उत्तर प्रदेश में नए बिजली कनेक्शन पर स्मार्ट प्रीपेड मीटर अनिवार्य, उपभोक्ताओं की बढ़ी चिंता

उत्तर प्रदेश बिजली विभाग ने नए कनेक्शन, खराब मीटर बदलने और भार वृद्धि के लिए स्मार्ट प्रीपेड मीटर अनिवार्य किए, जिससे उपभोक्ताओं की चिंता बढ़ी है।

Sat, 13 Sep 2025 11:01:57 - By : Shriti Chatterjee

उत्तर प्रदेश में बिजली विभाग की कार्यप्रणाली को लेकर नया विवाद सामने आया है। विभाग ने 10 सितंबर को आदेश जारी किया कि अब प्रदेश में सभी नए कनेक्शन, खराब मीटर बदलवाने और भार वृद्धि के मामलों में केवल स्मार्ट प्रीपेड मीटर ही लगाए जाएंगे। इस आदेश ने लाखों उपभोक्ताओं की चिंता बढ़ा दी है क्योंकि अब उन्हें सस्ते कनेक्शन की राहत नहीं मिलेगी।

दरअसल, विभाग ने अभी हाल ही में 100 करोड़ रुपये की लागत से 13 लाख सिंगल फेज इलेक्ट्रॉनिक मीटर की खरीद का टेंडर निकाला था। यह टेंडर मध्यांचल बिजली वितरण निगम ने 29 अगस्त को खोला और पूरे प्रदेश की कंपनियों के लिए मीटर खरीदे जा रहे हैं। पुराने सिंगल फेज मीटर की कीमत जीएसटी सहित करीब 872 रुपये पड़ रही थी, जबकि नए टेंडर में यही मीटर 720 रुपये में मिल रहा है। इस दर से कनेक्शन उपभोक्ताओं को 152 रुपये सस्ता पड़ता। लेकिन आदेश आने के बाद अब यह राहत खत्म हो गई है और उपभोक्ताओं को स्मार्ट प्रीपेड मीटर लेना अनिवार्य हो जाएगा।

मामला यहीं नहीं रुकता। फिलहाल स्मार्ट प्रीपेड मीटर का कोई नया टेंडर भी जारी नहीं हुआ है, फिर भी विभाग ने बिना नियामक आयोग और जी कमेटी की अनुमति के आदेश निकाल दिया। यहां तक कि बिना टेंडर के ही स्मार्ट प्रीपेड मीटर का ऑर्डर जारी करने का आरोप भी सामने आया है। उपभोक्ता परिषद ने इसे विभाग की मनमानी बताया है और नियामक आयोग के सामने लोक महत्व का प्रस्ताव दाखिल किया है।

आंकड़े बताते हैं कि इसका असर आम उपभोक्ताओं पर सीधा पड़ेगा। अभी जहां 1 किलोवाट का कनेक्शन 1032 रुपये में मिल जाता है, वही स्मार्ट प्रीपेड मीटर लगवाने पर यह 6166 रुपये तक पहुंच जाएगा। इसी तरह 5 किलोवाट कनेक्शन की कीमत 7057 रुपये से बढ़कर 15470 रुपये हो जाएगी। थ्री फेज मीटर में भी 2921 रुपये से बढ़कर 11341 रुपये तक का बोझ उपभोक्ताओं को उठाना पड़ेगा। तुलना करें तो ओडिशा जैसे राज्यों में निजीकरण के बाद 1 किलोवाट कनेक्शन 4500 रुपये में मिल रहा है, जबकि यूपी में उपभोक्ताओं को 6000 रुपये से ज्यादा खर्च करना होगा।

राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष अवधेश वर्मा ने इस फैसले का विरोध करते हुए कहा कि आरडीएसएस योजना के तहत खरीदे गए मीटर पर उपभोक्ताओं से पैसे नहीं वसूले जा सकते, जैसा कि केंद्र सरकार और आयोग के आदेश में स्पष्ट है। उन्होंने आरोप लगाया कि स्मार्ट प्रीपेड मीटर का फैसला निजी कंपनियों को लाभ पहुंचाने के लिए लिया गया है, जबकि इसका खामियाजा आम जनता को भुगतना पड़ेगा। परिषद ने आयोग से मांग की है कि आदेश तुरंत रद्द किया जाए और मामले की जांच कराई जाए।

बिजली विभाग के इस कदम ने उपभोक्ताओं के बीच असमंजस की स्थिति पैदा कर दी है। एक तरफ जहां नए मीटर की खरीद पर करोड़ों खर्च किए जा रहे हैं, वहीं दूसरी ओर उपभोक्ताओं को ज्यादा महंगे मीटर लेने के लिए मजबूर किया जा रहा है। अब देखना यह होगा कि नियामक आयोग इस विवादास्पद फैसले पर क्या रुख अपनाता है।

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