने का निर्देश दिया, तो लाल बिहारी यादव ने आवेश में आकर पीठ पर 'लोकतंत्र की हत्या' करने जैसा बेहद गंभीर आरोप मढ़ दिया। इस टिप्पणी ने सदन के माहौल को गरमा दिया, जिसके बाद सभापति ने कड़ा रुख अपनाते हुए नेता प्रतिपक्ष को सदन से बाहर जाने का निर्देश दे दिया।

सदन के भीतर गतिरोध इतना बढ़ गया कि सभापति को यह तक कहना पड़ा कि उन्हें कठोर निर्णय लेने के लिए बाध्य न किया जाए। बावजूद इसके, जब नेता प्रतिपक्ष अपनी बात पर अड़े रहे, तो पीठ ने व्यवस्था दी कि उनका कोई भी वक्तव्य रिकॉर्ड में शामिल नहीं किया जाएगा। स्थिति की गंभीरता को देखते हुए सपा के अन्य सदस्यों और शिक्षक व निर्दल समूह के विधायकों ने भी लाल बिहारी यादव को शांत रहने और बैठ जाने का सुझाव दिया, लेकिन तनातनी कम नहीं हुई। अंततः नेता प्रतिपक्ष ने सपा के सभी सदस्यों के साथ सदन से वॉकआउट कर दिया। हालांकि, नाटक यहीं खत्म नहीं हुआ। करीब 15 मिनट बाद जब नेता प्रतिपक्ष अपने दल-बल के साथ वापस लौटे, तो सभापति ने उन्हें पुनः सदन से बाहर जाने का आदेश दिया। इस मौके पर नेता सदन केशव प्रसाद मौर्य ने हस्तक्षेप करते हुए नसीहत दी कि संविधान और नियमावली के दायरे में रहकर पीठ का सम्मान करना पक्ष और विपक्ष दोनों की जिम्मेदारी है। वरिष्ठ सदस्य राजबहादुर सिंह चंदेल की मध्यस्थता और यह सुझाव देने पर कि यदि नेता प्रतिपक्ष माफी मांग लेते हैं तो कार्यवाही न की जाए, लाल बिहारी यादव ने अंततः सदन में आकर पीठ से खेद प्रकट किया और कहा कि यदि उनकी बातों से सभापति आहत हुए हैं, तो वे क्षमाप्रार्थी हैं। इसके बाद ही सदन की स्थिति सामान्य हो सकी।

वहीं दूसरी ओर, विधानसभा में भी राजनीतिक तापमान सातवें आसमान पर रहा, जहां ऊर्जा मंत्री ए.के. शर्मा ने समाजवादी पार्टी को बिजली व्यवस्था के मुद्दे पर करारा जवाब दिया। प्रश्नकाल के दौरान सपा विधायक अनिल प्रधान के सवाल पर पलटवार करते हुए शर्मा ने कहा कि विपक्ष की समस्या बिजली आपूर्ति नहीं, बल्कि 'श्रीराम' और 'वंदे मातरम' से है। उन्होंने सपा कार्यकाल की खामियों को उजागर करते हुए कहा कि पिछली सरकार प्रदेश को बांस-बल्लियों के सहारे बिजली के तार झूलती अवस्था में छोड़कर गई थी, जिसे वर्तमान सरकार ने दुरुस्त किया है। ऊर्जा मंत्री ने आंकड़ों का हवाला देते हुए दावा किया कि सपा के समय जहां मात्र 13 हजार मेगावाट की मांग रहती थी, वहीं आज योगी सरकार 30 हजार मेगावाट की रिकॉर्ड आपूर्ति कर रही है। अदाणी ग्रुप से महंगी बिजली खरीदने के विपक्ष के आरोपों पर उन्होंने तीखा हमला बोलते हुए याद दिलाया कि 11 साल पहले सपा सरकार ने ही अदाणी से एक रुपये यूनिट महंगी बिजली खरीदने का अनुबंध किया था, जिसका खामियाजा विभाग आज तक भुगत रहा है। उन्होंने स्मार्ट मीटरों को लेकर भी स्थिति स्पष्ट की और कहा कि यह उपभोक्ताओं की सहूलियत के लिए है और पुराने उपभोक्ताओं से इसका पैसा नहीं वसूला जा रहा।

सदन की कार्यवाही शुरू होने से पहले विधानभवन के बाहर भी सपा का विरोध प्रदर्शन देखने को मिला। सपा सदस्य अतुल प्रधान ने 'सेव अरावली' का पोस्टर हाथ में लेकर मुख्य द्वार पर प्रदर्शन किया और आरोप लगाया कि सरकार अपने उद्योगपति मित्रों के फायदे के लिए पर्यावरण को दांव पर लगा रही है। उन्होंने पर्यावरणविद सोनम वांगचुक की गिरफ्तारी का जिक्र करते हुए कहा कि सरकार का पर्यावरण संरक्षण से कोई सरोकार नहीं है। दिन भर चले इन तमाम हंगामों, विमर्श और अनुपूरक बजट के पास होने के बाद, विधानमंडल के दोनों सदनों की कार्यवाही को अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर दिया गया। अंतिम दिन सरकार ने अपने विधायी कार्य निपटाए, लेकिन यह दिन संसदीय इतिहास में तीखे वाकयुद्ध और माफीनामे के लिए याद रखा जाएगा।

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