यूपी में अगस्त 2025 से बढ़ेगा बिजली बिल, उपभोक्ताओं पर पड़ेगा इसका असर

उत्तर प्रदेश के विद्युत उपभोक्ताओं को अगस्त 2025 से बिजली बिल में 0.24% की मामूली बढ़ोतरी का सामना करना पड़ेगा।

Wed, 30 Jul 2025 23:14:40 - By : SANDEEP KR SRIVASTAVA

लखनऊ: अगस्त 2025 से उत्तर प्रदेश के विद्युत उपभोक्ताओं को बिजली बिल में मामूली बढ़ोतरी का सामना करना पड़ेगा। यह बढ़ोतरी ईंधन अधिभार शुल्क (एफएसी) के तहत लागू होगी, जिसकी दर 0.24 फीसदी निर्धारित की गई है। जुलाई में यह शुल्क 1.97 फीसदी रहा था। अब यह वृद्धि मई 2025 के ईंधन लागत के समायोजन के आधार पर की जा रही है, जिसकी वसूली अगस्त माह के बिलों के माध्यम से की जाएगी।

राज्य भर के उपभोक्ताओं से इस वृद्धि के चलते अगस्त में लगभग 22.63 करोड़ रुपये की अतिरिक्त राशि वसूली जाएगी। हालांकि अधिकारियों ने संकेत दिया है कि आने वाले महीनों में यह शुल्क और कम हो सकता है, जिससे उपभोक्ताओं को राहत मिलने की उम्मीद है।

ईंधन अधिभार शुल्क की यह व्यवस्था केंद्र सरकार के निर्देश पर लागू की गई है। भारत सरकार ने विद्युत नियामकों के माध्यम से यह व्यवस्था सुनिश्चित की है कि हर माह बिजली उत्पादन में उपयोग होने वाले ईंधन (कोयला, गैस आदि) की लागत में आए परिवर्तनों को उपभोक्ताओं तक पारदर्शी ढंग से पास किया जाए। इसी व्यवस्था के तहत राज्य विद्युत नियामक आयोग (UPERC) द्वारा इस अधिभार की दरों की समीक्षा और निर्धारण किया जाता है।

इस संबंध में उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा ने अपनी प्रतिक्रिया में कहा, “प्रदेश में बिजली कंपनियों पर उपभोक्ताओं का कुल 33,122 करोड़ रुपये बकाया है। ऐसे में यदि बिजली कंपनियां इस ईंधन अधिभार शुल्क की वसूली उपभोक्ताओं के बकाए की कटौती में समायोजित करें, तो इससे आम जनता पर अतिरिक्त आर्थिक बोझ नहीं पड़ेगा।”

उन्होंने यह भी कहा कि वर्तमान परिस्थितियों में जब महंगाई पहले से ही आम आदमी की कमर तोड़ रही है, तब बिजली बिलों में भले ही यह वृद्धि मामूली हो, पर यह निम्न और मध्यम वर्ग के उपभोक्ताओं के लिए चिंता का विषय बन सकती है। परिषद ने यह भी सुझाव दिया है कि अधिभार वसूली की प्रक्रिया को अधिक पारदर्शी और उपभोक्ता हितैषी बनाया जाए।

बिजली विभाग के अधिकारियों का कहना है कि ईंधन अधिभार शुल्क की यह गणना बिजली कंपनियों की वास्तविक ईंधन लागत के आधार पर होती है और इसमें राज्य सरकार का कोई सीधा हस्तक्षेप नहीं होता। यह व्यवस्था उपभोक्ताओं को उत्पादन लागत में हुए वास्तविक परिवर्तनों के प्रति जागरूक करने और सिस्टम को वित्तीय रूप से स्थिर बनाए रखने के लिए आवश्यक मानी जाती है।

उल्लेखनीय है कि उत्तर प्रदेश में बिजली की मांग लगातार बढ़ रही है और वितरण कंपनियों को ऊर्जा खरीद में बढ़ती लागत का सामना करना पड़ रहा है। ऐसे में एफएसी के माध्यम से यह लागत उपभोक्ताओं से वसूली जाती है ताकि कंपनियों की वित्तीय स्थिति संतुलित बनी रहे।

जहां अगस्त में यह वृद्धि सीमित है, वहीं उपभोक्ताओं को सलाह दी गई है कि वे आगामी महीनों के बिजली बिलों पर नजर बनाए रखें, क्योंकि ईंधन अधिभार की दर हर महीने अलग-अलग हो सकती है। भविष्य में यदि कोयले या गैस की कीमतों में स्थायित्व बना रहता है, तो अधिभार शुल्क और कम हो सकता है। यह संभावित राहत की उम्मीद भी जगाता है।

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