BHU लैंगिक उत्पीड़न के मामलों पर महिला आयोग सख्त, कुलपति सहित तीन अधिकारी दिल्ली तलब

राष्ट्रीय महिला आयोग ने बीएचयू में लैंगिक उत्पीड़न के तीन गंभीर मामलों पर सख्त रुख अपनाते हुए कार्यवाहक कुलपति और दो अन्य अधिकारियों को 14 जुलाई 2025 को दिल्ली मुख्यालय में तलब किया है, व्यक्तिगत उपस्थिति अनिवार्य की गई है।

Sun, 06 Jul 2025 18:34:30 - By : SANDEEP KR SRIVASTAVA

वाराणसी: काशी हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू), जो भारत के प्रमुख शैक्षणिक संस्थानों में गिना जाता है, एक बार फिर विवादों के केंद्र में आ गया है। इस बार आरोप न केवल विश्वविद्यालय की कार्यशैली पर सवाल खड़े कर रहे हैं, बल्कि संस्थान की आंतरिक व्यवस्था और महिला कर्मचारियों तथा छात्राओं की सुरक्षा को लेकर भी गंभीर चिंता जताई जा रही है। राष्ट्रीय महिला आयोग ने तीन अलग-अलग लैंगिक उत्पीड़न से जुड़े मामलों को अत्यंत गंभीर मानते हुए बीएचयू के शीर्ष अधिकारियों को व्यक्तिगत रूप से 14 जुलाई 2025 को नई दिल्ली में आयोग के मुख्यालय में तलब किया है।

आयोग ने यह समन बीएचयू के कार्यवाहक कुलपति प्रोफेसर संजय कुमार, आयुर्विज्ञान संस्थान (आईएमएस) के निदेशक प्रोफेसर एस.एन. संखवार और ट्रॉमा सेंटर प्रभारी प्रोफेसर सौरभ सिंह को भेजा है। आयोग ने यह स्पष्ट किया है कि उनकी व्यक्तिगत उपस्थिति अनिवार्य है, और यदि वे उपस्थित नहीं होते हैं या जवाब संतोषजनक नहीं पाया गया, तो आयोग सख्त कानूनी कार्रवाई करने के लिए बाध्य होगा।

विश्वविद्यालय के सूत्रों के अनुसार, महिला आयोग की इस सख्ती के बाद बीएचयू प्रशासन में अफरा-तफरी का माहौल है। कार्यवाहक कुलपति ने इस विषय पर ट्रॉमा सेंटर के प्रभारी और अन्य संबंधित अधिकारियों के साथ लगातार बंद कमरे में बैठकें की हैं, जिनका उद्देश्य आयोग के समक्ष दिए जाने वाले उत्तरों की रणनीति तय करना बताया गया है।

इस पूरे विवाद की जड़ में तीन अलग-अलग प्रकरण शामिल हैं, जिनमें महिला कर्मचारियों और पूर्व छात्रा द्वारा मानसिक उत्पीड़न, यौन उत्पीड़न और संस्थागत भेदभाव जैसे गंभीर आरोप लगाए गए हैं।

पहला मामला बीएचयू के आयुर्वेद संकाय से जुड़ा है, जहां प्रोफेसर नम्रता जोशी ने महिला आयोग में शिकायत दर्ज कर यह आरोप लगाया है कि उन्हें लगातार मानसिक प्रताड़ना, संस्थागत भेदभाव और महिला विरोधी आचरण का सामना करना पड़ा है। शिकायत में संकाय के डीन और रसशास्त्र विभाग के एक वरिष्ठ प्रोफेसर का नाम लिया गया है। उनका कहना है कि यह उत्पीड़न एक लंबे समय से चल रहा है, लेकिन विश्वविद्यालय प्रशासन ने उनकी शिकायतों को नज़रअंदाज़ किया।

दूसरा मामला पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग की एक पूर्व छात्रा से जुड़ा है, जिसने यौन उत्पीड़न के गंभीर आरोप लगाए हैं। इस मामले में आयोग ने पहले ही बीएचयू प्रशासन से विस्तृत रिपोर्ट मांगी थी, लेकिन समय पर और संतोषजनक उत्तर न दिए जाने के कारण अब प्रशासनिक अधिकारियों को व्यक्तिगत रूप से तलब किया गया है। यह मामला फिलहाल जांच के दायरे में है और महिला आयोग चाहता है कि इसकी निष्पक्षता से जल्द से जल्द जांच पूरी हो।

तीसरा मामला बीएचयू के ट्रॉमा सेंटर में कार्यरत एक महिला प्रोफेसर से जुड़ा है, जिन्होंने कार्यस्थल पर अपमानजनक और अनुचित प्रशासनिक व्यवहार की शिकायत की है। महिला प्रोफेसर ने आरोप लगाया है कि ट्रॉमा सेंटर प्रभारी सहित अन्य अधिकारी उनके साथ तानाशाहीपूर्ण रवैया अपनाते हैं, जिससे उनका मानसिक स्वास्थ्य प्रभावित हो रहा है। उन्होंने यह भी कहा कि बार-बार शिकायत करने के बावजूद कोई सुधार नहीं हुआ है और उन्हें चुप कराने का प्रयास किया गया।

इन मामलों को लेकर राष्ट्रीय महिला आयोग की चेयरपर्सन रेखा शर्मा ने कहा है कि यह केवल व्यक्तिगत उत्पीड़न के प्रकरण नहीं हैं, बल्कि यह संस्थागत असंवेदनशीलता और लिंग आधारित भेदभाव के चिंताजनक उदाहरण हैं। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि आयोग यह जानना चाहता है कि बीएचयू प्रशासन ने अब तक इन मामलों में क्या ठोस कदम उठाए हैं, और यदि नहीं उठाए तो उसके पीछे की वजह क्या है।

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