Sun, 09 Nov 2025 15:06:55 - By : Shriti Chatterjee
वाराणसी के ऐतिहासिक अस्सी घाट पर इन दिनों एक अनोखा आयोजन लोगों का ध्यान खींच रहा है। श्री वैदिक गुरुकुलम के बटुक पारंपरिक परिधान धोती कुर्ता और जनेऊ धारण कर फुटबॉल, बैडमिंटन, क्रिकेट और शतरंज जैसे खेलों में हिस्सा ले रहे हैं। इस आयोजन का नाम विंटर खेल महोत्सव रखा गया है और घाट पर आने वाले देशी विदेशी पर्यटकों के लिए यह एक आकर्षक दृश्य बन गया है। घाट पर बच्चों के उत्साह, मंत्रोच्चार की ध्वनि और संस्कृत भाषा में हो रही घोषणाएं मिलकर एक विशिष्ट वातावरण तैयार कर रही हैं।
इस खेल महोत्सव की सबसे खास बात यह है कि खेल का संचालन और प्रसारण पूरी तरह संस्कृत भाषा में किया जा रहा है। कमेंट्री करने वाले बटुक संस्कृत में खिलाड़ियों की गतिविधियों और परिणामों का वर्णन करते हैं। फुटबॉल मैच के दौरान उद्घोषणा सुनाई देती है, सः कन्दुकं घोलयति, तेन गोलः प्राप्तः, जिसका अर्थ है उसने गेंद घुमाई और गोल कर दिया। यह दृश्य न केवल खेल भावना को बढ़ावा देता है, बल्कि संस्कृत भाषा के पुनर्जागरण का जीवंत उदाहरण भी बन गया है।
गुरुकुलम के आचार्य पंडित तारकेश्वर नाथ पांडेय का कहना है कि इस आयोजन का उद्देश्य बटुकों को केवल वेद और शास्त्रों का ज्ञाता बनाना नहीं, बल्कि उन्हें मानसिक और शारीरिक रूप से भी सशक्त बनाना है। उनके अनुसार खेल जीवन का आवश्यक अंग है और जब इसे भारतीय परंपरा और भाषा से जोड़ा जाता है, तब यह पूर्ण शिक्षा का रूप ले लेता है।
महोत्सव के दौरान 6 वर्ष के एक छोटे बटुक ने वैदिक मंत्रों का पाठ कर सबका ध्यान आकर्षित किया। घाट पर उपस्थित लोग इस अनोखे संगम को देखकर आश्चर्यचकित भी हुए और भावविभोर भी। जब बटुक धोती कुर्ता में मैदान पर दौड़ते हैं या शतरंज की बिसात पर ध्यानमग्न मुद्रा में बैठे दिखते हैं, तो वह दृश्य आधुनिकता और परंपरा के सुंदर मेल का प्रतीक बन जाता है।
यह आयोजन यह संदेश देता है कि परंपरा को निभाते हुए भी आधुनिकता के साथ तालमेल बिठाया जा सकता है। योग, ध्यान और वैदिक मंत्रोच्चार जैसे तत्व इस महोत्सव को और अधिक सार्थक बना रहे हैं। अस्सी घाट पर यह दृश्य बताता है कि जब शिक्षा, खेल और संस्कृति एक साथ चलते हैं, तो समाज में संतुलित और सजग पीढ़ी का निर्माण होता है।