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निमिषा प्रिया की फांसी पर रोक, भारत सरकार के प्रयासों को मिली सफलता

निमिषा प्रिया की फांसी पर रोक,  भारत सरकार के प्रयासों को मिली सफलता

यमन में मौत की सजा झेल रहीं भारतीय नर्स निमिषा प्रिया की फांसी फिलहाल टली, भारत सरकार और धर्मगुरुओं के प्रयासों से मिली राहत, मुआवजे पर बातचीत जारी।

नई दिल्ली: यमन में मौत की सजा का सामना कर रहीं केरल निवासी भारतीय नर्स निमिषा प्रिया को बड़ी राहत मिली है। 16 जुलाई को होने वाली फांसी की सजा को यमन के स्थानीय अधिकारियों ने फिलहाल स्थगित कर दिया है। यह महत्वपूर्ण फैसला भारत सरकार के निरंतर प्रयासों और केरल के वरिष्ठ सुन्नी मुस्लिम धर्मगुरु कंथापुरम ए. पी. अबूबकर मुसलियार के हस्तक्षेप के बाद आया है।

प्राप्त जानकारी के अनुसार, भारत सरकार बीते कुछ महीनों से निमिषा प्रिया के मामले को लेकर यमन की सरकार और जेल प्रशासन के साथ लगातार संपर्क में थी। भारत ने विशेष रूप से यह अनुरोध किया कि प्रिया और मृतक के परिवार के बीच ब्लड मनी (मुआवजा) को लेकर समझौते के लिए कुछ और समय दिया जाए। सरकार की ओर से की जा रही बातचीत में विदेश मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारी यमन के अभियोजन कार्यालय से लेकर जेल प्रबंधन तक संपर्क में बने रहे।

निमिषा प्रिया पर वर्ष 2017 में अपने यमनी बिजनेस पार्टनर तालाल अब्दो महदी की हत्या का आरोप है। बताया गया था कि हत्या के पीछे प्रिया द्वारा अपने बिजनेस और जीवन की रक्षा के लिए उठाया गया कदम था, जिसे कानूनी प्रक्रिया में अपराध माना गया। यमन की अदालत ने उन्हें 2020 में मौत की सजा सुनाई थी और 2023 में उनकी अंतिम अपील भी खारिज कर दी गई। इसके बाद 16 जुलाई 2025 को उनकी फांसी की तारीख निर्धारित हुई थी। वर्तमान में प्रिया यमन की राजधानी सना की जेल में कैद हैं।

इस पूरे मामले को लेकर भारत में भी गहरी चिंता रही। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट में भी इस पर सुनवाई हुई थी। एक याचिका के माध्यम से प्रिया की फांसी को रोकने की मांग की गई, जिस पर सुनवाई के दौरान भारत सरकार की ओर से अटॉर्नी जनरल ने कोर्ट को बताया कि भारत इस मामले में सक्रिय है और यमन के साथ संवाद के जरिये फांसी को स्थगित कराने के प्रयास जारी हैं। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि यमन के संबंधित अधिकारियों को यह आग्रह किया गया है कि जब तक यह कूटनीतिक प्रयास चल रहे हैं, तब तक सजा को स्थगित रखा जाए।

केरल के प्रभावशाली धार्मिक नेता कंथापुरम ए. पी. अबूबकर मुसलियार ने भी मानवीय आधार पर इस मामले में हस्तक्षेप किया। उन्होंने यमन के सूफी धर्मगुरु शेख हबीब उमर बिन हफीज के प्रतिनिधियों के साथ संपर्क साधा और उन्हें इस प्रयास में शामिल किया। शेख हबीब उमर के प्रतिनिधियों के जरिये मृतक तालाल अब्दो महदी के परिवार से संवाद स्थापित हुआ, जो अब तक असंभव माना जा रहा था। इस संवाद में यमन के होदेइदाह राज्य न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश और शूरा काउंसिल के सदस्य जैसे प्रभावशाली लोगों की भागीदारी भी हुई, जिससे यह प्रयास अधिक प्रभावी हो सका।

यमन में शरिया कानून लागू है, जिसमें हत्या जैसे मामलों में ‘ब्लड मनी’ के जरिए सजा से राहत पाने का प्रावधान है। इसके तहत यदि मृतक के परिवार को एक निश्चित वित्तीय मुआवजा दे दिया जाए और वे इसे स्वीकार कर लें, तो फांसी की सजा टाली या समाप्त की जा सकती है। हालांकि, प्रिया के वकीलों और भारतीय अधिकारियों को अब तक तालाल के परिवार से संपर्क करने में कठिनाई हो रही थी। मगर अब परिस्थितियां बदल रही हैं और मृतक के परिवार के एक प्रभावशाली सदस्य के बातचीत में शामिल होने से इस दिशा में उम्मीदें बढ़ गई हैं।

निमिषा प्रिया की सजा पर लगी यह रोक भले ही स्थायी राहत न हो, लेकिन भारत और यमन के बीच चल रहे कूटनीतिक प्रयासों और धार्मिक नेतृत्व के सहयोग से उत्पन्न यह अवसर एक संभावित समाधान की दिशा में बड़ा कदम माना जा रहा है। अब यह पूरी तरह मृतक के परिजनों की सहमति और ‘ब्लड मनी’ के प्रस्ताव की स्वीकार्यता पर निर्भर करेगा कि निमिषा प्रिया को पूरी तरह सजा से राहत मिलती है या नहीं। फिलहाल, यह अंतरराष्ट्रीय संबंधों और मानवीय न्याय की दिशा में भारत की कूटनीतिक सफलता के तौर पर देखा जा रहा है।

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