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वाराणसी: बिजली कर्मचारियों का निजीकरण विरोधी प्रदर्शन 349वें दिन भी जारी, आंदोलन तेज करने का ऐलान

वाराणसी: बिजली कर्मचारियों का निजीकरण विरोधी प्रदर्शन 349वें दिन भी जारी, आंदोलन तेज करने का ऐलान

वाराणसी में बिजली कर्मचारियों का निजीकरण के खिलाफ 349 दिन से जारी धरना प्रदर्शन और तेज होगा, उपभोक्ताओं के हित में नहीं निजीकरण।

वाराणसी में बिजली कर्मचारियों का विरोध प्रदर्शन लगातार जारी है। विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति, उत्तर प्रदेश के नेतृत्व में सोमवार को मड़ुआडीह क्षेत्र स्थित बिजली कार्यालयों पर निजीकरण के विरोध में कर्मचारियों ने धरना प्रदर्शन किया। यह आंदोलन अपने 349वें दिन में पहुंच गया है, और समिति के पदाधिकारियों ने इसे और तेज करने का ऐलान किया है।

समिति के पदाधिकारियों ने बताया कि निजीकरण के विरुद्ध प्रदेशभर में जनजागरूकता अभियान चलाया जा रहा है। इसके तहत पदाधिकारी दौरा कार्यक्रम के अंतर्गत अधिशासी अभियंता कार्यालय पहुंचे और वहां कर्मचारियों से संवाद किया। उन्होंने कहा कि बिजली क्षेत्र का निजीकरण उपभोक्ताओं और किसानों दोनों के हित में नहीं है। कल समिति के सदस्य इमिलियाघाट पहुंचकर अगले चरण की रणनीति तय करेंगे।

वक्ताओं ने कहा कि बिजली कर्मी सुधारों के लिए हमेशा तैयार हैं, लेकिन सुधारों की आड़ में निजीकरण स्वीकार नहीं किया जाएगा। उन्होंने दोहराया कि जब तक सरकार निजीकरण का फैसला वापस नहीं लेती, तब तक आंदोलन जारी रहेगा। संघर्ष समिति के सदस्यों ने कहा कि वे किसी भी परिस्थिति में उपभोक्ताओं और किसानों के हितों से समझौता नहीं करेंगे।

समिति ने बताया कि हाल ही में जारी प्रबंधन आदेश के अनुसार, नई व्यवस्था में लखनऊ विद्युत आपूर्ति कंपनी लिमिटेड (लेसा) में सभी वर्गों के कुल 5606 पद समाप्त कर दिए गए हैं। इस फैसले से बिजली कर्मचारियों में गहरा रोष है। पदों के समाप्त किए जाने को लेकर कर्मचारियों ने इसे निजीकरण की दिशा में बढ़ता कदम बताया और कहा कि इससे न केवल बिजली सेवाएं प्रभावित होंगी बल्कि हजारों परिवारों का भविष्य भी संकट में पड़ जाएगा।

संघर्ष समिति के केंद्रीय पदाधिकारियों ने आंकड़ों के साथ बताया कि इस निर्णय का सबसे अधिक असर अल्प वेतनभोगी संविदा कर्मियों पर पड़ा है। उन्होंने 15 मई 2017 के आदेश का हवाला देते हुए कहा कि शहरी क्षेत्रों के प्रत्येक विद्युत उपकेंद्र पर 36 कर्मचारियों की आवश्यकता होती है। लेसा के तहत वर्तमान में 154 उपकेंद्र हैं, जिसके अनुसार 5544 संविदा कर्मचारियों की जरूरत है। बावजूद इसके, बड़ी संख्या में पद समाप्त कर दिए गए हैं, जिससे व्यवस्था पर सीधा असर पड़ेगा।

समिति ने कहा कि सरकार को सुधारों के नाम पर निजीकरण थोपने के बजाय संवाद का रास्ता अपनाना चाहिए। कर्मचारियों ने संकल्प दोहराया कि वे उपभोक्ताओं की सेवा में किसी भी स्थिति में बाधा नहीं आने देंगे, लेकिन निजीकरण की नीति का विरोध लोकतांत्रिक तरीके से जारी रहेगा।

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