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वाराणसी में मटुका और नाद नदियां फिर से जीवित, जल संरक्षण में बड़ी सफलता

वाराणसी में मटुका और नाद नदियां फिर से जीवित, जल संरक्षण में बड़ी सफलता

वाराणसी में कैच द रेन मिशन के तहत सूख चुकी मटुका और नाद नदियों को पुनर्जीवित किया गया है, जिससे भूजल स्तर में सुधार हुआ।

वाराणसी में जल संरक्षण के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण उपलब्धि हासिल की गई है। कभी सूख चुकी मटुका नदी और नाद नदी को अब पूरी तरह पुनर्जीवित कर दिया गया है। यह प्रयास न केवल नदी को उसके पुराने स्वरूप में लौटाने की दिशा में एक बड़ा कदम है, बल्कि इसका उद्देश्य वर्षा जल को संरक्षित कर भूजल स्तर को बढ़ाना भी है। 'कैच द रेन' मिशन की भावना को साकार करते हुए इस परियोजना ने वाराणसी को जल प्रबंधन और पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई है।

कई वर्षों से सूखी पड़ी मटुका नदी अब बरसात के मौसम में निर्बाध रूप से बह रही है। नाद नदी के साथ मिलकर यह अब एक बार फिर जीवन का प्रतीक बन गई है। इन नदियों पर 73 चेकडैम का निर्माण और आस-पास के गांवों में 10,000 वाटर रिचार्ज पिट बनाए जाने से जल संचयन में जबरदस्त सुधार देखने को मिला है। इससे न केवल वर्षा जल का बहाव नियंत्रित हुआ है, बल्कि भूजल स्तर में भी स्थायी सुधार की दिशा में कदम बढ़े हैं।

इस पहल की सबसे खास बात यह है कि इसे जनभागीदारी के माध्यम से आगे बढ़ाया गया। अमृत सरोवर योजना के तहत वाराणसी जिले में 900 तालाबों का पुनरुद्धार किया गया है, जिनमें से अधिकांश अब लबालब भरे हुए हैं। इन प्रयासों ने शहर और ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में पानी की उपलब्धता सुनिश्चित की है।

शहर में 2000 रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम और 8000 सोख्ता पिट का निर्माण कर काशी को जल संरक्षण के क्षेत्र में अग्रणी बनाया गया है। इन कदमों का सीधा असर स्थानीय जल स्रोतों पर दिख रहा है, जिससे भविष्य के जल संकट से निपटने की दिशा में मजबूत नींव रखी गई है।

कैच द रेन मिशन के तहत किए गए इन प्रयासों का परिणाम यह है कि वाराणसी को देश के नॉर्दर्न जोन में जल संरक्षण के मामले में दूसरा स्थान प्राप्त हुआ है। मीरजापुर पहले स्थान पर रहा। यह उपलब्धि वाराणसी के प्रशासन और नागरिकों के संयुक्त प्रयासों की देन है।

18 नवंबर को दिल्ली के विज्ञान भवन में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु वाराणसी को इस उत्कृष्ट कार्य के लिए सम्मानित करेंगी। वाराणसी के जिलाधिकारी सत्येंद्र कुमार और नगर आयुक्त हिमांशु नागपाल इस पुरस्कार को ग्रहण करेंगे। इस सम्मान के तहत बनारस को प्रशस्ति पत्र और दो करोड़ रुपये की धनराशि दी जाएगी, जिसका उपयोग आगे के जल संरक्षण कार्यों में किया जाएगा।

बनारस रेल इंजन कारखाना (बरेका) भी इस दिशा में अग्रणी भूमिका निभा रहा है। यहां वर्षा जल संचयन के लिए 150 बोरवेल बनाने का लक्ष्य रखा गया है, जिनमें से 41 में से 33 बोरवेल का निर्माण पहले ही पूरा हो चुका है। इन बोरवेल के माध्यम से हर साल लगभग 280 मिलियन लीटर वर्षा जल संग्रहित किया जाएगा। इसका उद्देश्य सिर्फ पानी बचाना नहीं, बल्कि गिरते भूजल स्तर को संतुलित करना और आने वाली पीढ़ियों को जल संकट से बचाना है।

जिलाधिकारी सत्येंद्र कुमार ने कहा कि बनारस में गिरते भूगर्भ जल स्तर को रोकना एक बड़ी चुनौती थी, लेकिन यह परियोजना उस दिशा में ठोस सफलता का उदाहरण बन गई है। यह उपलब्धि आगे और प्रयासों की प्रेरणा बनेगी ताकि वाराणसी को जल संरक्षण में एक मॉडल सिटी के रूप में स्थापित किया जा सके।

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