Mon, 01 Dec 2025 10:59:54 - By : Palak Yadav
काशी हिंदू विश्वविद्यालय के ट्रॉमा सेंटर ने मरीज सेवा में एक ऐतिहासिक कदम उठाते हुए ओपीडी में डॉक्टर दर्ज डिजिटल रिकॉर्डिंग प्रणाली लागू कर दी है। इस पहल के साथ यह देश का पहला लेवल 1 ट्रॉमा संस्थान बन गया है जिसने पूरी ओपीडी प्रक्रिया को इलेक्ट्रॉनिक मेडिकल रिकॉर्ड यानी EMR प्लेटफॉर्म पर स्थानांतरित किया है। अस्पताल प्रशासन का कहना है कि यह बदलाव न केवल ट्रॉमा सेंटर बल्कि पूरे क्षेत्र की स्वास्थ्य सेवाओं के लिए बड़ा सुधार साबित होगा।
नई व्यवस्था के तहत अब डॉक्टर मरीज के आने से लेकर उसकी जांच, उपचार योजना और फॉलोअप विवरण तक प्रत्येक चरण को डिजिटल रूप से दर्ज करते हैं। इससे मरीजों को लंबी कतारों में प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ती और अतीत के रिकॉर्ड तुरंत उपलब्ध हो जाते हैं। पहले जहां कागज आधारित फाइलें खो जाने या अपठनीय होने की समस्या रहती थी, वहीं डिजिटल रिकॉर्डिंग ने इस चुनौती को पूरी तरह समाप्त कर दिया है। रियल टाइम डेटा शेयरिंग की सुविधा से ट्रॉमा, ऑर्थोपेडिक्स, न्यूरोसर्जरी और पुनर्वास विभागों के बीच समन्वय भी पहले से कहीं अधिक तेज हुआ है।
अस्पताल प्रशासन का कहना है कि डिजिटल प्रणाली से कागज की खपत में कमी आई है, डेटा की सुरक्षा बढ़ी है और ऑडिट रिपोर्टिंग की प्रक्रिया अधिक व्यवस्थित हो गई है। संगठित डिजिटल डेटा की मदद से गंभीर और जटिल ट्रॉमा मामलों में प्रबंधन की योजना अधिक प्रभावी ढंग से बनाई जा सकेगी। उच्च भार वाले मामलों में डॉक्टरों को तेजी और सटीकता से निर्णय लेने में बड़ी मदद मिलती है।
ट्रॉमा सेंटर के प्रभारी प्रोफेसर सौरभ सिंह ने कहा कि यह बदलाव संस्थान के लिए एक महत्वपूर्ण क्षण है। उनके अनुसार नई EMR प्रणाली से न केवल मरीजों को तेज और बेहतर देखभाल मिलेगी, बल्कि चिकित्सा प्रक्रिया भी अधिक सटीक और पारदर्शी होगी। उन्होंने कहा कि डिजिटल ओपीडी मॉडल आगे चलकर देश के अन्य बड़े तृतीयक अस्पतालों के लिए भी एक मानक साबित हो सकता है।
डिजिटल ओपीडी की शुरुआत ट्रॉमा सेंटर द्वारा स्वास्थ्य सेवाओं में तकनीकी सुधार को अपनाने की दिशा में बड़ा कदम मानी जाएगी। इसका लक्ष्य उपचार प्रक्रिया को सरल, तेज और अधिक विश्वसनीय बनाना है, ताकि मरीजों को समय पर उचित चिकित्सा मिल सके। BHU ट्रॉमा सेंटर की इस पहल ने वाराणसी की स्वास्थ्य सेवाओं में नई दिशा दी है और यह संभव है कि आने वाले समय में अन्य संस्थान भी इसी मॉडल को अपनाएं।