नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने सुशील कुमार की जमानत रद्द की, एक हफ्ते में आत्मसमर्पण का दिया आदेश

सुप्रीम कोर्ट ने पहलवान सुशील कुमार की जमानत रद्द की, उन्हें हत्या मामले में एक हफ्ते के भीतर आत्मसमर्पण करने का आदेश दिया।

Wed, 13 Aug 2025 12:11:58 - By : SANDEEP KR SRIVASTAVA

नई दिल्ली: ओलंपिक पदक विजेता और देश के मशहूर पहलवान सुशील कुमार की कानूनी मुश्किलें एक बार फिर बढ़ गई हैं। सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को हत्या के एक मामले में उनकी जमानत रद्द करते हुए उन्हें सात दिन के भीतर आत्मसमर्पण करने का सख्त आदेश दिया है। यह मामला 2021 में दिल्ली के छत्रसाल स्टेडियम में हुए उस घटना से जुड़ा है, जिसने भारतीय खेल जगत को झकझोर कर रख दिया था।

सुशील कुमार पर आरोप है कि 4 मई 2021 को संपत्ति विवाद के चलते उन्होंने और उनके साथियों ने जूनियर राष्ट्रीय कुश्ती चैंपियन सागर धनखड़ और उसके दोस्तों पर छत्रसाल स्टेडियम की पार्किंग में जानलेवा हमला किया था। पुलिस के मुताबिक, इस हमले में गंभीर रूप से घायल सागर ने इलाज के दौरान दम तोड़ दिया था, जबकि चार अन्य पहलवान भी घायल हुए थे। घटना के बाद पुलिस ने सुशील कुमार को गिरफ्तार किया था और मामले में विस्तृत आरोप पत्र दायर किया गया था।

दिल्ली पुलिस ने इस मामले में कुल 13 आरोपियों को नामजद किया है। आरोप पत्र में हत्या, हत्या के प्रयास, गैर इरादतन हत्या, आपराधिक साजिश, अपहरण, डकैती और दंगा समेत कई गंभीर धाराएं शामिल हैं। इस पूरे मामले ने तब और तूल पकड़ लिया, जब घटना से जुड़ा एक वीडियो सामने आया, जिसमें सुशील कुमार और उनके सहयोगी कुछ व्यक्तियों की बुरी तरह पिटाई करते हुए नजर आए।

दिल्ली उच्च न्यायालय ने पहले सुशील कुमार को जमानत दे दी थी, लेकिन पीड़ित पक्ष और पुलिस की ओर से इसे चुनौती देने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने इस पर पुनर्विचार किया। अदालत ने कहा कि मामले की गंभीरता, उपलब्ध साक्ष्य और आरोपों की प्रकृति को देखते हुए आरोपी को इस समय जमानत पर रहना उचित नहीं है। कोर्ट ने स्पष्ट निर्देश दिया कि सुशील कुमार एक हफ्ते के भीतर आत्मसमर्पण करें, अन्यथा उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी।

सुशील कुमार, जिन्होंने दो ओलंपिक पदक समेत कई अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में देश का नाम रोशन किया है, अब एक ऐसे मुकदमे का सामना कर रहे हैं जिसने उनकी खेल उपलब्धियों पर गहरी छाया डाल दी है। खेल प्रेमियों और कुश्ती जगत के लिए यह मामला सिर्फ एक कानूनी लड़ाई नहीं, बल्कि खेल भावना और खिलाड़ी की छवि से जुड़ा संवेदनशील मुद्दा भी बन गया है।

यह फैसला भारतीय न्याय व्यवस्था में इस बात का संकेत भी है कि चाहे कोई कितना भी बड़ा खिलाड़ी या सार्वजनिक व्यक्तित्व क्यों न हो, कानून के सामने सभी समान हैं और गंभीर अपराधों में किसी को भी विशेष छूट नहीं दी जाएगी।

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